कुछ बच्चे सुनकर, तो कुछ पढ़कर करते हैं याद; एक्सपर्ट ने बताया सिखाने का सही तरीका
कुछ बच्चे सुनकर ही किसी बात को तुरंत याद कर लेते हैं तो कुछ पढ़कर या देखकर ही उसे दिमाग में बैठा पाते हैं। इसलिए बच्चों के सीखने का पैटर्न समझना जरूरी है। आखिर क्या है यह पहेली सुलझा रही हैं दिल्ली पब्लिक स्कूल आरके पुरम नई दिल्ली की स्कूल काउंसलर कनिका मदान।

आरती तिवारी, नई दिल्ली। सम्राट इस बात पर बहुत गर्व महसूस करते हैं कि उनकी बेटी सुहानी जो बात एक बार सुन ले, वह उसे तुरंत याद कर लेती है। मगर सुहानी की मां को हर बार पीटीएम में यही कहा जाता है कि सुहानी कक्षा में तो हर प्रश्न का उत्तर देती है, मगर दिए गए असाइनमेंट में उसका प्रदर्शन कुछ कम हो जाता है।
असल में यहां सुहानी एक बेहतर आडिटरी लर्नर है, मगर उसकी विजुअल लर्निंग स्किल थोड़ी धीमी है। सुनकर या पढ़कर, किस तरह से बच्चे जल्दी सीखते हैं, यह बात निर्भर करती है बच्चों के कौशल पर। हम जब भी कुछ अनुभव करते हैं तो वह हमारी याददाश्त में तीन तरह से सुरक्षित होता है।
अब वो सबसे पहले इस पर निर्भर करता है कि हम किस कौशल के साथ पैदा हुए हैं। आप देखेंगे कि कुछ बच्चे जन्म से ही विजुलाइज करने में बहुत तेज और रचनात्मक होते हैं। वो चीजों को देखकर याद रखते हैं। दूसरी स्किल होती है आडिटरी, यानी जो बातें हमने सुनीं, वो कितनी अच्छी तरह से हमें याद हुईं। ऐसे बच्चों के दिमाग में उसी टोन या सुर में ही बातें या पाठ याद रहते हैं, अगर आप उसे गड़बड़ा दें तो वह उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। जैसे अंग्रेजी या हिंदी वर्णमाला हों या पहाड़े, बच्चे एक रिदम में याद करते हैं, मगर यह रिदम अगर बिगड़ जाए तो वो उसमें थोड़े हड़बड़ा जाते हैं। इसमें तीसरा तरीका भी है- काइनेस्थेटिक।
जब हम चीजों को छूकर, महसूस करके समझते हैं और वो बात हमेशा के लिए हमारे जेहन में रह जाती है। इन तीन तरीकों से बच्चे किसी भी पाठ को समझते-याद करते हैं। यह बात किताबों के मामले में भी समान होती है। इसलिए यह सबसे पहली जरूरत है कि अभिभावक बच्चों को इन तीनों तरीकों से पढ़ाएं-समझाएं और देखें कि बच्चे को किस तरीके से जल्दी समझ आ रहा है।
ऐसे लगाएं पता
देखकर सीखने वाले बच्चे किताबें, चार्ट आदि देखते हैं या किसी पाठ को चरण दर चरण याद करते हैं तो वे ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। वहीं सुनकर सीखने वाले बच्चे कक्षा में पढ़े जाने वाले या आडियो में सुरक्षित चैप्टर को सुनकर ज्यादा जल्दी रिस्पांस देते हैं।
अगर आपको पता लगाना है कि बच्चे में देखकर या स्वयं पढ़कर ज्यादा जल्दी सीखने के गुण हैं या सुनकर वह विषय को जल्दी समझता है तो बारी-बारी से दोनों तरीके अपनाएं। अगर बच्चे को चित्र-तस्वीरें आदि देखना, ड्राइंग के लिए दिए गए रंगों को बिना बार-बार देखे ही सही तरीके से भरना पसंद हो या जब बात चार्ट आदि से पढ़ने की आए तो उसका उत्साह बढ़े तो स्पष्ट है कि वह देखकर सीखने वाली(विजुअल लर्नर) श्रेणी में आता है। जब आप बच्चों को उनके तरीके से समझाएंगे-पढ़ाएंगे तो जाहिर तौर पर बच्चे जल्दी सीखेंगे।
शिक्षा नीति बनी सहायक
जैसे-जैसे बच्चे बड़ी कक्षा में जाते हैं, आडिटरी लर्नर बच्चों के लिए यह मुश्किल होता जाता है, क्योंकि वहां उन्हें टेक्स्ट बुक और प्रोजेक्ट-असाइनमेंट वर्क पर ही निर्भर रहना होता है। इसके अलावा यह भी सत्य है कि बच्चों को अंतत: मौखिक के साथ ही लिखित परीक्षा में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना होता है, जो ऐसे बच्चों की दुविधा बढ़ा देता है।
हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और शिक्षण के तरीकों में आ रहे नित नए परिवर्तनों की वजह से विविध तरीकों से पढ़ाने की व्यवस्था आ चुकी है, जहां स्कूल में बच्चों को न सिर्फ किताबों से पढ़ाया जा रहा है बल्कि उन्हें अनुभवजन्य शिक्षा दी जा रही है, जिसमें चार्ट, विजुअल के साथ ही स्मार्ट बोर्ड के जरिए थ्रीडी फार्म में भी पढ़ाई कराई जा रही है। सीबीएसई और स्टेट बोर्ड्स में पढ़ाई को लेकर ऐसे रचनात्मक तरीकों पर धीरे-धीरे कार्य हो रहा है, मगर अभी भी काफी आगे जाने की जरूरत है।
समझें बच्चे की विशेषता
अगर बच्चा आपकी बताई बातों या किसी कार्य के लिए चरणों को फटाफट सीख जाए या बिना अतिरिक्त मेहनत के समझ जाए और स्वयं भी उन्हीं बातों को तत्काल दोहराए या उनसे जुड़े प्रश्न करे तो जाहिर है कि वह आडिटरी लर्नर है।
उदाहरण के लिए कोई कहानी सुनाएं। अगर थोड़ी ही देर में वह आपको आपके ही शब्दों के साथ वह कहानी सुनाए तो वह आडिटरी लर्नर है। वहीं विजुअल लर्नर बच्चे तस्वीरों से जुड़ी कहानी को फटाफट विजुअलाइज करके आपको बता देंगे।
दोनों का मिला-जुला तरीका बच्चों को आगे ले जाने में काफी सहायक होगा। जैसे नवजात का विकास मल्टीडायरेक्टशनल होता है, जहां लंबाई के साथ वजन भी बढ़ता है। ठीक वैसे ही बच्चों को सिखाने-समझाने के लिए विजुअल, आडिटरी और काइनेस्थेटिक, तीनों तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसलिए बच्चों को बोल-बोलकर पढ़ने की सलाह दी जाती है, ताकि वे अपनी आवाज सुनकर और आंखों से देखकर पाठ सीखें।
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