जंग के बदल गए हैं आयाम अब सेनाओं के बीच से निकल व्यापारिक मोर्चे पर पहुंची

जंग अब सिर्फ देश की सीमाओं पर ही नहीं होती है, बल्कि वैश्वीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद से अब यह व्यापारिक मोर्चे पर भी लड़ी जा रही है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 27 Mar 2018 10:18 AM (IST) Updated:Tue, 27 Mar 2018 11:05 AM (IST)
जंग के बदल गए हैं आयाम अब सेनाओं के बीच से निकल व्यापारिक मोर्चे पर पहुंची
जंग के बदल गए हैं आयाम अब सेनाओं के बीच से निकल व्यापारिक मोर्चे पर पहुंची

नई दिल्ली [निरंकार सिंह]। जंग अब सिर्फ देश की सीमाओं पर ही नहीं होती है। वैश्वीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद से अब यह व्यापारिक मोर्चे पर भी लड़ी जा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे अब सिर्फ सुरक्षा विभाग से जुड़े मुद्दे नहीं रहे, बल्कि वाणिज्य, व्यापार, पूंजी निवेश जैसे मुद्दों से भी जुड़ गए हैं। इस तरह से जंग के मैदान अब बदल गए हैं। यदि कोई देश इन सब नई वास्तविकताओं पर हावी होने में नाकाम रहता है तो उसके अपने देश को खुशहाल और समृद्ध बनाने के सपने, सपने ही रह जाएंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार शुल्क के मामले में चेतावनी को ‘टेड वार’ के रूप में ही देखा जा रहा है। उन्होंने यह कहा है कि भारत और चीन अमेरिकी उत्पादों के आयात पर जितना टैक्स लगाएंगे, उतना ही टैक्स अमेरिका इनके उत्पादों पर भी लगाएगा। अमेरिका के निशाने पर चीन, भारत के अलावा थाईलैंड, अर्जेटीना और ब्राजील भी हैं। ट्रंप की नीतियों से चीन के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर हो सकता है।

दुनिया के बाजार में तेजी से पैर पसार रहा चीन

उधर चीन भी दुनिया के बाजार में अपने पैर तेजी से पसार रहा है। चीन और भारत के बीच अघोषित ट्रेड वार जैसी स्थिति काफी पहले से ही चली आ रही है। अपने देश के हितों को सबसे ऊपर रखने की बात करने वाले देशों में सिर्फ अमेरिका ही नहीं है। ऐसा नेतृत्व कई देशों में उभर रहा है। जहां वह सत्ता में नहीं है वहां भी सरकार पर दबाव की स्थिति में आ गया है। इससे वैश्विक स्तर पर टेड वार की आशंका सच होने लगी है। ऐसे में भारत को इस टेड वार से निपटने के लिए विशेष रणनीति बनानी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया वैश्विक अर्थव्यवस्था में ही नहीं, बल्कि अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाओं में भी तेजी लाने वाली साबित हुई है, लेकिन इसके चलते निचले स्तर पर तमाम देशों में पुरानी तकनीक वाली छोटी-छोटी औद्योगिक व्यापारिक इकाइयां घाटे में आ गईं या बंद हो गईं, जिसका खामियाजा स्थानीय आबादी के सबसे कमजोर हिस्से को अपने रोजगार की बर्बादी के रूप में भोगना पड़ा है।

निर्यात से ज्यादा आयात 

उद्योग जगत की अग्रणी संस्था एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स (एसोचैम) के अनुसार भारत अभी निर्यात से ज्यादा आयात कर रहा है। आयातित सामानों की सूची में बहुत से नितांत जरूरी उत्पाद भी हैं। ऐसे में देश के लिए ट्रेड वार की स्थिति में जवाबी कार्रवाई के लिए बहुत गुंजाइश नहीं बचती है। इसलिए किसी भी संभावित टेड वार की सूरत में देश को निर्यात बढ़ाने और अपने कारोबारी सहयोगियों के साथ ज्यादा से ज्यादा घुलने-मिलने पर फोकस करना चाहिए।1दुनिया के किसी भी एक हिस्से के साथ कारोबारी रूप में बहुत ज्यादा जुड़ जाने के बदले देश को अपने बड़े कारोबारी सहयोगियों के साथ बातचीत और मेलमिलाप का रास्ता अपनाना चाहिए। हमें द्विपक्षीय रिश्तों पर जोर देना चाहिए और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के रूप में मौजूदा रास्ते का भी उसके नियमों के तहत पूरा उपयोग करना चाहिए। चालू वित्त वर्ष के अंत में भारत का आयात 29.25 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा, जबकि निर्यात का आंकड़ा 19.50 लाख करोड़ रुपये तक।

