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    निराशा की वजह बन सकते हैं जरूरत से ज्यादा बड़े टारगेट, ऐसे सिखाएं बच्चों को सफलता का असली महत्व

    आपने अक्सर बच्चों से कहा होगा कि लक्ष्य तय करने से सफलता मिलती है। अगर लक्ष्य ही सफलता को पीछे धकेल दें तो किसकी गलती होगी? कर्नल (डॉ.) अग्निवेश पांडेय मानते हैं कि बच्चों को सिखाएं कि सफलता तब मिलती है जब कठिन सीधा सा टारगेट चुनने की जगह जिंदगी को खुशनुमा हिस्सों में बांटा जाए। आइए जानते हैं बच्चों को कैसे बताएं सफलता की अहमियत।

    By Jagran News Edited By: Harshita Saxena Updated: Sun, 15 Dec 2024 12:00 AM (IST)
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    बच्चों का सिखाएं सफलता का असली मतलब (Picture Credit- Freepik)

    नई दिल्ली। पापा, कल से मैं सुबह चार बजे उठूंगा, स्कूल से आने के बाद नौ घंटे पढ़ूंगा, टीवी और मोबाइल देखना पूरी तरह बंद, बाहर खेलना-कूदना भी बिल्कुल नहीं होगा।’ 14 साल के सुहास की ये बातें उनके पिता अविनाश को कुछ अपनी सी लग रही थीं। बचपन में वे भी ऐसे ही सोचते थे, स्टडी टेबल के सामने टाइम टेबल लगाया था। हां, उसका पालन करने के चक्कर में तनाव ज्यादा हो गया था। आज भी बच्चे कई बार ऐसे असंभव लक्ष्य तय कर लेते हैं और बाद में हाथ लगती है उदासी व अपराधबोध। कभी सोचा है कि बच्चे ऐसे असंभव लक्ष्य क्यों बना लेते हैं? हर माता पिता की कल्पना होती है कि संतान उनसे ज्यादा तरक्की करे एवं खुशहाल जीवन व्यतीत करे।

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    इसके लिए वो बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के हरसंभव प्रयास करते हैं। अभिभावक बच्चो को बिना किसी शर्त के स्नेह और सुरक्षा प्रदान करते हैं, उनको जीवन के मूलभूत मूल्यों एवं आदर्शों की शिक्षा देते हैं जो कठिन समय में बच्चों को मानसिक एवं भावनात्मक रूप से मजबूत बनाते हैं। मगर वे यह भूल जाते हैं कि पालन-पोषण केवल बच्चों की जरूरतें पूरी करना नहीं होता बल्कि उनके व्यक्तित्व एवं चरित्र निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित करना होता है। माता-पिता अनजाने में बच्चों के सामने असंभव लक्ष्य गढ़ देते हैं, जिसके चलते बच्चे तनाव से घिरने लगते हैं।

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    बातों से बनेगी बात

    आज की पैरेंटिग बच्चों के व्यक्तित्व के विकास पर अधिक केंद्रित है, जबकि पहले समय में बच्चों के पालन-पोषण में अनुशासन, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों पर अधिक बल दिया जाता था। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में यह भी देखा गया है कि बच्चों की स्वतंत्रता, उनकी पसंद एवं राय पर अधिक बल दिया जाता है। इसी स्वतंत्रता के नाम पर उनकी हर गलत बात या आचरण को नजरअंदाज कर दिया जाता है परंतु यहीं माता- पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें समय-समय पर बच्चों को मार्गदर्शन देते रहना चाहिए। समाज में घटित घटनाओं के बारे में जागरूक करना चाहिए, जो केवल निरंतर संवाद के माध्यम से किया जा सकता है।

    इससे बच्चों की मनोस्थिति के बारे में भी आकलन करने का मौका मिलता है, जिससे हम समय रहते ही उनके विचारों को सकारात्मक दृष्टिकोण और सही लक्ष्य प्रदान कर सकते हैं। आज जरूरतों और भौतिकता की दौड़ में न तो माता-पिता के पास समय है और न ही बच्चों के पास। अतः आपसी संवाद में कमी आई है। बच्चों को अक्सर ऐसा लगता है कि माता-पिता उनको समझते ही नहीं हैं, जिससे परंपरागत और आधुनिक विचारों में सामंजस्य बनाना मुश्किल हो जाता है। अतः अभिभावकों को बच्चों की दिनचर्या, उनकी भावनाओं और समस्याओं से अवगत रहना चाहिए।

    हर बच्चे में है कुछ खास

    आज प्रतिस्पर्धा का युग है। इस कारण हर माता-पिता मछली को उड़ना एवं हाथी को पेड़ पर चढ़ते देखना चाहते हैं, जो किसी भी बच्चे के लिए दुष्कर कार्य है। हर बच्चा अपने अंदर एक विशिष्ट गुण लेकर आता है। अगर हम उस विशिष्ट गुण को परख लें और उचित विकास करें तो वह उस क्षेत्र में दक्ष होगा एवं सफलता के शीर्ष को प्राप्त करेगा। कई बार यह पाया गया है कि धैर्य एवं संयम से बिगड़ी हुई चीजें भी पटरी पर आई हैं। जैसे तालाब का जल जब स्थिर होता है, तब उसकी मिट्टी नीचे बैठ जाती है, इसी तरीके से जब मनुष्य धैर्य एवं संयम से किसी विषय पर मंथन करता है तो उसके विचारों में अधिक स्पष्टता होती है। यह नियम माता-पिता और बच्चों दोनों पर लागू होता है। हर बच्चा अलग होता है अतः उनकी गलतियों पर धैर्य रखें। उन्हें दंडित करने के बजाय सिखाएं कि गलतियों से सीखना जीवन का हिस्सा है!

    तकनीक पर न हो अंधविश्वास

    आज के तकनीकी युग में यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि आप तकनीकी रूप से सुदृढ रहें एवं बच्चों को तकनीकी जानकारी व उसके दुष्परिणाम से समय-समय पर अवगत कराते रहें। डिजिटल एडिक्शन को दूर करने के लिए आपको सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बच्चे डिजिटल सामग्री का उपयोग शिक्षाप्रद विषयों को देखने-सुनने के लिए ही करें। इसके लिए आप बच्चों के फोन में पैरेंटल कंट्रोल लगा सकते हैं। याद रखें कि पालन- पोषण ऐसी यात्रा है जो बच्चे के जीवन को आकार देती है और उसे समाज का एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है। सही मार्गदर्शन और स्नेह से माता-पिता बच्चों को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।

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