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    ताजमहल से भी पहले बना था 'बेबी ताज', बेहद दिलचस्प है इस मकबरे की कहानी

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 11:48 AM (IST)

    अगर आगरा का जिक्र होता है, तो सबसे पहले ताजमहल की तस्वीर जेहन में आती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताज से बहुत पहले, यमुना किनारे एक और नगीना चमक उठा था? जी हां, नूरजहां ने अपने माता-पिता की याद में बनवाया था इत्माद-उद-दौला का मकबरा। यह न सिर्फ मुगल स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि ताजमहल की प्रेरणा भी माना जाता है।

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    आपने सुना है 'बेबी ताज' का नाम? प्यार की वो निशानी जो ताजमहल की प्रेरणा बनी (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। नूरजहां, जिनका असली नाम ‘मेहरून्निसा’ था, एक समय ईरान से आए एक शरणार्थी परिवार की बेटी थीं। उनके माता-पिता, गयासुद्दीन बेग और अस्मत बेगम, कठिन परिस्थितियों में अपना वतन छोड़कर हिंदुस्तान आ गए थे। रास्ते में अस्मत बेगम गर्भवती थीं, मगर उन्हें यह अंदाजा भी नहीं था कि उनकी संतान एक दिन हिंदुस्तान की सबसे प्रभावशाली महिला बनेगी।

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    मेहरून्निसा की बुद्धिमानी और समझदारी ने उन्हें सम्राट जहांगीर के दरबार तक पहुंचाया। समय के साथ वे नूरजहां बनीं, 'जहां की रोशनी', लेकिन उनकी शक्ति केवल सौंदर्य या आकर्षण से नहीं, बल्कि उनकी बुद्धि और निर्णय क्षमता से आई थी।

    पिता के लिए बेटी का प्यार

    जब नूरजहां के पिता, गयासुद्दीन बेग (जिन्हें जहांगीर ने “इतमाद-उद-दौला” यानी ‘साम्राज्य का स्तंभ’ की उपाधि दी थी) और माता अस्मत बेगम का निधन हुआ, तो नूरजहां ने अपने निजी धन से उनके लिए एक भव्य मकबरा बनवाया। 1622 में शुरू होकर लगभग छह साल में तैयार हुआ यह स्मारक 162 में पूर्ण हुआ।

    यह मकबरा एक दीवार से घिरे बगीचे में स्थित है, जिसे फारसी ‘चारबाग’ शैली में बनाया गया- जहां पानी की नहरें चार भागों में बंटी होती हैं, जो स्वर्ग के प्रतीक मानी जाती हैं।

    पहली बार हुआ सफेद संगमरमर का इस्तेमाल

    इतमाद-उद-दौला का मकबरा अक्सर ‘बेबी ताज’ कहलाता है, लेकिन यह नाम उसके सौंदर्य के साथ न्याय नहीं करता। यह स्मारक आकार में छोटा जरूर है, पर इसकी सुंदरता ताजमहल से कम नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पहली बार मुगल स्थापत्य में संपूर्ण सफेद संगमरमर का उपयोग इसी मकबरे में हुआ था। इससे पहले लाल बलुआ पत्थर मुगल इमारतों की पहचान था। नूरजहां ने संगमरमर में बारीक रंगीन पत्थरों की जड़ाई (पिएत्रा ड्यूरा) करवा कर इमारत को एक ‘ज्वेल बॉक्स’ जैसा रूप दिया और यही शैली बाद में शाहजहां ने ताजमहल में अपनाई।

    बारीकियों में छिपी बेमिसाल खूबसूरती

    मकबरे की खूबसूरती उसकी बारीकियों में छिपी है। इसकी चारों कोनों पर अष्टकोणीय मीनारें हैं, बीच में मुख्य कक्ष है जहां गयासुद्दीन बेग और अस्मत बेगम की कब्रें स्थित हैं। अंदर की दीवारों पर संगमरमर में फूलों, बेलों और ज्यामितीय डिजाइनों की जड़ाई की गई है। छोटे-छोटे झरोखों से आती सुनहरी धूप इन डिजाइनों को और जीवंत बना देती है। यह सिर्फ एक मकबरा नहीं, बल्कि नूरजहां की भावनाओं और कला-दृष्टि का प्रतीक है।

    एक स्त्री जिसने खुद बनाई अपनी पहचान

    नूरजहां को इतिहास में अक्सर एक सुंदर रानी के रूप में देखा गया है, पर वे अपने समय की सबसे शक्तिशाली और शिक्षित महिलाओं में से थीं। जहांगीर के शासन के दौरान, जब बादशाह नशे और बीमारी से जूझ रहे थे, तब कई निर्णय नूरजहां के ही नेतृत्व में लिए गए। वे मुगल दरबार में आदेश जारी करने वाली पहली महिला बनीं। उनके पिता की उपाधि “इत्माद-उद-दौला” को उन्होंने इस मकबरे के माध्यम से अमर बना दिया।

    समय की रेत में छिपी विरासत

    जहांगीर की मृत्यु के बाद नूरजहां का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त हो गया। वे लाहौर चली गईं और वहीं 68 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। उनकी कब्र आज भी लाहौर में जहांगीर के मकबरे के पास स्थित है। फिर भी, उनका योगदान समय की धूल में नहीं खोया। चार शताब्दियां बीत जाने के बाद भी, नूरजहां की यह कृति आगरा की शान बनी हुई है। इत्माद-उद-दौला का मकबरा न केवल एक बेटी का अपने माता-पिता के प्रति प्रेम है, बल्कि यह उस युग की महिला की बुद्धिमत्ता, शक्ति और सौंदर्य दृष्टि का भी प्रमाण है।

    इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां ने जब ताजमहल का निर्माण शुरू किया, तब उन्होंने नूरजहां के इस मकबरे से प्रेरणा ली। संगमरमर की चमक, जड़ाई का काम और बगीचे की रचना, सब कुछ उस “पहले सफेद संगमरमर के मकबरे” की याद दिलाते हैं।

    अगर ताजमहल ‘प्रेम का प्रतीक’ है, तो इतमाद-उद-दौला का मकबरा ‘श्रद्धा और स्मृति का प्रतीक’ कहा जा सकता है। नूरजहां ने न केवल अपने पिता को अमर करने के लिए यह स्मारक बनवाया, बल्कि भारतीय स्थापत्य में एक नया अध्याय भी जोड़ा आगरा की गलियों में जब भी यमुना की ठंडी हवा चलती है, तो लगता है जैसे आज भी उस हवा में नूरजहां की परंपरा, कला और प्रेम की खुशबू तैर रही हो।

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