मध्य प्रदेश के इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुए थे भगवान गणेश, क्या है यहां उल्टा स्वास्तिक बनाने की परंपरा?
गणेश चतुर्थी के मौके पर भक्त भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उनसे अपनी इच्छाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। इसके साथ बप्पा को तरह-तरह के भोग लगाते हैं। इसके अलावा भक्त बप्पा के मंदिरों में जाकर भी दर्शन पूजन करते हैं। मध्य प्रदेश में भी एक ऐसा मंदिर है जिसका इतिहास बेहद पुराना है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इन दिनों गणेश चतुर्थी की धूम चारों ओर देखने को मिल रही है। भक्त गणपति बप्पा को कई तरह के भोग अर्पित कर रहे हैं। साथ ही उनसे अपनी इच्छाओं को पूरा करने की कामना कर रहे हैं। 10 दिनों तक मनाए जाने वाले गणेश उत्सव में भक्त देश में मौजूद गणेश मंदिरों में भी जाते हैं। इन मंदिरों की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है। आपको बता दें कि गणेश चतुर्थी का जिक्र आते ही मन में पॉजिटिविटी और खुशियों का माहौल अपने आप बन जाता है।
ये त्योहार हर किसी के लिए खास होता है। बप्पा के दर्शन, विघ्नहर्ता से आशीर्वाद लेना और मोदक का स्वाद लेना, ये सब भला किसे नहीं पसंद होगा। इन्हीं वजहों से ये त्योहार और भी खास और यादगार बन जाता है। मंदिरों की बात करें तो मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में माैजूद चिंतामन गणेश मंदिर अपने आप में एक खास इतिहास समेटे हुए है। ये मंदिर पूरी दुनिया में फेमस है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
अपने आप प्रकट हुए थे गणेश मंदिर
आपको बता दें कि ये मंदिर उन चुनिंदा स्वयंभू गणेश मंदिरों में गिना जाता है। इसका मतलब जो अपने आप प्रकट हुए हैं। हर साल यहां भारी संख्या में भक्त बप्पा के दर्शन करने पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास महाराजा विक्रमादित्य के समय से जुड़ा हुआ है। उस दौरान सीहोर को सिद्धपुर कहा जाता था।
सपने में आए थे भगवान गणेश
ये भी कहते हैं कि करीब दो हजार साल पहले उज्जयिनी (अवंतिका) के राजा चिंतामन गणेश की पूजा करते थे। एक बार भगवान गणेश जी ने उनके सपने में उन्हें दर्शन दिया। सपने में भगवान गणेश ने उन्हें बताया कि वे मंदिर के पश्चिम में किसी नदी में कमल के रूप में दिखाई देंगे। गणेश जी ने राजा को उस फूल को लाकर कहीं भी रखने का आदेश दिया।
राजा ने वहीं बना दिया मंदिर
राजा ने ऐसा ही किया। लेकिन लौटते समय उनके रथ का पहिया कीचड़ में फंस गया और बाहर नहीं निकल पाया। जैसे ही सूरज निकला ताे कमल का फूल गणेश जी की मूर्ति में बदल गया। जो आधा जमीन में धंसा हुआ था। राजा ने मूर्ति को बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। ये देखकर राजा ने वहीं पर मंदिर बनाने का फैसला कर लिया।
उल्टा स्वस्तिक बनाने की है परंपरा
इस मंदिर की एक खास परंपरा ये भी है कि मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाना होता है। आमतौर पर स्वस्तिक को शुभता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यहां भक्त उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। विश्वास है कि ऐसा करने से जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वो पूरी जरूर होती है। जब इच्छा पूरी हो जाती है तो भक्त दोबारा आकर सही स्वास्तिक बनाते हैं।
ये परंपरा पहली बार सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन जो भी यहां आता है और इसके बारे में जानता है, वो श्रद्धा से उल्टा स्वास्तिक जरूर बनाता है। कह सकते हैं कि चिंतामन गणेश मंदिर में दर्शन करने से आपकी सभी कामनाएं पूरी हो सकती हैं।
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Source-
- https://www.mptourism.com/chintaman-ganesh-temple-sehore.html
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