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    क्‍या है Jellyfish Parenting? बच्चों की परवर‍िश में फायदेमंद है ये नया तरीका! जानें सब कुछ

    Updated: Mon, 07 Jul 2025 03:21 PM (IST)

    जेलीफिश पेरेंटिंग एक ऐसी परवरिश है जिसमें माता-पिता बच्चों को ज्‍यादा छूट देते हैं जिससे बच्चों के अनुशासन और जिम्मेदारी की समझ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। पश्चिमी देशों से शुरू हुई इस पेरेंटिंग तकनीक में माता-पिता बच्चों के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं करते जिससे वे अपने अनुभवों से सीखते हैं।

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    क्‍यों इन द‍िनों जेलीफ‍िश पेरेंट‍िंग का तरीका अपना रहे माता-प‍िता?

     लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। पेरेंटिंग के तरीके हर घर में अलग-अलग होते हैं। कोई बच्चों को लेकर सख्‍त रुख अपनाता है तो कोई उन्हें पूरी आजादी देता है। इन्हीं तरीकों में एक है ‘जेलीफिश पेरेंटिंग’। ये इन द‍िनों चर्चा में है। इस शब्द को सुनकर शायद आपको समुद्र में तैरती एक नर्म और ढीली जेलीफिश का ख्याल आ रहर होगा, और हो भी क्‍यों न, क्‍योंक‍ि Jellyfish होती तो मछली ही है। लेक‍िन यहां इसका मतलब थोड़ा अलग है।

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    जेलीफिश पेरेंटिंग का मतलब होता है ऐसी परवरिश जिसमें माता-पिता बच्चों को हर चीज के लिए ज्‍यादा छूट दे देते हैं। ऐसे पेरेंट्स बहुत नरम मिजाज के होते हैं और बच्चों के हर फैसले को बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लेते हैं। ना सख्ती होती है, ना कोई तय होती हैं। शुरुआत में ये तरीका बच्चों को खुश जरूर कर सकता है, लेकिन कई बार ये उनकी सोच, अनुशासन और जिम्मेदारी की समझ पर असर डाल सकता है।

    आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको बताएंगे क‍ि जेलीफिश पेरेंटिंग क्या होती है, इसके क्या फायदे या नुकसान हो सकते हैं, और किस तरह ये पेरेंटिंग स्टाइल बच्चों के काम आती है। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -

    क्‍या होती है Jellyfish Parenting?

    आपको बता दें क‍ि पेरेंटि‍ंग का ये ट्रेंड पश्च‍िमी देशों से आया है। ये पेरेंट‍िग का एक ऐसा तरीका है जो बच्‍चों को अपने बारे में फैसले करने की आजादी देता है। इस टेक्निक में एडॉप्टबिलिटी और फ्लेक्सिबिलिटी होने के कारण इसे जेलीफिश का नाम दिया गया है। इसमें पेरेंट्स बच्‍चों के लिए कोई बाउंड्रीज नहीं बनाते हैं। इसमें बच्चों को अपने एक्‍सपीर‍ियंस के ह‍िसाब से सीखने द‍िया जाता है। इससे उनकी क्रिएटिविटी और कॉन्फिडेंस दोनों ही बढ़ती है।

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    जेलीफिश पेरेंटिंग की क्‍या है खासियत

    • इसमें पेरेंट्स और बच्‍चों में बॉन्‍ड‍िंग मजबूत होती है।
    • बच्‍चे खुद से सही न‍िर्णय लेने में सक्षम हो पाते हैं।
    • बच्‍चों को इमोशनल सपोर्ट भी म‍िलता है।
    • वे ब‍िना क‍िसी झि‍झक के अपने माता-प‍िता से फीलि‍ंग्‍स शेयर कर पाते हैं।
    • बच्चों का कम्युनिकेशन स्किल भी अच्‍छा हाेता है।

    इसके नुकसान भी हैं

    • इससे बच्‍चे अनुशास‍ित नहीं होते हैं।
    • कई बार वे असमंजस में जीने लगते हैं।
    • बच्‍चे ज‍िम्‍मेदार‍ियों को समझने में कठ‍िनाई महसूस करते हैं।
    • वे लोगों से डील करने का तरीका नहीं समझ पाते हैं।
    • कई बार बच्चे पेरेंट्स से गलत व्यवहार भी करने लगते हैं।

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