बिहार में आमने-सामने हुए JMM व JDU, वोटिंग के पहले हाईकोर्ट पहुुंचा मामला
लोकसभा चुनाव में चुनाव चिह्न को लेकर जदयू व जेएमएम आमने-सामने आ गए हैं। चुनाव आयोग ने जदयू के पक्ष में फैसला दिया है। इसके बाद जेएमएम पटना हाईकोर्ट पहुंच गया है।
पटना [सुनील राज]। इस बार लोकसभा चुनाव में बिहार के अंदर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और शिवसेना के चुनाव चिह्न नहीं चलेंगे। जेएमएम और शिवसेना के मतदाताओं को नए चुनाव चिह्न पर इन दलों को वोट देना होगा। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की आपत्ति के बाद चुनाव आयोग ने उनके चुनावचिह्न 'तीर-धनुष' को बिहार में प्रतिबंधित कर दिया है। यह कार्रवाई उस वक्त की गई है जब पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार और बांका जैसे संसदीय क्षेत्रों के लिए जेएमएम ने प्रत्याशियों के नाम का एलान कर दिया है। उधर, चुनाव आयोग पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए जेएमएम इस मामले को लेकर पटना हाईकोर्ट पहुंच गया है।
जानिए क्या है मामला
पिछले दिनों चुनाव आयोग के बिहार में समीक्षा दौरे के क्रम में जदयू ने राजनीतिक दलों की बैठक में चुनाव आयोग के समक्ष चुनाव चिह्न का मुद्दा उठाया था। जदयू के प्रतिनिधि के रूप में राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह व अन्य नेताओं ने आयोग को जानकारी दी कि जदयू एक मान्यता प्राप्त दल है जिसका चुनाव चिह्न 'तीर' है। जबकि, जेएमएम और शिवसेना के चुनाव चिह्न 'तीर-धनुष' हैं। दोनों चुनाव चिह्न एक जैसे होने की वजह से बिहार में मतदाताओं के बीच संशय हो जाता है। विशेषकर वैसे निरक्षर मतदाता, जो जदयू को वोट करना चाहते हैं, एक जैसे चुनाव चिह्न की वजह से गलत जगह वोट देकर आ जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए जदयू ने तीर धनुष चुनाव चिह्न को बिहार में प्रतिबंधित करने की मांग की।
आयोग ने किया ये फैसला
जदयू की शिकायत के आलोक में चुनाव आयोग ने हर पहलू की जांच की। आयोग ने उठाए गए बिन्दुओं को सही पाने के बाद बिहार में जदयू के चिह्न को मान्यता दी, जबकि जेएमएम और शिवसेना के चुनाव चिह्न पर बिहार में रोक लगाने का फैसला करते हुए इस संबंध में आदेश जारी कर दिया।
कोर्ट पहुंचा चुनाव चिह्न का विवाद
बिहार में जेएमएम के चुनाव चिह्न पर रोक लगाए जाने का मामला अब पटना हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। पार्टी के बिहार अध्यक्ष प्रणव कुमार और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सती रमण सिंह कहते हैं कि चुनाव आयोग ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए पार्टी के चुनाव चिह्न को बिहार में अमान्य करार दिया है। दोनों नेताओं का कहना है कि जदयू का गठन 2003 में हुआ, जबकि जेएमएम 1989 से बिहार में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के रूप में सक्रिय है। यदि आयोग को जेएमएम के चुनाव चिह्न पर किसी प्रकार की आपत्ति थी तो पार्टी को तार्किक तरीके से कम से कम एक बार अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए था।
दोनों नेताओं ने बताया कि आयोग को इस संबंध में पत्र लिखा गया है। साथ ही पार्टी ने पटना हाईकोर्ट में रिट भी दायर की है, जिस पर जल्द ही सुनवाई संभावित है।
जेएमएम को 30 वर्ष पहले मिली थी मान्यता
जेएमएम को निर्वाचन आयोग ने एकीकृत बिहार में 1989 में राजनीतिक दल की मान्यता प्रदान की थी। इसके पहले 1985 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा और नौ विधान सभा सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते थे। 1990 में जेएमएम 19 विधानसभा क्षेत्रों में पंजीकृत राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त दल के रूप में स्थापित हुई। 1995 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 और 2000 के चुनाव में 12 विधानसभा सीटों पर विजय पाई। 15 नवंबर 2000 को बिहार के विभाजन के बाद नवगठित झारखंड में जेएमएम मुख्य विपक्षी के रूप में स्थापित हुई। वर्तमान में जेएमएम का कार्यक्षेत्र झारखंड सहित बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम जैसे राज्यों में है।