विकल्प खुले रखने पड़ेंगे

आयात के आंकड़े में लगभग एक चौथाई हिस्सा अकेले कच्चे तेल और अन्य संबंधित उत्पादों का होगा। इसके अलावा प्लास्टिक और खाद जैसे जरूरी सामान हैं, जिनके लिए देश में तत्काल आपूर्ति का कोई साधन नहीं है। ऐसे में संभावित ट्रेड वार की हालत में भारत को जवाब देने के अलावा अन्य विकल्प खुले रखने पड़ेंगे। आजकल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर के देशों को भारत में पूंजी निवेश और कारोबार के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। इसके साथ-साथ व्यापार के द्विपक्षीय समझौते भी हो रहे हैं, लेकिन विश्व व्यापार की कई ऐसी पेचीदगियां हैं, जिनसे इसका लाभ हमारे छोटे व्यापारियों और खासकर हस्तशिल्प के कारोबारियों को नहीं मिल पाता है। आज पूरी दुनिया एक बाजार बन गई है। इस बाजार पर वर्चस्व के लिए दुनिया के कई देशों के बीच जंग चल रही है। हम इस बाजार का लाभ तभी उठा सकते हैं जब हमारे उद्यमी खासकर छोटे उद्यमी और कारीगर बाजार के नियमों से परिचित हों।

नए व्यापारिक नियम

नए व्यापारिक नियमों के कारण सरकार की भूमिका अब अवरोधक के बजाय सहायक की हो गई है, लेकिन हमारी नौकरशाही अभी भी अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। इसलिए वह व्यापार अर्थात देश के विकास में बाधक साबित हो रही है। दरअसल व्यापार के बिना किसी भी देश के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारत, चीन, रोम, मेसोपोटेमिया से लेकर कालांतर में आधुनिक राष्ट्र राज्यों की समृद्धि में व्यापार की बहुत बड़ी भूमिका रही है। प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया इसी बिसात पर कहा जाता था कि उसका व्यापार चारों दिशाओं में फैला था। औद्योगिक क्रांति के पहले तक भारत का विश्व व्यापार में 25 फीसद योगदान था। यह ब्रिटिश शासन काल में घटकर 13 फीसद पर आ गया और आजादी के समय तीन फीसद था। आज जबकि पूरी दुनिया एक बाजार बन गई है तो उसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ एक फीसद के आसपास है।

मूल क्षमताओं में करनी पड़ेगी वृद्धि 

दरअसल अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाए रखने की शक्ति और अपनी विदेश नीति को आजाद रखने की ताकत हमें तभी मिलेगी, जब हम अपनी सुरक्षा के आधार को पूरी तरह सुदृढ़ करना सीख जाएंगे। इसके लिए हमें अनेक प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में अपनी मूल क्षमताओं में काफी वृद्धि करनी पड़ेगी और वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी को नवीनतम उपकरणों से लैस करना पड़ेगा, लेकिन पिछले 70 साल में हमने बड़े-बड़े संस्थान, तमाम प्रयोगशालाएं और विश्वविद्यालय तो खड़े कर दिए, लेकिन वहां दुनिया को बताने लायक कोई नया आविष्कार या तकनीकी विकसित नहीं कर सके। नट-बोल्ट बनाने से लेकर बूट पॉलिश आदि बनाने तक की तमाम तकनीकों के मामले में हम विदेशों पर निर्भर हैं। जाहिर है वैश्विक ट्रेड वार को देश के लिए गंभीर चुनौती के रूप में देखना होगा तभी हम इसका मुकाबला कर पाएंगे।

(लेखक हिंदू विश्वकोश के पूर्व सहायक संपादक हैं )

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