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    मनोवैज्ञानिक का दावा: अनमैरिड महिलाएं जीती हैं बेहतर जिंदगी, पुरुष झेलते हैं अकेलेपन और सेहत की मार!

    Updated: Sun, 20 Apr 2025 03:41 PM (IST)

    हाल ही में एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ने एक ऐसा दावा कर दिया है जिसे जानकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। दरअसल उनका कहना है कि अविवाहित महिलाएं अविवाहित पुरुषों के मुकाबले ज्यादा खुशहाल और बेहतर जीवन जीती हैं जबकि पुरुष अकेलेपन और खराब सेहत का शिकार हो सकते हैं। जी हां यह दावा समाज की पारंपरिक सोच के बिल्कुल विपरीत है।

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    अकेली महिलाएं बनाम अकेले पुरुष: कौन जीता है बेहतर जिंदगी? (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आमतौर पर यह देखा जाता है कि पुरुषों को रिश्तों में बने रहने की ज़्यादा इच्छा होती है, जबकि महिलाओं को उतनी नहीं। शादी पुरुषों की सेहत, उनके काम और उनकी ज़िंदगी की लंबाई के लिए अच्छी साबित होती है, लेकिन महिलाओं के लिए शादी के फायदे उतने साफ तौर पर दिखाई नहीं देते। यही वजह है कि ज्यादातर महिलाएं ही शादी को खत्म करने की पहल करती हैं।

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    मशहूर मनोवैज्ञानिक मार्क ट्रैक्र्स का कहना है कि जो महिलाएं शादीशुदा नहीं होतीं, वे अक्सर मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ रहती हैं। वहीं, जो पुरुष अकेले रहते हैं, उनमें अकेलापन, खराब सेहत और जल्दी मरने का खतरा ज्यादा होता है। कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि महिलाएं अकेले रहने में पुरुषों से कहीं ज्यादा खुश रहती हैं। उन्हें अपनी जिंदगी और रिश्तों से ज्यादा शिकायत नहीं होती और उन्हें साथी की जरूरत भी कम महसूस होती है। अगर शादी सफल नहीं भी होती, तो भी पुरुष अक्सर रिश्ते में बने रहना चाहते हैं। ट्रैक्र्स इसके पीछे की और भी कई वजहें (Psychology of single life) बताते हैं। आइए जानें।

    निभाते हैं मजबूर रिश्ता

    कई आदमी सिर्फ इसलिए अपनी शादी में बने रहते हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की परवाह होती है, न कि अपनी पत्नी से प्यार होता है। उन्हें डर लगता है कि अगर वे रिश्ता तोड़ देंगे तो उनके बच्चे दुखी होंगे। एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो पिता अपनी पत्नी से अलग हो जाते हैं, वे 'घर' को सिर्फ एक जगह नहीं मानते, बल्कि उसे अपनी भावनाएं, रिश्ते और रोज की आदतों से जोड़कर देखते हैं। वे अपने बच्चों के लिए प्यार भरा माहौल बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें कुछ कमी महसूस होती है।

    कई बार बच्चे अपने पिता के घर को उतना अपना नहीं मानते जितना अपनी मां के घर को। इससे पिता को लगता है कि वे बच्चों की परवरिश के लिए जो भी कर रहे हैं, उसकी कोई कदर नहीं है। जब घर में बच्चे नहीं होते, तो उन्हें बहुत अकेलापन महसूस होता है। यही वजह है कि कई पुरुष अंदर से टूटने के बाद भी अपनी शादी में बने रहते हैं।

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    पुरुषों के डर और अकेलेपन की कहानी

    जब शादी टूटती है, तो पुरुषों को लगता है कि उनकी ज़िंदगी में ठहराव खत्म हो गया है। उन्हें डर लगता है कि वे अकेले पड़ जाएंगे, उनके पास पैसे की कमी हो सकती है और उनकी रोज़ की ज़िंदगी बदल जाएगी। इतने सालों का रिश्ता टूटने पर उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है। एक रिसर्च में यह पता चला है कि जो बूढ़े आदमी तलाकशुदा होते हैं, वे आज़ादी और अकेलेपन दोनों को महसूस करते हैं। कुछ मर्द नाखुश शादी से छुटकारा पाते हैं, लेकिन ज़्यादातर अकेलेपन से परेशान रहते हैं।

