पेरेंटिंग काउंसलर से जानें बच्चों के लिए कैसे बनाएं एग्जाम के बाद का टाइम स्ट्रेस फ्री
बोर्ड परीक्षाओं के बाद का समय तमाम तरह के मनन-मंथन का होता है। परीक्षा के परिणाम को लेकर परीक्षार्थी मानसिक दबाव व तनाव में होते हैं। पेरेंट्स बोर्ड परीक्षार्थियों के इस खाली समय को मानसिक रूप से कैसे बेहतर बनाएं और उनकी मानसिक उथल-पुथल को दें सकारात्मक मोड़ इस बारे में आइए जानते हैं पेरेंटिंग काउंसलर डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी।
डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी, नई दिल्ली। दसवीं की बोर्ड परीक्षाएं दे चुकीं श्रुति के लिए ये दिन और भी तनाव में गुजर रहे हैं। कारण? जब तक परीक्षाएं थीं, तब तक तो श्रुति पूरी मेहनत से पढ़ाई कर रही थीं, मगर अब उन्हें परिणाम का डर सता रहा है। क्योंकि उसी आधार पर तय होगी भविष्य की राह। यह वो समय है जब वो आगे की तैयारी तो कर नहीं सकतीं, उस पर स्वजन भी परिणाम और भविष्य को लेकर आशाओं के पुल बांध रहे हैं। बोर्ड परीक्षा के बाद का समय हर विद्यार्थी के लिए काफी अहम होता है, यह अक्सर राहत, थकान और चिंता के मिश्रित अनुभवों से भरा होता है। माता-पिता के लिए जरूरी है कि वे सहज और पूर्वाग्रह से मुक्त माहौल बनाएं।
व्यवहार पर रखें नजर
इस दौरान माता-पिता को बच्चों के व्यवहार में आने वाले बदलावों को लेकर सतर्क रहना चाहिए। इनमें सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी में कमी, अलग-थलग रहना, चिड़चिड़ापन, बार-बार मूड बदलना, नींद व भूख के पैटर्न में बदलाव और भविष्य को लेकर लगातार चिंता में रहने जैसे लक्षण शामिल हैं। अगर इन व्यवहारों के अलावा हीनता का भाव, आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति में कमी आने जैसे लक्षण बच्चे के दैनिक कामकाज, पारस्परिक संबंधों या सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डालने लग जाएं तो समय रहते बच्चे को मनोवैज्ञानिक या अनुभवी परामर्शदाता के पास अवश्य ले जाएं। इस बात को ध्यान में रखें कि अगर आप पेशेवर मदद लेते हैं तो इसका यह अर्थ नहीं होता कि बतौर माता-पिता आप असफल हो रहे हैं। यह तो बच्चे की मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा के उद्देश्य से लिया गया सक्रिय कदम है।
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ऐसे दें बच्चों को राहत
परीक्षाओं के दौरान बच्चों का दैनिक रूटीन काफी बदल जाता है। लंबे समय से लगातार कम नींद और अतिरिक्त दिमागी मशक्कत के बाद अब बच्चे भी समझ नहीं पाते कि इस खाली समय में क्या करें, ऐसे में वे अनावश्यक मानसिक विमर्श करते हुए तनाव में आ जाते हैं। बेहतर होगा कि आप बच्चों को पर्याप्त विश्राम करने, संतुलित आहार लेने, समय पर सोने और जागने का नियम तय करते हुए अपने विचारों को लिखने का अभ्यास डालने को कहें। उन्हें खेल, कला, संगीत या अन्य सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी करने के लिए प्रोत्साहित करें। इनसे बच्चों को भावनात्मक उथल-पुथल को प्रबंधित करने में मदद मिलती है।
इसी तरह उन्हें लगातार स्क्रीन-इंटरनेट मीडिया पर भी न बने रहने दें। चूंकि बीते दिनों परीक्षा की तैयारी के नाम पर अत्यधिक स्क्रीन टाइम में समय व्यतीत हुआ है, ऐसे में इस समय उन्हें डिजिटल डिटाक्स के लिए प्रोत्साहित करें। अगर बच्चे आपके साथ विचार साझा कर रहे हैं तो उन्हें रोकने के बजाय अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें समझाएं कि इससे भविष्य तय तो होगा मगर यह एकमात्र मार्ग नहीं होगा। बच्चों को आश्वस्त करें कि आपके लिए उनके परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण उनके द्वारा किया गया प्रयास और समर्पण है।
अपनी चिंताओं का भी करें प्रबंधन
इसी तरह कई बार होता है कि बच्चे माता-पिता के तनाव को प्रतिबिंबिंत करते हुए स्वयं तनाव लेने लगते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप स्वयं इस बात का ध्यान रखें कि कहीं अनजाने में आपकी चिंताएं तो बच्चे के तनाव का कारण तो नहीं बन रहीं। आप पहले अपने डर और अपेक्षाओं को पहचानकर भावनाओं को प्रबंधित करें। यह न सोचें कि बच्चे का परिणाम कैसा होगा या उससे आपके सोशल स्टेटस पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
आपके लिए ज्यादा जरूरी है आपके बच्चे का व्यक्तिगत विकास व समग्र कल्याण। इस बात को समझें कि हर बच्चे का अपना तरीका, बुद्धिमत्ता और कौशल स्तर होता है। बोर्ड परीक्षा में उनके अंक ही सफलता का एकमात्र मार्ग नहीं हैं। आपको चाहिए कि आप अपना ध्यान दबाव बनाने या चिंता करने के बजाय बच्चे को प्रोत्साहित करने की ओर स्थानांतरित करें।
- बच्चों के संवाद को तुरंत बाधित करके या तत्काल समाधान दिए बिना सक्रियता से सुनें।
- उनकी भावनाओं को स्वीकार करते हुए कहें, ‘मैं समझता/समझती हूं कि इस वक्त आप तनाव महसूस कर रहे हैं।’
- बच्चों को बताएं कि अंकों से ज्यादा ज्ञान और प्रयास मायने रखते हैं।
- परीक्षा में हुई गलतियों के बजाय सही उत्तर व आत्मविश्वास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहें।
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