Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    'मिलेनियल डैड' की नई दुनिया: बच्चे की परवरिश से घर के काम तक लिख रहे हैं नई साझेदारी की कहानी

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 08:50 AM (IST)

    आज के पुरुष अब केवल कमाने वाले नहीं, बल्कि बच्चों की परवरिश और घर के कामों में समान रूप से भागीदार बन रहे हैं, जिन्हें 'मिलेनियल डैड' कहा जा रहा है। वे फादरहुड की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं, जहां पिता ज्यादा देखभाल करने वाले और सेंसिटिव पार्टनर हैं। हालांकि, वर्कप्लेस अभी भी उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। 

    Hero Image

    पेरेंटिंग में बराबर की साझेदारी निभा रहे हैं 'मिलेनियल डैड' (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या पुरुष अब सब कुछ अकेले संभाल सकते हैं? कभी इसका जवाब ‘शायद नहीं’ हुआ करता था, लेकिन आज हालात बदल गए हैं। आज के दौर के पुरुष अब केवल कमाने वाले नहीं रहे, बल्कि वे परिवार की जिम्मेदारियों में समान रूप से भागीदार बनना चाहते हैं। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बच्चों की परवरिश में बराबर की साझेदारी

    वे अपने जीवनसाथी के साथ बच्चों की परवरिश से लेकर घर के कामों तक में पूरा साथ देते हैं। इस नई सोच वाले पुरुषों को आज की दुनिया ‘मिलेनियल डैड’ कह रही है- ऐसे पिता जो पार्टनरशिप और सेंसिटिविटी में विश्वास रखते हैं।

    केयरिंग पार्टनर की भूमिका

    ब्रिटेन के एक हालिया सर्वे के अनुसार, हर चार में से तीन पिता मानते हैं कि वे बच्चों की परवरिश का भार अपनी पार्टनर के साथ बराबर बांटना चाहते हैं। यह बदलाव समाज में फादरहुड की नई परिभाषा गढ़ रहा है। अब पिता केवल ‘कमाने वाले’ नहीं, बल्कि ‘केयरिंग’ और ‘एम्पैथेटिक’ पार्टनर भी हैं। 

    महिलाएं भी इसे सकारात्मक नजरिए से देख रही हैं। उनका मानना है कि जब रिश्ते में आपसी सम्मान और सहयोग हो, तो कोई भी व्यक्ति नौकरी, परिवार और पर्सनल लाइफ में बैलेंस बना सकता है।

    वर्कप्लेस पर आज भी झेलनी पड़ती है आलोचना

    हालांकि, इस बदलाव की राह पूरी तरह आसान नहीं रही। सर्वे में शामिल कई पुरुषों ने बताया कि जब वे पारिवारिक कारणों से छुट्टी मांगते हैं, तो दफ्तरों में उनसे सवाल किया जाता है- “पत्नी कहां हैं?” यानी परिवार की जिम्मेदारी अभी भी महिलाओं के हिस्से में मान ली जाती है। फिर भी पुरुष अब इस सोच को चुनौती दे रहे हैं।

    कामकाजी पिताओं ने माना कि उनके चुनौतियां भी कामकाजी माताओं के जैसे ही हैं। दस में से आठ पिताओं ने कहा कि काम और परिवार के बीच तालमेल बिठाने का तनाव उनके मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक खुशियों को प्रभावित करता है। कई पुरुषों ने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने चाहकर भी पेटरनल लीव नहीं लिया, क्योंकि सोसायटी या वर्कप्लेस पर अब भी इसे कमजोरी की तरह देखा जाता है।

    बच्चों की देखभाल के लिए चाहिए महिलाओं जैसे अधिकार

    दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन में अब पुरुष समान पेड पेरेंटल लीव के लिए आवाज उठा रहे हैं। उनका मानना है कि अगर महिलाओं को बेहतर मेटरनिटी लीव का अधिकार है, तो पुरुषों को भी उतनी ही सहूलियत मिलनी चाहिए। यही सोच फादरहुड को केवल जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समान अधिकार का विषय बना रही है।

    महामारी के बाद तेजी से आया बदलाव

    कोरोना महामारी के बाद यह बदलाव और तेज हुआ है। अब पिता बच्चों की देखभाल में पहले से ज्यादा समय दे रहे हैं। पहले जहां यह अनुपात 54% था, अब बढ़कर 65% तक पहुंच गया है। यूके के सर्वे से पता चला कि 30 से 40 वर्ष की उम्र के पिताओं में बच्चों की जिम्मेदारी को लेकर गहरी समझ और संवेदना आई है। हालांकि, परिवार को प्राथमिकता देने के लिए कई बार उन्हें वर्कप्लेस पर क्रिटिसिज्म भी झेलना पड़ता है।

    इन सबके बीच सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब पुरुष इमोशनल रूप से भी खुल रहे हैं। वे मानते हैं कि मजबूत वही है, जो अपने परिवार के साथ खड़ा रहे। यही नई सोच आने वाले समाज की नींव रख रही है। एक ऐसा समाज, जहां मदरहुड और फादरहुड दोनों बराबर माने जाएंगे, और जहां प्यार और जिम्मेदारी दोनों शेयर करेंगे।