भारत के नए आक्रामक तेवर की कूटनीति, जिसने दुनिया का चौंका दिया

वर्ष 2016 में भारत ने जिस कूटनीति का सहारा लिया उसने दुनिया को चौंका कर रख दिया। पाकिस्‍तान में घुसकर सर्जिकल स्‍ट्राइक भी इसका ही एक हिस्‍सा थी।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 28 Dec 2016 10:27 PM (IST) Updated:Thu, 29 Dec 2016 08:22 AM (IST)
भारत के नए आक्रामक तेवर की कूटनीति, जिसने दुनिया का चौंका दिया
सर्जिकल स्ट्राइक-प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। वर्ष 2016 का साल भारतीय कूटनीति के नए जज्बे के लिए जाना जाएगा। इसकी शुरुआत जनवरी, 2016 में पठानकोट हमले के बाद हो गई थी। उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और अंतरराष्ट्रीय फलक पर उसे आतंकवाद के मुद्दे पर अलग थलग करने साथ ही भारत ने यह साबित कर दिया कि अब वह लीक पर चलने का कायल नहीं रहा। पाकिस्तान ही नहीं चीन के सामने भी भारत ने हर मुद्दे पर आंख में आंख डाल कर बात की। खाड़ी के तमाम देशों के साथ रिश्तों को नई पहचान दी गई तो 'लुक ईस्ट' नीति को कूटनीतिक गहराई दी गई। दूसरे शब्दों में कहें तो आक्रामकता भारतीय कूटनीति की पहचान बन गई जो संभवत: अगले वर्ष 2017 में और गहरी होगी।

लीक से हटने में गुरेज नहीं

पाक समर्थित आतंकियों ने जब पठानकोट पर हमला किया तो शायद उन्हें यही लगा होगा कि कुछ हफ्तों में भारत व पाक के बीच बातचीत फिर शुरु होगी। लेकिन इस बार भारत की मंशा दूसरी थी। उड़ी में भारतीय सेना के बंकर पर हमले के कुछ ही दिनों बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के भीतर घुस कर आतंकियों के गढ़ को तबाह किया। यह भारतीय कूटनीति को भविष्य में परिभाषित करने वाली घटना होगी। इसके बाद पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करने की जोरदार मुहिम शुरु हुई। सार्क से लेकर अफगानिस्तान-ईरान तक में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।

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पाकिस्तान अपने पड़ोसियों के बीच पूरी तरह अलग थलग हो गया। लेकिन क्या मोदी एक बार फिर पाकिस्तान को बातचीत के टेबल पर आने का मौका देंगे। 25 दिसंबर, 2016 को मोदी ने पीएम नवाज शरीफ को जन्म दिन की बधाई दे कर यह संकेत दिए हैं कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ। इस महीने की शुरुआत में पाक के विदेश मंत्री सरताज अजीज भी अमृतसर आये थे जहां उनकी एनएसए अजीत डोभाल से बातचीत हुई थी। इस तरह से अगला वर्ष मोदी सरकार की 'नेबर फ‌र्स्ट' नीति को तय करने वाला साल भी होगा।

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चीन के तेवर सबसे बड़ी सिरदर्दी

वर्ष 2016 भारत व चीन के रिश्तों की हकीकत को बाहर करने वाला भी साबित हुआ। अब दोनों देश यह स्वीकार कर रहे हैं कि उनके बीच विवादों की खाई काफी लंबी है। बीत रहे साल में अजहर मसूद, पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रूप, मिसाइल परीक्षण, अफगान में निवेश जैसे कई ऐसे मुद्दे रहे जिस पर भारत व चीन के बीच तनाव साफ तौर पर उभर आये। अमेरिका की तरफ से भारत को अहम रणनीतिक साझेदार देश का दर्जा देने के बाद से चीन के लहजे में तल्खी और बढ़ गई है।

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कुछ अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने हाल ही में बात पर चिंता भी जताई है कि अमेरिका का करीबी देश की घोषणा के बाद चीन अब भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने की ज्यादा कोशिश कर सकता है। हर मामले में पाकिस्तान को समर्थन दे कर उसने अपनी मंशा भी जता दी है। ऐसे में भारत और चीन के रिश्ते नए साल में किस तरफ जाते हैं, इस पर दुनिया भर की नजर रहेगी। यह भारतीय कूटनीति की नई परीक्षा भी होगी।

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चुनौतियां बेशुमार

एक नजर उस माहौल पर डालते हैं जो नए वर्ष में भारतीय कूटनीति को प्रभावित करेंगे। अमेरिका अपने नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में कूटनीति के नए दौर में प्रवेश करने को तैयार है। सदियों पुराना मित्र रूस चीन व पाकिस्तान के साथ नए गठजोड़ में लग चुका है। यूरोपीय देश दूसरे विश्व युद्ध के बाद संभवत: सबसे बड़े बदलाव के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। इन वजहों से कूटनीतिक विशेषज्ञ मौजूदा वैश्विक माहौल को बेहद विस्फोटक बता रहे हैं और मानते हैं कि वर्ष 2017 में दुनिया में एक अलग तरह के धुव्रीकरण की शुरुआत होगी। भारत को इस माहौल में अपने हितों को साधना होगा।

नए वर्ष में मोदी सरकार की कूटनीतिक की यह सबसे बड़ी चुनौती भी होगी। माना जा रहा है कि अमेरिका व भारत के रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगे लेकिन भारत को यह भी देखना होगा कि वह अमेरिका व चीन की आपसी प्रतिद्वंदिता का सिर्फ हिस्सा बन कर न रह जाए। वैसे भारत ने यह लगभग साफ कर दिया है कि वह किस तरफ है। नए रणनीतिक साझेदार देश जापान व आस्ट्रेलिया के साथ भी भारत को अपने रिश्तों पर ध्यान देना है। नवंबर, 2016 की सार्क बैठक के रद्द होने के बाद दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग व समन्वय की दशा व दिशा भी इस वर्ष तय होगी।

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