पति नहीं, घर में है 'एक और बच्चा'? पढ़िए क्या है 'मैनकीपिंग' जो रिश्तों को कर रही है खोखला
'मैनकीपिंग' एक ऐसी आदत है जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में इतनी खामोशी से घुस आती है कि अक्सर महिलाएं इसे तब तक नहीं देख पातीं, जब तक कि वे पूरी तरह से ...और पढ़ें

कहीं आप भी तो नहीं फंसी हैं 'मैनकीपिंग' के जाल में? (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपने कभी किसी महिला को यह कहते हुए सुना है कि उसे ऐसा लगता है जैसे घर में उसका पति नहीं, बल्कि "एक और बच्चा" है? अगर हां, तो वह शायद 'मैनकीपिंग' के बारे में बात कर रही है।
शुरुआत में यह शब्द सुनने में थोड़ा मजाकिया लग सकता है, लेकिन इसकी सच्चाई आज कल के कई घरों और रिश्तों का एक गंभीर हिस्सा बन गई है। यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में इतनी खामोशी से शामिल हो जाता है कि जब तक कोई पूरी तरह से थक नहीं जाता, उसे इसका एहसास ही नहीं होता। जब आप इसके असली मतलब को समझेंगे, तब आपको पता चलेगा कि महिलाएं इससे इतना परेशान क्यों हैं।

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न सैलरी मिलती है और न ही पहचान
जरा सोचिए कि आप हर दिन सैकड़ों काम कर रही हैं, अलग-अलग भूमिकाएं निभा रही हैं, लेकिन इसके लिए आपको न तो कोई सैलरी मिलती है और न ही कोई पहचान। असल दुनिया में 'मैनकीपिंग' कुछ ऐसा ही है।
यह वह लगातार की जाने वाली मेहनत है जो महिलाएं अपने पार्टनर के मूड को संभालने और उनके लिए 'इमोशनल सपोर्ट' बनने में लगाती हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे आप घर में एक 'थेरेपिस्ट' और 'प्रोजेक्ट मैनेजर' दोनों का काम कर रही हैं- बिना किसी तारीफ या मदद की उम्मीद के। महिलाएं अक्सर अपने पार्टनर की समस्याओं को सुलझाती हैं, उन्हें शांत करती हैं और रिश्ते को पटरी पर बनाए रखती हैं, जबकि साथ ही वे अपने खुद के काम और लक्ष्यों को भी संभाल रही होती हैं।
सब कुछ संभालने के बाद भी रहता है 'खालीपन'
सबसे ज्यादा थकाने वाली बात यह है कि यह काम कभी-कभार नहीं, बल्कि हर रोज करना पड़ता है। यह धीरे-धीरे आपकी एनर्जी और खुशी को खत्म कर देता है क्योंकि रिश्तों में यह मेहनत एकतरफा होती है।
जब आप लगातार सिर्फ 'देते' रहते हैं और बदले में आपको वह सपोर्ट नहीं मिलता, तो मन में कड़वाहट आने लगती है। महिलाएं अक्सर महसूस करती हैं कि वे भावनात्मक रूप से गायब हो गई हैं। ऐसा लगता है जैसे वे सब कुछ संभाल रही हैं, लेकिन उनके लिए कुछ भी नहीं बचा है। जब एक ही इंसान इस पूरे अदृश्य बोझ को उठाता है, तो रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं और डगमगाने लगते हैं।

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आप हमसफर हैं या उनकी 'केयरटेकर'?
इस समस्या के पीछे 'टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी' और पुरुषों की सिकुड़ती दोस्ती एक बड़ा कारण है। बहुत से पुरुषों के पास अपनी भावनाएं साझा करने या सामाजिक रिश्तों को निभाने के लिए सही टूल्स या आदतें नहीं होतीं।
नतीजतन, उनकी पार्टनर को उस खाली जगह को भरना पड़ता है। इससे एक बहुत ही अस्वस्थ संतुलन बन जाता है जहां महिलाएं अपने पति या प्रेमी की 'केयरटेकर' बन जाती हैं। इससे रिश्ते में बराबरी खत्म हो जाती है और महिलाओं को अपने लिए जगह नहीं मिल पाती।
इस जाल से कैसे पाएं आजादी?
अच्छी खबर यह है कि इस कहानी को बदला जा सकता है। बदलाव की शुरुआत जागरूकता से होती है।
- सवाल उठाएं: महिलाएं अब पुरानी उम्मीदों पर सवाल उठा रही हैं और ऐसे रिश्तों की मांग कर रही हैं जहां उनकी मेहनत की कद्र हो।
- सीमाएं तय करें: अपने पार्टनर के लिए हर समय भावनात्मक रूप से उपलब्ध रहने की जगह अपनी सीमाओं को तय करना जरूरी है।
- खुलकर बात करें: एक तरफा देखभाल को आपसी देखभाल में बदलने के लिए खुली बातचीत बहुत जरूरी है।
अगर आपको लगता है कि आप भी लगातार किसी का मूड ठीक करने और उसका सामाजिक जीवन संभालने में लगी हैं, तो जान लें कि अपनी मानसिक शांति को वापस पाना न केवल संभव है, बल्कि जरूरी भी है। यह समझना होगा कि आप सिर्फ एक केयरटेकर नहीं हैं, बल्कि एक इंसान हैं जिसकी अपनी जरूरतें हैं। अपने पार्टनर के साथ ईमानदार बातचीत करें और अपनी मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता दें।

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