रिश्तेदारों से बात करने में कतराते हैं आपके बच्चे, तो पेरेंटिंग कोच से जानें कैसे सिखाएं उन्हें घुलना-मिलना
त्योहारों का मौसम देता है व्यस्तता के बीच कुछ पल राहत के, जब बच्चे अपने उन रिश्तेदारों से घुलते-मिलते हैं, जिनसे अक्सर बात करने से भी कतराते हैं। अब भले ही त्योहार के बहाने रिश्तों को मिली है नई ऊष्मा तो बच्चों को करें प्रेरित कि वो बनाए रखें उसमें वही ताजगी, बता रही हैं पैरेंटिंग कोच मीनाक्षी अग्रवाल।
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बच्चों को रिश्तेदारों से जोड़ें: आसान तरीके (Picture Credit- AI Generated)
आरती तिवारी, नई दिल्ली। 14 साल की सान्वी अब तक अपने वाट्सएप स्टेटस पर दीपावली से जुड़ी तस्वीरें लगा रही है। कभी चाचू के साथ डेकोरेटिव लाइट लगाने के दौरान हुए फोटोशूट का स्टेटस तो किसी दिन बुआ के बच्चों के साथ रातभर हुई दीपावली मिडनाइट की स्नैकिंग के स्नैप्स। रिश्तेदारों से इतनी सारी बातें तो उसने आज तक नहीं की थीं। पापा के फोन पर बस थोड़ा हैलो-नमस्ते के बाद ही सान्वी कुछ बहाना बनाकर फोन थमा देती थी। अब तो सबके फोन नंबर भी उसने सेव कर लिए हैं और मजेदार नाम वाले वाट्सएप ग्रुप भी बन चुके हैं, जहां अगले महीने उसके चचेरे भाई की शादी की तैयारियों की चर्चा हो रही है। तो वहीं भाई दूज पर मामा भी सपरिवार उसके घर आए थे और फिर वे सभी एडवेंचर पार्क में गए थे और खूब धमाचौकड़ी हुई थी। इस बार सान्वी की दीपावली वाकई यादगार रही है। ऐसा ही होता है, जब बच्चे रिश्तेदारों से मिलते हैं, बातें-मस्ती करते हैं।
वास्तव में परिवार ही जीवन का असली धन है। हमारी परंपरा में परिवार सिर्फ मां-बाप तक सीमित नहीं है बल्कि सारे नाते-रिश्तेदारों को हम परिवार मानते हैं। त्योहार पर बच्चों को परिवार के विभिन्न सदस्यों से जुड़ने, उनके साथ समय बिताने और समाज की विविधता समझने का मौका मिलता है, जो उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। इस मेलजोल के दौरान बच्चे अपने रिश्तेदार के व्यक्तित्व और उनकी पसंद-नापसंद भी जान जाते हैं। मिलने जुलने से एक तरह का जुड़ाव उत्पन्न होता है और कई बार पहले से बनी हुई भ्रांतियां भी दूर हो जाती हैं। बड़े कजिंस बहुत-सी पुरानी यादें-बातें बताते हैं, जो बच्चों की रुचि, पढ़ाई या काम से संबंधित हो सकती हैं। कई बार वे बहुत अच्छे मार्गदर्शक या मेंटर भी साबित होते हैं। यह परिवर्तन बच्चों के व्यक्तित्व में सहनशीलता और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है।
चार दिन की न हो चांदनी
त्योहार की इस गरमाहट को सिर्फ कुछ दिनों तक सीमित न रखें। चूंकि हर बच्चा तकनीकी और इंटरनेट मीडिया से जुड़ा है तो इसी की सहायता से क्यों ना परिवार की गरमाहट को सदा बनाए रखें? अभिभावक पहल करें कि त्योहार के बाद भी बच्चों का रिश्तेदारों से संपर्क बना रहे। अभिभावकों के रिश्ते जिनसे मजबूत होते हैं, उनके बच्चों के भी आपस में अच्छे रिश्ते होते हैं या मेलजोल के अवसर मिलने पर सुदृढ़ होते हैं। बच्चों को समझाएं कि परिवार जीवन में कितनी बड़ी ताकत है। मेलजोल सिर्फ त्योहार तक ही सीमित नहीं होता, दीपावली के बाद शादियों का दौर शुरू हो जाता है, ये भी रिश्ते संजोने का बेहतरीन अवसर है।
बच्चों को फैमिली वाट्सएप ग्रुप बनाने या पहले से मौजूद ग्रुप में जुड़ने के लिए प्रेरित करें और इसमें कभी-कभी ग्रुप चैट, वीडियो काल और मैसेज आदि साझा करते रहें। कभी वीकेंड या छुट्टी वाले दिन सब लोग मिलकर आनलाइन ग्रुप गेम्स खेल सकते हैं। कई डिजिटल प्लेटफार्म हैं, जहां ऐसे गेम्स खेले जा सकते हैं। आनलाइन इवेंट्स भी आयोजित कर सकते हैं जैसे कि हमने कोविड के दौरान किया। जब भी समुचित अवसर हो, तो एक फैमिली गैदरिंग या रियूनियन करने की कोशिश करें। जब बच्चे आपस में मिलते हैं तो रील भी बनाते हैं, मीम भी शेयर करने लगते हैं, पुराने वीडियो और फोटोग्राफ्स भी निकाल लेते हैं और एक-दूसरे को भेजते हैं। यह भी एक सुखद अनुभूति प्रदान करता है।
गहरे तक उतरेंगे रिश्ते
इस तरह अपनों से जुड़ना हमें सामाजिक रूप से तो मजबूत करता ही है साथ ही मानसिक पटल पर यह अपनी गहरी छाप छोड़ता है। आज के समय में जहां हम बच्चों की मेंटल हेल्थ की बात कर रहे हैं, सकारात्मक रिश्ते हमें और हमारे बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में सहायता करते हैं। स्वजनों के साथ मीम साझा करने या उनसे जुड़े संवाद करने भर से भी रिश्तों की नींव पड़ सकती है। यह तरीका अगली मुलाकात को संकोच की जगह सहजता और आत्मीयता से भर देगा।
- बच्चों के सामने किसी अनबन की परिस्थिति में किसी भी रिश्तेदार के बारे में नकारात्मक टिप्पणी न करें।
- त्योहार, वर्षगांठ और शादी की सालगिरह पर सभी सदस्यों को शुभकामनाएं दें, वीडियो काल करके बच्चों को भी उसमें जोड़ें। बच्चे अभिभावक के आचरण का ही अनुकरण करते हैं।
- अब जो मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो इसे सिर्फ त्योहारी अवसर तक सीमित न रखकर इसे निरंतर बनाए रखें ।

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