रिश्ता न टूटे, पर साथ भी न रहे! तलाक से कैसे अलग है Judicial Separation, क्यों लोग अपना रहे ये रास्ता?
Judicial separation in India आजकल पति-पत्नी के बीच तनाव बढ़ने पर तलाक या ज्यूडिशियल सेपरेशन का विकल्प होता है। ज्यूडिशियल सेपरेशन में कोर्ट के आदेश से पति-पत्नी अलग रह सकते हैं लेकिन कानूनी रूप से विवाहित रहते हैं। यह एक कूलिंग ऑफ पीरियड की तरह है जिसमें उन्हें सोचने का समय मिलता है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Why Couples Choose Judicial Separation: शादी, एक ऐसा नाम है, जिसे दुनिया का सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है। जहां एक ओर शादी को सातों जन्मों का आधार माना जाता है। वहीं, आज के समय में जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, उन्हें देख बस जहन में एक ही सवाल आता है आखिर ऐसा क्यों?
मैरिड लाइफ में हत्या तो कहीं आत्महत्याएं, ऐसी खबरें इन दिनों सुर्खियों में आम हो गई हैं। ऐसे में जब इन घटनाओं की परतों को खंगालते हैं तो यहीं सामने आता है कि क्राइम की वजह कुछ और नहीं बल्कि पार्टनर के साथ अनचाहे रिश्ते को जारी न रखना है। ऐसे में एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो जाता है।
कई लोग अलग होने का फैसला ले लेते हैं तो वहीं कुछ कानूनी रूप से अलग रहने लगते हैं, लेकिन वे तलाक नहीं लेते हैं। अभय द्विवेदी, अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, लखनऊ खंडपीठ ने बताया कि जब पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव बढ़ जाता है ताे इन दो रास्तों पर वे फैसला ले सकते हैं। पहला तलाक तो दूसरा ज्यूडिशियल सेपरेशन (Judicial Separation)।
ये दोनों अलग-अलग प्रक्रिया है। लेकिन कई बार लोग इसे एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं। अगर आप भी अभी तक Judicial Sepration को Divorce समझ रहे थे तो अधिवक्ता ने कन्फ्यूजन दूर किया है। आइए जानते हैं विस्तार से-
क्या होता है ज्यूडिशियल सेपरेशन (Judicial Separation)?
ज्यूडिशियल सेपरेशन का मतलब होता है कोर्ट के आदेश से पति-पत्नी अलग रह सकते हैं। हालांकि इस नियम में वे कानूनी रूप से पति-पत्नी बने रहते हैं, बस उन्हें एक-दूसरे से अलग रहने की अनुमति मिल जाती है। दरअसल, ये एक तरह से Cooling Off Period की तरह काम करता है। इस दौरान उन्हें सोचने विचार करने का मौका मिल जाता है कि वे एक दूसरे के साथ जिंदगी आगे बिता पाएंगे या नहीं।
भारत में Judicial Separation को लेकर क्या हैं नियम?
- Hindu Marriage Act, 1955- इस एक्ट के Section 10 में ज्यूडिशियल सेपरेशन का नियम है।
- Special Marriage Act, 1954- इसमें भी यही सुविधा दी गई है।
- ईसाई समुदाय के लिए Indian Divorce Act, 1869 में यह नियम लागू किए गए हैं।
अभय द्विवेदी ने बताया कि Muslim Law में 'तलाक' की कानूनी प्रक्रिया थोड़ी अलग है। यहां ज्यूडिशियल सेपरेशन जैसा कॉन्सेप्ट वैसा क्लियर नहीं होता है। हालांकि कई मामलों में कोर्ट से परमिशन लेकर बिना तलाक के अलग रहा जा सकता है।
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Divorce और Judicial Separation में ऐसे समझें अंतर
तलाक लेने पर शादीशुदा रिश्ता पूरी तरह से खत्म हो जाता है। वहीं Judicial Separation में रिश्ते बने रहते हैं लेकिन साथ रहने की जबरदस्ती नहीं होती है। वहीं तलाक लेने पर दोनों लड़का-लड़की दोबारा शादी कर सकते हैं। लेकिन दूसरी ओर Judicial Separation में होने पर आप शादी नहीं कर सकते हैं। डाइवोर्स लेने पर पति-पत्नी कानूनी रूप से अलग हो जाते हैं। जबकि दूसरी कंडीशन में वे कानूनी रूप से पति-पत्नी ही माने जाते हैं। तलाक लेने का सीधा मकसद ये होता है कि वे हमेशा के लिए अलग हो रहे हैं, जबकि दूसरे नियम के तहत, वे रिश्ते को समय देते हैं।
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कब ले सकते हैं Judicial Separation?
अगर पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े रोजाना होते हैं, ऐसी नौबत आ जाती है कि उनका साथ रहना दूभर हो जाता है, लेकिन वो तलाक नहीं लेना चाहते तो वे कोर्ट जाकर ज्यूडिशियल सेपरेशन के लिए याचिका दायर कर सकते हैं।
इस कंडीशन में मिलती है अनुमति
- फिजिकली और मेंटली टॉर्चर
- एक्सट्रा मैरिटल अफेयर
- त्याग देना
- धर्म परिवर्तन
- मेंटल डिजीज
- शादी की जिम्मेदारी न निभाना
डाइवोर्स से पहले जरूरी है ज्यूडिशियल सेपरेशन?
अभय द्विवेदी के मुताबिक, ये जरूरी नहीं है। कोई भी पति-पत्नी डायरेक्टली डाइवोर्स ले सकते हैं। हालांकि कोर्ट कभी भी शादी को खत्म करने की सलाह नहीं देती है। कोर्ट सुझाव देती है कि पहले ज्यूडिशियल सेपरेशन लिया जाए ताकि रिश्ते को बचाने का एक और मौका मिल जाए।
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