1966 में अस्तित्व में आई शिवसेना
महाराष्ट्र के प्रमुख राजनीतिक दल शिवसेना की स्थापना बाला साहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को की थी। महाराष्ट्र के लोगों के स्थानीय मुद्दों को लेकर शिवसेना गठित की गई। शिवसेना के गठन के समय बाला साहेब ठाकरे ने नारा दिया था 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 प्रतिशत राजनीति। बिहार में शिवसेना कई वर्षों से चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारती रही है।
जानिए क्या है मामला
पिछले दिनों चुनाव आयोग के बिहार में समीक्षा दौरे के क्रम में जदयू ने राजनीतिक दलों की बैठक में चुनाव आयोग के समक्ष चुनाव चिह्न का मुद्दा उठाया था। जदयू के प्रतिनिधि के रूप में राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह व अन्य नेताओं ने आयोग को जानकारी दी कि जदयू एक मान्यता प्राप्त दल है जिसका चुनाव चिह्न 'तीर' है। जबकि, जेएमएम और शिवसेना के चुनाव चिह्न 'तीर-धनुष' हैं। दोनों चुनाव चिह्न एक जैसे होने की वजह से बिहार में मतदाताओं के बीच संशय हो जाता है। विशेषकर वैसे निरक्षर मतदाता, जो जदयू को वोट करना चाहते हैं, एक जैसे चुनाव चिह्न की वजह से गलत जगह वोट देकर आ जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए जदयू ने तीर धनुष चुनाव चिह्न को बिहार में प्रतिबंधित करने की मांग की।
आयोग ने किया ये फैसला
जदयू की शिकायत के आलोक में चुनाव आयोग ने हर पहलू की जांच की। आयोग ने उठाए गए बिन्दुओं को सही पाने के बाद बिहार में जदयू के चिह्न को मान्यता दी, जबकि जेएमएम और शिवसेना के चुनाव चिह्न पर बिहार में रोक लगाने का फैसला करते हुए इस संबंध में आदेश जारी कर दिया।
कोर्ट पहुंचा चुनाव चिह्न का विवाद
बिहार में जेएमएम के चुनाव चिह्न पर रोक लगाए जाने का मामला अब पटना हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। पार्टी के बिहार अध्यक्ष प्रणव कुमार और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सती रमण सिंह कहते हैं कि चुनाव आयोग ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए पार्टी के चुनाव चिह्न को बिहार में अमान्य करार दिया है। दोनों नेताओं का कहना है कि जदयू का गठन 2003 में हुआ, जबकि जेएमएम 1989 से बिहार में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के रूप में सक्रिय है। यदि आयोग को जेएमएम के चुनाव चिह्न पर किसी प्रकार की आपत्ति थी तो पार्टी को तार्किक तरीके से कम से कम एक बार अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए था।
दोनों नेताओं ने बताया कि आयोग को इस संबंध में पत्र लिखा गया है। साथ ही पार्टी ने पटना हाईकोर्ट में रिट भी दायर की है, जिस पर जल्द ही सुनवाई संभावित है।
जेएमएम को 30 वर्ष पहले मिली थी मान्यता
जेएमएम को निर्वाचन आयोग ने एकीकृत बिहार में 1989 में राजनीतिक दल की मान्यता प्रदान की थी। इसके पहले 1985 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा और नौ विधान सभा सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते थे। 1990 में जेएमएम 19 विधानसभा क्षेत्रों में पंजीकृत राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त दल के रूप में स्थापित हुई। 1995 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 और 2000 के चुनाव में 12 विधानसभा सीटों पर विजय पाई। 15 नवंबर 2000 को बिहार के विभाजन के बाद नवगठित झारखंड में जेएमएम मुख्य विपक्षी के रूप में स्थापित हुई। वर्तमान में जेएमएम का कार्यक्षेत्र झारखंड सहित बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम जैसे राज्यों में है।
1966 में अस्तित्व में आई शिवसेना
महाराष्ट्र के प्रमुख राजनीतिक दल शिवसेना की स्थापना बाला साहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को की थी। महाराष्ट्र के लोगों के स्थानीय मुद्दों को लेकर शिवसेना गठित की गई। शिवसेना के गठन के समय बाला साहेब ठाकरे ने नारा दिया था 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 प्रतिशत राजनीति। बिहार में शिवसेना कई वर्षों से चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारती रही है।