खुले आसमान के नीचे 3000 फीट की ऊंचाई पर विराजमान हैं 'एकदंत गणपति', एक हजार साल पुराना है इतिहास
क्या आपने कभी सोचा है कि एक हजार साल पुरानी गणेश प्रतिमा जो 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हो उसे बनाने वाले कारीगरों ने यह कैसे किया होगा? दरअसल दसवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच नागवंशी शासकों द्वारा स्थापित यह मूर्ति लगभग 3 फीट ऊंची है और एक ही काले ग्रेनाइट पत्थर को तराशकर बनाई गई है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में गणेशोत्सव केवल शहरों की रौनक और पंडालों की भव्यता तक सीमित नहीं है। जी हां, छत्तीसगढ़ के बस्तर के घने जंगलों में 3000 फीट ऊंचाई पर विराजमान ढोलकल गणेश की प्रतिमा इस बात का प्रमाण है कि आस्था और इतिहास किस तरह एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। लगभग 1000 साल पुराना यह स्थान (Dholkal Ganesh Temple) आज भी रहस्यों, लोककथाओं और श्रद्धा का अद्भुत संगम है। आइए, यहां आपको बताते हैं इससे जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
परशुराम से हुआ था गणेशजी का सामना
दंतेवाड़ा जिले में स्थित यह अनोखी प्रतिमा 11वीं शताब्दी में नागवंशी शासकों द्वारा स्थापित की गई मानी जाती है। काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी यह मूर्ति करीब ढाई से तीन फीट ऊंची है और इसका वजन लगभग 500 किलो है। बता दें, इसे ढोलक के आकार वाले पत्थर से तराशा गया है, जिससे इस जगह का नाम ‘ढोलकल’ पड़ा। भगवान गणेश यहां लालितासन मुद्रा में विराजमान हैं, जैसे कि मानो पूरे बस्तर के जंगलों पर उनकी निगाह हो।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां परशुराम और गणेशजी का सामना हुआ था। कहा जाता है कि फरसे (कुल्हाड़ी) के वार से गणपति का एक दांत टूट गया और पास का गांव ‘फरसपाल’ इसी कथा से अपना नाम पाता है। आज भी इस गांव में परशुराम का छोटा मंदिर मौजूद है, जो इस कहानी को जीवित रखता है।
खुलें आसमान के नीचे विराजमान हैं ढोलकल गणेश
ढोलकल गणेश की प्रतिमा को खास बनाता है उसका स्वरूप। पारंपरिक जनेऊ की जगह यहां नागवंश के प्रतीक- सांप की आकृति तराशी गई है। इसे नागवंशी राजवंश के प्रभाव और पहचान का प्रतीक माना जाता है। खुले आसमान के नीचे बिना किसी मंदिर या छत के यह प्रतिमा अपने आप में एक अद्वितीय धरोहर है।
घने जंगलों से होकर गुजरता है रास्ता
ढोलकल तक पहुंचने का रास्ता भी किसी रोमांच से कम नहीं है। फरसपाल गांव से करीब 7 किलोमीटर का पैदल सफर घने जंगलों से होकर जाता है। इस यात्रा में कहीं मोगरे की खुशबू वाले रास्ते मिलते हैं तो कहीं विशाल चींटी के टीले। बीच में छोटे-छोटे झरने और प्राचीन सूर्य और देवी माता के भग्न मंदिरों के अवशेष भी दिखाई देते हैं।
जनजातीय संस्कृति से जुड़ाव
बस्तर की आदिवासी समुदायों के लिए यह केवल तीर्थ नहीं, बल्कि उनकी परंपराओं का हिस्सा है। स्थानीय भोगामी जनजाति की मान्यता है कि उनका वंश ढोलकल से जुड़ा है। एक पुरानी लोककथा कहती है कि यहां एक महिला पुजारी द्वारा शंख बजाने की आवाज गांवों तक सुनाई देती थी। हर साल माघ मास में यहां विशेष मेले का आयोजन होता है जिसमें आसपास के गांवों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
कैसे पहुंचे ढोलकल गणेश मंदिर?
हवाई मार्ग
रायपुर और विशाखापत्तनम सबसे नजदीकी प्रमुख हवाई अड्डे हैं, ये दोनों स्थान जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से सड़क मार्ग द्वारा लगभग 400 किलोमीटर की समान दूरी पर हैं। जगदलपुर सबसे नजदीकी मिनी हवाई अड्डा है, जिसकी उड़ान सेवाएं रायपुर और विशाखापत्तनम दोनों से जुड़ी हुई हैं।
रेल मार्ग
विशाखापत्तनम जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से रेल मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। विशाखापत्तनम और दंतेवाड़ा के बीच दो दैनिक ट्रेनें उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग
रायपुर और दंतेवाड़ा के बीच नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। दंतेवाड़ा हैदराबाद और विशाखापत्तनम से भी नियमित बस सेवाओं द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
क्या है दर्शन का सही समय?
सर्दियों का मौसम (दिसंबर से फरवरी) इस ट्रिप के लिए सबसे बेस्ट है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और रास्ते सुरक्षित रहते हैं। बारिश के मौसम में यहां फिसलन और खतरे की संभावना बढ़ जाती है।
गणेश उत्सव 2025 पर अगर आप भीड़-भाड़ से अलग, प्रकृति की गोद में छिपी आध्यात्मिक शांति का एहसास करना चाहते हैं, तो ढोलकल गणेश के दर्शन का प्लान बना सकते हैं।
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