मॉडर्न किचन में गुम हुई रिश्तों की मिठास... आखिर कैसे परिवार को जोड़कर रखती थी दादी-नानी की रसोई?
क्या आपको याद है, वह रसोई जहां गैस की सीटी से ज्यादा दादी-नानी की कहानियों की आवाज आती थी? जहां मेज पर नहीं, बल्कि जमीन पर साथ बैठकर खाने में गहरी आत्मीयता महसूस होती थी? दरअसल, आज हमारा किचन मॉडर्न गैजेट्स से तो भरा है, लेकिन रिश्तों की गर्माहट कहीं खो सी गई है।

पुरानी रसोई की यादें और मॉडर्न किचन का सूनापन (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज के जमाने में हमारे किचन भले ही हाई-टेक हो गए हों, पर कहीं न कहीं उनमें से वह पुरानी गर्माहट और रिश्तों की मिठास गायब हो गई है। जी हां, मॉडर्न किचन ने हमारा काम आसान कर दिया, लेकिन क्या उसने हमारे परिवारों को भी करीब रखा? शायद नहीं।
कल्पना कीजिए, एक कोने में चूल्हा जल रहा है, उसकी धीमी आंच पर दाल पक रही है, और बीच में बैठकर मां या दादी बड़े प्यार से सब्जी काट रही हैं। इसी बीच, बच्चे कहानी सुन रहे हैं, पिता जी दिनभर की बातें बता रहे हैं और घर के सभी सदस्य एक साथ, जमीन पर बैठकर खाना खा रहे हैं। वह वक्त, वह माहौल, आज के 'डाइनिंग टेबल' पर मिलना बेहद मुश्किल है।

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चकाचौंध में खो गया 'चूल्हे' का जादू
आज की रसोईयां बड़ी हैं, चमकदार हैं और हर तरह के गैजेट्स से भरी हैं। माइक्रोवेव, इंडक्शन और डिशवॉशर ने हमारे काम को आसान बना दिया है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस चकाचौंध के बीच कुछ अमूल्य चीजें कहीं खो गई हैं? वह है रिश्तों की गर्माहट और परिवार का साथ। हमारे दादी-नानी की पुरानी रसोई, भले ही छोटी थी, मगर वह किसी जादू की दुनिया से कम नहीं थी।
रसोई नहीं, रिश्तों का 'सोशल हब'
दादी-नानी की रसोई सिर्फ खाना पकाने की जगह नहीं थी, बल्कि यह पूरे परिवार का सोशल हब हुआ करती थी। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक, हर पल रसोई में गूंजता था। दादी आटा गूंथ रही हैं, मां सब्जी काट रही हैं, और बच्चे मेज पर बैठकर कहानियां सुन रहे हैं- यह दृश्य ही अपने आप में एक खुशहाल तस्वीर थी। यहां हर काम एक सामूहिक प्रयास था, जिसने जाने-अनजाने में परिवार के लोगों को एक-दूसरे से बांधकर रखा।
स्वाद में छिपी ममता और दुलार
याद कीजिए, वो हाथ से पिसे मसालों की खुशबू, या चूल्हे की धीमी आंच पर पकती दाल का स्वाद। पुराने जमाने में, हर चीज को समय और प्यार देकर बनाया जाता था। दादी की रसोई का स्वाद सिर्फ मसालों का नहीं होता था, उसमें उनकी ममता और दुलार भी घुला होता था। एक साथ बैठकर जमीन पर पत्तल में खाना, समानता और अपनत्व का भाव पैदा करता था, जो आज डाइनिंग टेबल के शांत माहौल में अक्सर महसूस नहीं होता।

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गैजेट्स ने छीन लिया परिवार का साथ
आज हर कोई अपने काम में व्यस्त है। खाना बनाने का समय भी भागमभाग वाला हो गया है। डाइनिंग टेबल पर भी हर हाथ में फोन है, और परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत कम हो गई है। मॉडर्न गैजेट्स ने बेशक समय बचाया है, लेकिन उन्होंने परिवार को साथ बैठकर गुनगुनाने और हंसने के मौकों को भी कम कर दिया है। पुरानी रसोई में कोई गैजेट नहीं था, पर वहां समय और ध्यान भरपूर था।
रिश्तों की मिठास को कैसे वापस लाएं?
इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी मॉडर्न किचन को तोड़ दें, मगर हम वहां पुरानी रसोई की भावना वापस ला सकते हैं। कोशिश करें कि हफ्ते में एक बार सब एक साथ बैठकर खाना बनाएं। खाने के समय फोन को दूर रखें और दिल खोलकर बातें करें। अगर हम रसोई में टेक्नोलॉजी को कम और इंसानी जुड़ाव को ज्यादा जगह दें, तो मॉडर्न किचन में भी रिश्तों की वह खोई हुई मिठास दोबारा लौट सकती है।

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