पढ़िए- वो 5 कारण जिसकी वजह से नहीं हो पाया दिल्ली में AAP-कांग्रेस गठबंधन

कांग्रेस किसी भी हालत में हरियाणा में AAP से गठजोड़ के लिए राजी नहीं हुई। इसके पीछे एक बड़ी वजह इसी साल होने वाला हरियाणा विधानसभा चुनाव-2019 भी है जो साल के अंत में होगा।

By JP YadavEdited By: Publish:Wed, 10 Apr 2019 09:32 AM (IST) Updated:Thu, 11 Apr 2019 01:35 PM (IST)
पढ़िए- वो 5 कारण जिसकी वजह से नहीं हो पाया दिल्ली में AAP-कांग्रेस गठबंधन
पढ़िए- वो 5 कारण जिसकी वजह से नहीं हो पाया दिल्ली में AAP-कांग्रेस गठबंधन

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव-2019 के तहत दिल्ली की सात सीटों पर 12 मई को होने वाले मतदान में 31 दिन का समय बचा है, लेकिन देशभर की निगाहें दिल्ली पर लगी हुई थीं। खासकर महीने भर से अधिक समय से आम आदमी पार्टी (AAM AADMI PARTY) और कांग्रेस (Congress) में गठबंधन की चर्चा थी, जिस पर दोनों पार्टियों किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाईं। अाखिरकार बुधवार को AAP के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने औपचारिक रूप से ऐलान कर दिया कि अब कांग्रेस के साथ AAP का गठबंधन नहीं हो पाएगा। आइए जानते वो 5 बड़े कारण जिनकी वजह से AAP-कांग्रेस की बीच दिल्ली की सातों सीटों पर गठबंधन नहीं हो पाया।

एक: AAP की एक शर्त ने बढ़ाई थी दिक्कत

आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी से हरियाणा में भी लोकसभा सीटों पर गठबंधन करना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस किसी भी हालत में हरियाणा में AAP से गठजोड़ के लिए राजी नहीं थी। इसके पीछे एक बड़ी वजह इसी साल होने वाला हरियाणा विधानसभा चुनाव-2019 भी है, जो साल के अंत में होगा। ऐसे में कांग्रेस जाहिर तौर पर हरियाणा में खुद को काफी मजबूत मान रही है। उसका मानना है कि लोकसभा में हरियाणा की सीटों पर गठबंधन करने की स्थिति में उसे हरियाणा विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा। यूं भी कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि हरियाणा में AAP का कोई जनाधार नहीं, ऐसे में उससे लोकसभा में ही गठबंधन करना समझदारी भरा कदम नहीं होगा और ऐसे में विधानसभा चुनाव में गठबंधन दूर की कौड़ी है।

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दो: AAP से कमजोर नहीं दिखना चाहती थी कांग्रेस

AAP से शुरू से ही गठबंधन का विरोधी दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का एक धड़ा यह स्वीकार कर ही नहीं पा रहा था कि कांग्रेस दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी से कमजोर है और छोटे भाई की भूमिका में होगी। यह धड़ा मानता था कि कांग्रेस के पुराने मतदाता वापस लौटे हैं, क्योंकि AAP सरकार से नाराजगी बढ़ी है। पिछले विधानसभा के उपचुनाव भी इसकी तस्वीक करते हैं। माना जा रहा है कि राज्य में AAP से और केंद्र में भाजपा से नाराज मतदाता कांग्रेस को मजूबत करेंगे।

तीन: क्या शीला के एतराज में था दम

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अगर दिल्ली में ही AAP-कांग्रेस में गठबंधन होता, तो क्या विधानसभा चुनाव भी साथ ही लड़ते? दरअसल, वर्ष-2020 में होने दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) में एक साल से भी कम का समय बचा है।  दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष शीला दीक्षित इसी वजह से AAP से गठबंधन का विरोध कर रही थीं। वहीं माना जा रहा है कि गठबंधन के बाद कांग्रेस का विधानसभा की 30 सीटें मिलतीं। ऐसे में जनता से कांग्रेस पार्टी किस आधार पर AAP वोट मांगती?

चार: फायदे में रहते केजरीवाल, घाटे में रहती कांग्रेस

दिल्ली की राजनीति को करीब से जानने-समझने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 2019 में दिल्ली में AAP के साथ कांग्रेस गठबंधन करके लड़ती है तो ज्यादा फायदा केजरीवाल को होता न कि कांग्रेस को। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस के समर्थन से AAP उम्मीदवार सीट जीत जाते और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता।

पांच: राहुल गांधी राजी तो सब राजी

हाल ही में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनाई गईं शीला दीक्षित और उनके साथ अन्य तीन कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया, देवेंद्र यादव और हारूर यूसुफ भी AAP से गठबंधन को लेकर ज्यादा इच्छुक नहीं थे। वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के दिग्गज कांग्रेस नेता अजय माकन ही AAP से गठबंधन के पक्ष में थे। वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि AAP से गठबंधन का फैसला राहुल गांधी पर ही छोड़ दिया गया था। राहुल गांधी भी असमंजस में थे, यही वजह है कि महीने भर के दौरान उनका फैसला नहीं आया था।

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