चीजें इधर-उधर फेंकना या तोड़-फोड़ करना बन गई है बच्चे की आदत, तो एक्सपर्ट के ये टिप्स आएंगे काम
बहुत छोटे बच्चों के लिए चीजों को इधर-उधर फेंकना या तोड़ना उनकी जिज्ञासा का एक हिस्सा हो सकता है लेकिन अगर यह आदत बड़ी उम्र तक बनी रहे तो यह एक गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है। यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चों का यह व्यवहार किस कारण से हो रहा है ताकि उसे सही तरीके से संभाला जा सके।

आरती तिवारी, नई दिल्ली। बच्चों में चीजों को पटकने-तोड़ने की आदत उनकी जिज्ञासा और ऊर्जा का प्रदर्शन है, जिसे सही दिशा में लगाना जरूरी है। यदि यह आटत किशोरावस्था तक जारी रहे और गुस्से की अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाए, तो माता-पिता को इसे समय रहते समझकर नियंत्रित करना चाहिए । पैरेंटिंग इन्फ्लुएंसर डॉ.पल्लवी राव चतुर्वेदी के अनुसार, यह पैरेंटिंग का महत्वपूर्ण सबक है, जिससे बच्चों की आदते बिगड़ने से पहले ही उन्हें सही मार्ग पर लाया जा सकता है...
अभिषेक जब भी बेटे विक्की के लिए कोई खिलौना लाते हैं, वह कुछ ही मिनट में उसे तोड़ पटककर खराब कर देता है और फिर उन टूटे खिलौनों से ही खेलता है। हर बार समझाने के बाद भी विक्की की आदतें अभिषेक को समझ नहीं आतीं मगर बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं। वहीं उनके बड़े भाई आशीष किशोरावस्था की ओर बढ़ रही अपनी बेटी सिया की गुस्से में आकर चीजें पटकने की आदत को लेकर भी परेशान ही हैं। क्या इनकी तरह आपकी संतान भी जिज्ञासा या गुस्से में चीजें तोड़ रही है?
कई पैरेंट्स के लिए यह अंतर बताना मुश्किल होता है कि यह आदत है या कुछ और एक बच्चा जो ब्लाक फेंकता है, वह शायद कारण और प्रभाव की खोज कर रहा हो, लेकिन एक किशोर जो फोन तोड़ देता है या खाना पसंद न आने पर नाराजगी से थाली धकेलकर उठ जाता है। वह संभवतः गहरी भावनाओं से जूझ रहा होता है। मूल कारण को समझना प्रभावी पालन-पोषण की दिशा में पहला कदम है।
समझें मूल अंतर
बहुत छोटे बच्चों के लिए चीजें तोड़ना या फेंकना अक्सर जिज्ञासा को दूर करने का तरीका होता है। वे सीख रहे होते हैं कि दुनिया कैसे काम करती है और टूटा हुआ खिलौना किसी प्रयोग का आकस्मिक दुष्प्रभाव हो सकता है। हालांकि, जब बड़े बच्चे या किशोर बार-बार चीजें तोड़ें, खासकर संघर्ष के दौरान, तो यह निराशा या क्रोध की अभिव्यक्ति का तरीका होता है। अंतर समझने का अच्छा तरीका यह पूछना हैः क्या यह व्यवहार आकस्मिक और जिज्ञासा से प्रेरित है या यह लोगों या संपत्ति के लिए हानिकारक है ? कभी-कभार गुस्सा आना सामान्य है, लेकिन चीजों को तोड़ने का लगातार पैटर्न स्पष्ट संकेत है कि संतान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रही है।
जानें मूल कारण
किशोरों के लिए तोड़-फोड़ करने की आदत अक्सर गहरे मुद्दों से जुड़ी होती है। यह स्वतंत्रता की कमी, स्कूल या साथियों के दबाव, घर पर खराब संवाद या यहां तक कि ध्यान आकर्षित करने की इच्छा से उत्पन्न निराशा का संकेत हो सकता है। मुख्य बात यह है कि केवल कृत्य को ही नहीं, बल्कि मूल कारण को संबोधित किया जाए। आप खुली, बिना किसी आलोचना के बातचीत करके ऐसा कर सकते हैं। किशोर संतान को अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए सही माध्यम खोजने में मदद करें, जैसे खेल, संगीत, या डायरी लिखना । उनकी भावनात्मक शब्दावली का विस्तार करें ताकि वे अपनी भावनाओं को गलत तरीके से व्यक्त करने के बजाय उन्हें नाम दे सकें। अगर यह व्यवहार बार-बार और खतरनाक होता जाता है, तो किसी परामर्शदाता या चिकित्सक से पेशेवर मदद लेना जरूरी है।
सबसे जरूरी बात, स्वस्थ व्यवहार का उदाहरण जरूर बनाएं। हर उम्र के बच्चे यह देखकर सीखते हैं कि आप अपने तनाव और मतभेदों से कैसे निपटते हैं। शांत रहकर और मूल मुद्दों पर ध्यान देकर, आप बच्चे को उन भावनात्मक कौशलों को विकसित करने में मदद कर सकते हैं, जिनकी उसे दुनिया में बिना किसी अराजकता का सहारा लिए आगे बढ़ने के लिए जरूरत है।
जैसी आयु वैसी रणनीति
बच्चे को अपनी निराशा को नियंत्रित करना सिखाना दीर्घकालिक प्रक्रिया है।
- छोटे बच्चों के लिए: छोटे बच्चों को यह पता ही नहीं होता कि उनके भीतर क्या भावना प्रवाहित हो रही है। जब वे चिड़चिड़ा व्यवहार करें, तो उनसे शांत स्वर में बात करें और उन्हें भावनाओं के लिए सरल शब्द सिखाएं, जैसे क्या उन्हें किसी बात पर गुस्सा आ रहा है या वे किसी बात पर उदास हैं। जब वे भावनाओं को अच्छी तरह से संभाल लें, तो उनकी प्रशंसा करें।
- किशोरों के लिए: उन्हें व्यायाम, माइंडफुलनेस अभ्यास, या शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें। कला या लेखन जैसे रचनात्मक शौक के लिए प्रोत्साहित करें। समस्या- समाधान चर्चाओं में शामिल करें। स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करें। सुनिश्चित करे कि चीजों को तोड़ने के कुछ परिणाम हों, जैसे कि उन्हें ठीक करने या बदलने में मदद करना ।
महत्त्वपूर्ण है आपकी प्रतिक्रिया
जब बच्चा गुस्से में कोई चीज तोड़ दे, तो माता-पिता से आने वाली त्वरित प्रतिक्रिया बेहद अहम होती है। सबसे जरूरी है कि शांत रहें और भावनात्मक नियंत्रण का उदाहरण प्रस्तुत करें। सबसे पहले, किसी भी खतरनाक वस्तु को हटाकर सुनिश्चित करें कि सभी सुरक्षित हैं। फिर, 'मैं देख सकता हूं कि तुम गुस्से में हो ' जैसे साधारण कथन से बच्चे की भावनाओं को स्वीकार करें। गुस्से में उपदेश देने या चीखने-चिल्लाने जैसी सामान्य गलतियों से बचें। भावनाओं के शांत हो जाने पर अनुशासन ज्यादा प्रभावी होता है। टूटी हुई वस्तु को तुरंत बदलना भी एक गलती है, क्योंकि यह अनजाने में एक इनाम जैसा लग सकता है। इसके बजाय, अपने बच्चे को बाद में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों का उपयोग करना सिखाएं।
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