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    दुन‍िया का सबसे बड़ा क‍िचन, जहां रोजाना लाखों लोगों को फ्री में म‍िलता है गरमा-गरम खाना

    Updated: Fri, 25 Apr 2025 02:05 PM (IST)

    स्वर्ण मंदिर का लंगर न केवल दुनिया की सबसे बड़ी मुफ्त रसोई है बल्कि यह इस बात का भी जीता जागता उदाहरण है कि सेवा और श्रद्धा से कोई भी कार्य असंभव नहीं होता है। स्‍वर्ण मंद‍िर एक ऐसी जगह है जहां खाने के साथ-साथ आत्मिक शांति और मानवता की मिसाल भी देखने को मिलती है। एक बार हर क‍िसी को यहां जरूर आना चाह‍िए।

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    यहां 24 घंटे और सातों द‍िन चलता है लंगर।

    लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। जैसा क‍ि आप सभी जानते हैं भारत वि‍व‍िधता का देश है। भारत में जहां घूमने के ल‍िए आपको कई जगहें म‍िल जाएंगी जो बेहद खूबसूरत हैं, ठीक उसी प्रकार, यहां ऐसे कई मंद‍िर और गुरुद्वारे हैं जो पूरी दुन‍िया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। उन्‍हीं में से एक पंजाब के अमृतसर का गोल्‍डन टेंपल है।

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    ये सिख धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है। इसके अलावा स्‍वर्ण मंद‍िर को श्री हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। स्वर्ण मंदिर के पास एक कुंड है, जिसे अमृत सरोवर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। स्‍वर्ण मंद‍िर में रोजाना लंगर भी चलता है। यहां चलने वाली 'गुरु का लंगर' सेवा दुन‍िया की सबसे बड़ी फ्री रसोई मानी जाती है।

    ऐसा कहा जाता है क‍ि यहां रोजाना एक लाख भक्‍त लंगर खाते हैं। क‍िसी खास मौकों पर तो ये संख्या डेढ़-दो लाख तक भी पहुंच जाती है। इसकी खासि‍यत है क‍ि ये लंगर 24 घंटे और सातों दि‍न तक चलता है। आइए लंगर से जुड़ी कुछ जरूरी बातें वि‍स्‍तार से जानते हैं-

    लंगर की परंपरा और मकसद

    आपकाे बता दें क‍ि इस लंगर की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने वर्ष 1481 में की थी। इसका मकसद बस ये था कि हर इंसान, चाहे उसका धर्म, जाति, वर्ग कुछ भी हो, एक साथ बैठकर समान रूप से खाना खा सके। यह केवल खाना नहीं, बल्कि समानता और सेवा की भावना का भी प्रतीक माना जाता है।

    कैसे चलता है यह विशाल लंगर?

    स्वर्ण मंदिर में दो बड़े हॉल बनाए गए हैं, जहां हर शिफ्ट में हजारों लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं। भोजन पूरी तरह फी होता है और सेवा का ज‍िम्मा सैकड़ों वॉलंटियर्स के कंधों पर होता है। दिलचस्प बात यह है कि इन स्वयंसेवकों में कोई प्रोफेशनल कुक या वेटर नहीं होता, बल्कि श्रद्धा से सेवा करने वाले आम लोग होते हैं। इनकी संख्‍या भी सैकड़ों में होती है।

    रसोई में क्या-क्या लगता है?

    रोजाना इस रसोई में लगभग 100 क्‍व‍िंटल गेहूं, 25 क्‍व‍िंटल दाल, 10 व‍िंटल चावल, पांच हजार लीटर दूध, 10 क्‍व‍िंटल चीनी, 5 क्‍व‍िंटल शुद्ध घी और सब्जियों का इस्‍तेमाल हाेता है। वहीं 100 से ज्‍यादा स‍िलेंडर भी प्रयोग की जाती हैं। 100 से ज्‍यादा कर्मचारी रसोई की ज‍िम्‍मेदारी संभालते हैं। यहां एक विशेष मशीन भी लगाई गई है जो एक घंटे में 25 हजार रोटियां बना सकती है। इसके अलावा बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में दाल, सब्जी और खीर बनाई जाती है।

    नहीं ल‍िया जाता कोई फंड

    इस लंगर की खास बात ये है क‍ि इसे चलाने के ल‍िए सरकार से क‍िसी भी तरह का फंड नहीं ल‍िया जाता है। जो भी मंद‍िर में दान दक्ष‍िणा देकर जाता है, उसी से इसकी तैयारी की जाती है। लोग पैसे, अनाज, दूध, घी या अपनी सेवा देकर सहयोग करते हैं। सिख धर्म में ‘दसवंध’ यानी कमाई का दसवां हिस्सा सेवा में लगाने की परंपरा है, जिससे लाखों लोग योगदान देते हैं।

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    पहले से तय हाेता है मेन्‍यू

    इस लंगर में रोजाना एक लाख से ज्‍यादा लोग खाना खाते हैं। भक्‍तों को सेवादार ही खाना ख‍िलाते हैं। जब एक पंक्ति खाकर उठ जाती है तो मशीन से हॉल की तुरंत सफाई होती है। यहां का खाना बेहद स्‍वाद‍िष्‍ट होता है। खाने का मेन्‍यू पहले से तय होता है।

    केवल भोजन नहीं, एक संदेश

    यह लंगर सिर्फ भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि मानवता और एकता का संदेश भी देता है। यहां अमीर-गरीब, हिंदू-मुसलमान, देशी-विदेशी, हर कोई एक साथ बैठकर अपनी मर्जी से खाना खाता है। यह दृश्य एक ऐसे समाज की कल्पना कराता है, जहां कोई भेदभाव न हो। दुनियाभर के सभी गुरुद्वारों में लंगर की व्यवस्था होती है, लेकिन स्वर्ण मंदिर का लंगर अपने आप में अनोखा है।

    कैसे पहुंचे गोल्‍डन टेंपल?

    अगर आप अमृतसर के स्‍वर्ण मंद‍िर जाने की सोच रहे हैं ताे यहां हवाई, सड़क और रेलमार्ग तीनों ही तरह से पहुंचा जा सकता है। यहां सबसे नजदीक अमृतसर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। आप यहां से डायरेक्ट टैक्सी लेकर मंद‍िर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा अमृतसर का रेलवे स्टेशन भी गुरुद्वारे से काफी नजदीक है। आप सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं।

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