    रिसर्च यह भी बताती हैं कि मर्द तलाक के बाद दोबारा शादी करने की ज्यादा कोशिश करते हैं, जबकि औरतें इससे बचती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मर्द अपनी भावनाओं के लिए ज्यादातर शादी पर ही निर्भर रहते हैं। कई मर्दों को अपनी भावनाएं जताना नहीं सिखाया जाता, इसलिए वे अपनी नाखुशी को पहचान नहीं पाते और उसे आम बात समझ लेते हैं। धीरे-धीरे वे दुख को अपनी जिंदगी का हिस्सा मान लेते हैं।

    एक और रिसर्च के अनुसार, जब पति अपनी भावनाएं दबाते हैं, तो शादी में खुशी कम हो जाती है, खासकर शुरुआती सालों में। जैसे-जैसे नाखुशी बढ़ती है, पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर होते जाते हैं। इस वजह से मर्द एक मुश्किल में फंस जाते हैं। वे अपनी जरूरतें नहीं बता पाते और डर के मारे चुप रहते हैं। जो मर्द पुरानी सोच वाले होते हैं, उनके लिए तलाक एक तरह की हार होती है। इसलिए वे ऐसे रिश्ते में भी बने रहते हैं जो उन्हें अंदर से तोड़ रहा होता है।

    क्यों नहीं खुल पाती दिल की बातें?

    आमतौर पर देखा जाता है कि मर्दों के ज्यादातर दोस्त मर्द ही होते हैं, पर ये दोस्ती उतनी गहरी नहीं होती जिसमें दिल की बातें साझा की जा सकें। हमारे समाज में मर्दों से यह उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा ताकतवर दिखें, दूसरों से आगे रहें और अपनी कमजोरी किसी को न दिखाएं। अपनी भावनाओं को जाहिर करने में उन्हें अजीब लगता है।

    इसके अलावा, मर्दों में आपस में डर और गहरे रिश्तों के उदाहरणों की कमी भी इस समस्या को बढ़ाती है। इसलिए, मर्दों को ऐसा कोई सुरक्षित जगह नहीं मिल पाती जहां वे खुलकर अपनी बातें कह सकें। उन्हें लगता है कि किसी बुरे रिश्ते में रहना अकेले रहने से बेहतर है। कई बार तो वे सिर्फ पुरानी आदत या यादों के सहारे किसी रिश्ते को निभाते रहते हैं, लेकिन यह चुप्पी उन्हें अंदर ही अंदर और ज़्यादा दुखी करती रहती है।

    तलाक की पहल करने में हिचकते हैं पुरुष

    कई अलग-अलग समुदायों में शादी को एक बहुत ही पवित्र रिश्ता माना जाता है। परिवार और समाज के लोग आमतौर पर तलाक को अच्छी नजर से नहीं देखते हैं। यह सिर्फ पति और पत्नी के बीच की बात नहीं रह जाती है, बल्कि इससे पूरे परिवार और समाज पर असर पड़ता है।

    इसके अलावा, आदमियों पर यह दबाव होता है कि वे अपने परिवार की इज्जत बनाए रखें। इस वजह से वे खुद तलाक की बात शुरू करने में हिचकिचाते हैं। समाज में अक्सर पुरुषों को परिवार का बड़ा और उसे बचाने वाला माना जाता है। अगर वे तलाक शुरू करते हैं, तो लोगों को लग सकता है कि वे अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाए। इस सामाजिक दबाव के कारण भी वे तलाक लेने से बचते हैं।

    तलाक के बाद जिंदगी

    जब किसी महिला का तलाक हो जाता है, तो वह अक्सर अपनी नई ज़िंदगी शुरू करने के लिए एक आदमी से ज़्यादा तैयार रहती है। दूसरी तरफ, तलाक के बाद कुछ आदमियों का रवैया ऐसा होता है कि वे बहुत सालों तक उस दुख से बाहर नहीं निकल पाते। इसी वजह से उनके लिए नए रिश्ते बनाना मुश्किल हो जाता है।

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