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    क्या सोशल मीडिया के दलदल में धंसते किशोरों को बचाएगा Meta का 'टीन-सेफ' अकाउंट?

    Updated: Sun, 13 Apr 2025 04:53 PM (IST)

    इंटरनेट मीडिया की गलियां टीनएजर्स को गुमराह कर रही हैं। इसका सबूत यह है कि Meta कंपनी ने उनके लिए इंस्टाग्राम का एक खास Teen Account बनाया है। इस अकाउंट में टीनएजर्स की सुरक्षा और मेंटल हेल्थ को ध्यान में रखते हुए कई नियम बनाए गए हैं। मशहूर मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी बताते हैं कि मेंटल हेल्थ के लिए इस तरह के नियम क्यों जरूरी हैं।

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    'लाइक' और 'फॉलो' की रेस में गुम होता बचपन! (Image Source: Freepik)

    डॉ. हरीश शेट्टी, नई दिल्ली। ग्रेटर कैलाश निवासी सुमित नंदा अपने बेटे रोहित की स्मार्टफोन पर लगातार बने रहने की आदत से परेशान हैं। नोटिफिकेशन की एक आवाज उसे डिस्ट्रैक्ट कर देती है। हर कमेंट पर जवाब देना और अपनी तस्वीरों पर लाइक की गिनती रखना उसकी आदत है। सुमित की तरह कई पैरेंट्स इस बात से परेशान हैं कि उनके बच्चे इंटरनेट मीडिया की वजह से किसी दिक्कत में न पड़ जाएं। नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित वेब सीरीज ‘एडोलसेंस’ भी इंटरनेट मीडिया की वजह से किशोर व उसके परिवार के जीवन में हुई हलचल पर बात करती नजर आ रही है।

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    यह सीरीज किशोरवय बच्चों की मन:स्थिति, असुरक्षा, साइबर बुलिंग, इंटरनेट मीडिया के दुष्प्रभाव जैसे कई मुद्दों को उठाने के लिए चौतरफा चर्चा में है। आज इंटरनेट व इंटरनेट मीडिया के दौर में बच्चे चाहे किसी भी देश के हों, एक ही नाव में सवार हैं। आपको पता भी नहीं चलता कि कब उनके स्टडी रूम का कंप्यूटर पोर्न, फ्राड, साइबर बुलिंग या क्राइम की दुनिया में उनकी एंट्री या डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसे मनोरोगों की वजह बन गया।

    यह व्यवहार है खतरनाक

    एडोलसेंस यानी उम्र का वह दौर, जब 10 से 19 साल (डब्ल्यूएचओ के अनुसार) के बच्चों को जीवन में बाहरी और अंदरूनी कई बदलावों से गुजरना पड़ता है। आज स्मार्टफोन से लगातार जुड़े बच्चों में गुस्सा और अकेलापन बढ़ा है। बच्चे स्कूल-कालेज के दोस्तों के साथ कालेज असाइनमेंट के अलावा भी लगातार जुड़े रहते हैं, जिससे गाहे-बगाहे साइबर बुलिंग की शुरुआत हो जाती है।

    बच्चे माता-पिता को हर बात बताने से सकुचाते हैं। ऐसे में अगर बच्चे के व्यवहार में बदलाव देखें, दोस्तों के बारे में बातचीत के दौरान उनमें गुस्सा, हकलाहट या डर के निशान पाएं, स्कूल से लौटे बच्चों के शरीर पर चोट के निशान हों या गुस्से में किसी साथी-सहपाठी को मारने या चोट पहुंचाने जैसे संवाद सुनें तो यह खतरे की घंटी है। इस उम्र के बच्चों, विशेषकर लड़कों में एक चलन देखने को मिलता है, जहां वे मजबूत बनने के नाम पर टाक्सिक मैस्कुलिनिटी की ओर बढ़ जाते हैं। ‘अल्फा मेल’ बनने की होड़ में या लड़के जब बड़े हो रहे होते हैं तो उन्हें ‘टफ’, ‘बी ए मैन’ और ‘लड़के रोते नहीं’ जैसी बातें सुनाकर तैयार किया जाता है। ऐसे में कई बार वे किसी मनाही को ईगो पर ले लेते हैं और तैश में आकर अपराध कर बैठते हैं।

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    बात करने से बनेगी बात

    बच्चों को स्मार्टफोन से अलग करना मुश्किल है, मगर उन्हें समझाएं कि स्मार्टफोन के होते हुए भी वे बिना विचलित हुए लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। उन्हें समझाएं कि ‘खाना खाते समय या सोने के बजाय स्मार्टफोन पर रहना उनके ही जीवन को नुकसान पहुंचा रहा है’। उनसे बात करने के दौरान उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुनें। वे भी पढ़ाई, दोस्तों, सहपाठियों, अपनी शारीरिक स्थिति जैसी बातों को लेकर परेशान होते हैं। आपका हर बात पर आलोचनात्मक रवैया उन्हें आपसे अपनी मनोस्थिति जाहिर करने से रोकता है। ऐसे में यह उनके भीतर ही भीतर पलता जाता है, जो आगे जाकर कभी स्वयं को या कभी किसी करीबी या सहपाठी को नुकसान पहुंचाकर सामने आता है। तब तक स्थिति हाथ से निकल जाती है।

    ऐसे बचाएगा टीन अकाउंट

    आस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम आयु के बच्चों के लिए इंटरनेट मीडिया प्रतिबंधित कर दिया है। कई अन्य देश भी इस पर विचार कर रहे हैं। इसी क्रम में सामने आए इंस्टाग्राम के टीन अकाउंट्स में अनचाहे लोगों से इंटरैक्शन नहीं होगा, माता-पिता बच्चों के अकाउंट और एक्टिविटीज पर नजर रख पाएंगे। रात 10 बजे से सुबह सात बजे तक स्वत: स्लीप मोड चालू हो जाएगा। इस दौरान नोटिफिकेशन, डीएम रिप्लाई भी बंद रहेंगे।

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