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    Ram Navami 2025: चाहते हैं श्रीराम जैसी बने आपकी संतान, तो रामायण से सीखें अच्छी परवरिश के खास गुण

    Updated: Sat, 05 Apr 2025 11:59 PM (IST)

    हर कोई चाहता है कि उनकी संतान श्रीराम जैसी आदर्श बने और इसके लिए वे बच्चों को कई तरह की सीख देते हैं। मगर क्या माता-पिता खुद एक आदर्श माता-पिता हैं? शैफाली पंड्या रामायण की कहानियों और तथ्यों के जरिए माता-पिता के लिए कुछ बेहतरीन गुणों के बारे में बता रही हैं जो उन्हें अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करने में मदद कर सकते हैं। आइए जानें।

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    Ram Navami 2025: रामायण के ज्ञान से अपनी संतान को दें श्रीराम जैसे संस्कार (Image Source: Freepik)

    शैफाली पंड्या, नई दिल्ली। Ram Navami 2025: रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि इसमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं, विशेष रूप से बच्चों के पालन-पोषण के बारे में गहरे संदेश समाहित हैं। बच्चों का अंतःकरण कोरे कागज की तरह होता है, जिस पर जो कुछ लिख दिया जाता है, वह मिटाकर दोबारा लिखना प्रायः असंभव सा है। अभिभावकों को समझना चाहिए कि बच्चों को सही ढंग से शिक्षित और संस्कारित करें, जिस तरह माता सीता ने कुश व लव को राष्ट्रहित के लिए तैयार किया था।

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    संतान को कोसने, उनकी गलतियों के लिए बार-बार सुनाते रहने की अपेक्षा प्रोत्साहन देने की नीति अपनाई जाए तो वह बच्चों को समस्याओं से निकलने में मदद करती है। रामायण हमें सिखाती है कि पैरेंटिंग में प्यार, अनुशासन, मूल्य और आदर्श का संयोजन सबसे महत्वपूर्ण है। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को शिक्षा के साथ जीवन जीने के सच्चे अर्थ भी सिखाएं।

    पवित्र व्यवहार का बीजारोपण

    राजा दशरथ ने अपने पुत्रों को धर्म, सत्य और कर्तव्य की शिक्षा दी। वे यह समझते थे कि बच्चे को केवल भौतिक सुख ही नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों की भी आवश्यकता होती है। जब गुरु विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिए राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांगने आए, तो प्राणों से प्रिय संतानों को राजा दशरथ ने खुशी-खुशी भेजा। वे जानते थे कि यह उनके बच्चों को उनसे दूर कर देगा, मगर यह श्रीराम-लक्ष्मण के जीवन के लिए सर्वथा उचित है।

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    आज माता-पिता बच्चों को सदा अपने निकट रखते हैं, कभी सुरक्षा की दृष्टि से तो कभी स्नेहवश। घर से दूर स्कूल भेजना हो या नौकरी के लिए तैयारी करना, माता-पिता को समझना चाहिए कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने या उनकी भलाई के लिए अपने आवरण से दूर करना ही पड़ता है। भगवान श्रीराम ने शबरी से लेकर केवट तक किसी के साथ कोई ऊंच-नीच का अंतर नहीं रखा, मगर आज परिवार में देखें तो घरेलू सहायकों, चौकीदार या किसी अन्य सहायक के साथ परिवार के वयस्कों का व्यवहार अक्सर तिरस्कारपूर्ण होता है।

    बच्चे तो आपको देखकर ही सीख रहे हैं, इसलिए जरूरी है कि आपका व्यवहार सदा उचित रहे। हरेक अभिभावक को चाहिए कि वे बच्चों को एक-दूसरे को नीचा दिखाए जाने वाले व्यवहार से ऊपर उठना सिखाएं, जिससे वे अपने प्रत्येक सहपाठी से परम मित्र, भाई अथवा बहन समान स्नेह के साथ व्यवहार करें। तभी उनमें पवित्र व्यवहार का बीजारोपण हो सकता है।

    स्वयं में लाएं बदलाव

    माता सीता ने जंगल के बीच रहते हुए भी अपने बेटे कुश और लव को सदैव सच्चाई, सत्यनिष्ठा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। आजकल के अभिभावकों को भी चाहिए कि टीवी, इंटरनेट मीडिया और अपने अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के साथ ही बच्चों की परवरिश हेतु नियमित रूप से समय निकालें। उन्हें पास बिठाएं और ज्ञान व आदर्श की कहानियों के माध्यम से सच्चाई और सत्यनिष्ठा के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।

    पिता के रूप में राजा दशरथ व माताओं ने श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जो आदर्श का पाठ पढ़ाया था, उसी का परिणाम रहा कि चारों भाइयों ने अपने आचरण से माता-पिता व समाज के प्रति आदर और कर्तव्य निभाने के सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किए। माताओं में परस्पर प्रेम व लगाव था तो वही गुण राजा दशरथ के चारों पुत्रों में भी आया और वे सदा एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहे। तात्पर्य यह है कि माता-पिता तो बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वे सबके साथ मिल-जुलकर रहें, मगर स्वयं गृहक्लेश में संलिप्त रहते हैं। स्वयं में बदलाव लाकर ही आप अगली पीढ़ी को बेहतर बना सकते हैं।

    माता कैकेयी श्रीराम को भरत से भी अधिक स्नेह करती थीं, मगर जब मंथरा ने उनके मस्तिष्क में विष घोला तो वह अपने श्रीराम को ही वनवास भेजने की जिद कर बैठीं। इस प्रकार के नकारात्मक लोगों से दूर रहें, जो आपके परिवार-संतान को लेकर विष उगलते हैं। कई बार ऐसी बाहरी अमरबेल आपके परिवार रूपी वृक्ष को जीवनहीन करने के लिए जिम्मेदार होती है।

    बच्चों के लिए धन-संपत्ति जमा कर देने भर से ही आपके कर्तव्यों की पूर्ति नहीं हो जाती।  सुयोग्य संरक्षक की भांति उनके व्यक्तित्व विकास की बुनियादी अवस्था में सहायक की भूमिका निभाना भी उतना ही जरूरी है।

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    (लेखिका गायत्री विद्यापीठ शांतिकुंज, हरिद्वार की व्यवस्था मंडल प्रमुख हैं)