भगवान शिव को समर्पित है दो देशों की लड़ाई का कारण बना Preah Vihear Temple, जानें क्यों है ये खास
पिछले कुछ समय से थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव जारी है जो अब युद्ध में बदल गया है। दोनों देशों के बीच यह सैन्य संघर्ष एक मंदिर को लेकर है। प्रीह विहिर मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है। मंदिर की खास वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व इसे खास बनाते हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बीते कुछ समय से दुनिया भर में अलग-अलग देशों के बीच जंग जारी हैं। इसी बीच अब दक्षिण पूर्व एशिया के मुल्क भी एक-दूसरे के सामने आ चुकी है। लंबे समय से थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहा तनाव अब युद्ध में बदल चुका है। यह सैन्य संघर्ष पिछले कुछ दिनों से लगातार जारी है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि ये दोनों देश किस मुद्दे को लेकर युद्ध के मैदान पर उतर आए हैं? इसका जवाब सुनकर हैरान करने वाला है। दरअसल, यह दोनों देश एक मंदिर को लेकर लड़ रहे हैं। जी हां, भारत से करीब 5,000 किलोमीटर दूर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक मंदिर को लेकर युद्ध छिड़ गया है। आइए आज आपको बताते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से।
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(Picture Credit- UNESCO)
किस भगवान को समर्पित है यह मंदिर?
प्रीह विहिर मंदिर शिव को समर्पित है, जो कंबोडिया के मैदान पर मौजूद एक पठार के किनारे पर स्थित है। यह एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जो लंबे समय से विवादों का केंद्र रहा है। यूनेस्को के मुताबिक यह मंदिर 11वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया था और यह खमेर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। हालांकि, इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से जुड़ा है। यह 800 मीटर लंबा है और शहर से काफी दूर बने होने की वजह से आज भी अच्छी तरह से संरक्षित है।
(Picture Credit- UNESCO)
बेहद खास है मंदिर की वास्तुकला
प्रीह विहिर मंदिर अपनी खास वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इसकी खास खमेर स्थापत्य शैली इसे अन्य अंगकोरियाई मंदिरों से अलग बनाता है। इस इमारत में एक से अधिक गर्भगृह हैं जो फुटपाथों, सीढ़ियों, दीर्घाओं और प्रांगणों से जुड़े हैं। जटिल बलुआ पत्थर की नक्काशी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
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किस भगवान की होती है पूजा?
जानकारों की मानें, इस मंदिर में शुरुआत में भगवान शिव की पूजा की जाती थी, लेकिन समय के साथ, इस स्थल ने बौद्ध महत्व भी प्राप्त कर लिया। दरअसल, 12वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म को मानने वाले एक प्रमुख राजा, जयवर्मन सप्तम के शासनकाल में इस मंदिर में बौद्ध धर्म के कार्य होने लगे। यहां पर मौजूद आज भी एक छोटा बौद्ध मठ मौजूद है, जो इस बात का प्रमाण देता है।
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Source:
- UNESCO: https://whc.unesco.org/en/list/1224/
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