पालकी में पहुंचाया अस्पताल, महिला ने दिया बच्चे को जन्म

उपमंडल ज्वालामुखी का सिद्धपुर गांव आज भी सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 Jul 2020 06:18 AM (IST) Updated:Mon, 20 Jul 2020 06:18 AM (IST)
पालकी में पहुंचाया अस्पताल, महिला ने दिया बच्चे को जन्म
पालकी में पहुंचाया अस्पताल, महिला ने दिया बच्चे को जन्म

- 02 किलोमीटर सड़क नाबार्ड के तहत स्वीकृति होने के बावजूद नहीं बन पाई, साढ़े तीन किलोमीटर है सरवन का गांव सड़क से दूर

- 250 लोग सिद्धपुर गांव में रहते हैं, जरूरी सामान व भवन निर्माण की सामग्री घर पहुंचाने के लिए घोड़ों पर करना पड़ता है अतिरिक्त खर्च

संवाद सूत्र, ज्वालामुखी : क्षेत्र में सड़कों की खस्ता हालत लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। उपमंडल ज्वालामुखी के सिद्धपुर गांव में रविवार को उस समय स्थिति बिगड़ गई जब प्रसव पीड़ा से कराहती एक महिला को अस्पताल तक ले जाने के लिए वाहन तो थे, लेकिन आने के लिए सड़क नहीं। आननफानन में महिला के पति सरवन कुमार को गर्भवती पत्नी सपना देवी को अस्पताल तक ले जाने के लिए गांव के चार युवाओं को इकट्ठा होने के लिए घूमना पड़ा। आधे घंटे की मशक्कत के बाद सरवन चार लोगों के साथ घर आए और पत्नी को पालकी में डालकर तीन किलोमीटर की खड्ड बन चुकी सड़क से होते हुए मुख्य सड़क तक लेकर पहुंचे। असहनीय पीड़ा को सहन करते हुए अस्पताल पहुंचने के एक घंटे के भीतर ही महिला ने बेटे को जन्म दिया है। राहत की बात है कि जच्चा व बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। सिद्धपुर गांव में करीब 250 लोग रहते हैं। एक छोर पर है सरवन का घर

सरवन का घर देहरियां से सिद्धपुर जाने वाली सड़क के एक छोर पर पड़ता है। जिसकी कुल लंबाई करीब साढ़े तीन किलोमीटर है। दो किलोमीटर सड़क जोकि नाबार्ड के तहत स्वीकृति के बावजूद बन नहीं पाई है, उससे उनके घर एक किलोमीटर की दूरी पर है। पत्नी का प्रसव होना था, वह दर्द से कराह रही थी। लेकिन सड़क न होने से दिक्कत झेलनी पड़ी। यह समस्या अकेले सरवन कुमार की नहीं है। गांव के अन्य लोगों को भी इसी तरह परेशान होना पड़ता है। यहां पर पालकी से ही बीमार लोगों को सड़क तक पहुंचाया जाता है। क्या कहते हैं स्थानीय बाशिदे

सड़क की कमी के कारण काफी बार परेशान होना पड़ता है। सरवन कुमार ने पालकी उठाने के लिए उन्हें साथ चलने को कहा। जिस पर वे अपने साथियों के साथ महिला को मुख्य सड़क तक पालकी में डालकर लेकर गए। यदि रास्ते में ही देरी होती तो मुश्किल होती।

- सुशील डोगरा, स्थानीय निवासी। देहरियां से सिद्धपुर सड़क जीवन रेखा नहीं, बल्कि मुसीबत का कारण बन गई है। उनका गांव आज भी सड़क सुविधा से वंचित है। मुख्यमंत्री ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े हुए नेता हैं। हम चाहते हैं कि एक बार हमारे क्षेत्र का दौरा करके देखें कि यहां पर लोगों को क्या दिक्कत है।

-सतीश कुमार, स्थानीय निवासी। चंगर क्षेत्र में सड़कों की समस्या ज्यादातर वन भूमि की वजह से है। कई ग्रामीण सड़कों का काम वन भूमि पर निर्माण न करने की रोक के कारण है। सरकार को चाहिए कि यदि सही में ग्रामीण क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा में लाना है तो वन अधिनियम में संशोधन करके जनता को राहत दिलाए।

-पवन कुमार, स्थानीय निवासी। यहां के लोगों को आम जरूरतों की पूर्ति के लिए भी काफी परेशान होना पड़ता है। यहां गांव में पहुंचने का संशाधन पालकियां और घोड़े हैं। बीमार को अस्पताल ले जाने के लिए पालकियां हमारे वाहन हैं। घर बनाना हो या कुछ भारी सामान लेकर जाना हो तो घोड़े उनके लिए ट्रक या ट्रैक्टर का काम करते हैं।

-राजीव कुमार, स्थानीय निवासी। समय पर पालकी उठाने वाले नहीं मिले होते तो कोई भी हादसा हो सकता था। गर्भवती जब प्रसव पीड़ा से कराह रही हो और खड्ड रूपी सड़क पर हिचकोरे लेते हुए अस्पताल ले जाई जाए तो खुद ही समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी दर्दनाक है।

-सरवन कुमार, महिला का पति। देहरियां से सिद्धपुर सड़क की मंजूरी नाबार्ड के तहत हुई है। सिद्धपुर को जाने वाले मार्ग के बीच वन भूमि की वजह से यहां काम नहीं हो सकता। विभाग समय समय पर जेसीबी लगाकर सड़क को दुरुस्त करता रहता है। बरसात में कच्ची सड़क तो बहेगी फिर भी हम लोगों की सुविधा की खातिर जब भी समस्या आएगी वहां काम करेंगे। विभाग इस मार्ग की रिपोर्ट तैयार करके अनुमति के लिए देहरादून भेजेगा।

-सुनील अवस्थी, कनिष्ठ अभियंता लोक निर्माण विभाग मझीण। वन क्षेत्रों की अड़चनों के कारण ज्वालामुखी ही नहीं प्रदेशभर में सैकड़ों सड़कों के काम रुके हुए हैं। विधानसभा की प्राकलन कमेटी की अध्यक्षता करते हुए हमने इस विषय पर चर्चा की है। कमेटी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिलकर इस समस्या से छुटकारे के लिए अपने सुझाव देने जा रही है। यदि इस पर मुख्यमंत्री ही कुछ कदम उठाएं तभी बात बन सकती है। नहीं तो सब कुछ होने के बावजूद हजारों गांव सड़क सुविधा से वंचित रह जाएंगे।

- रमेश धवाला, उपाध्यक्ष राज्य योजना बोर्ड एवं स्थानीय विधायक।

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