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    बच्चों का 'कम्फर्ट जोन' कहीं उन्हें कमजोर तो नहीं कर रहा? यहां पढ़ें बेहतर परवरिश के कुछ खास सबक

    Updated: Mon, 21 Jul 2025 06:46 PM (IST)

    सभी माता-पिता चाहते हैं कि बच्चों को कभी कोई मुश्किल छू भी न पाए। इस कोशिश में वे उन्हें सच्चाई से ही दूर कर देते हैं। जी हां हर इच्छा को पूरी करने से बच्चे किसी तरह का संघर्ष सीख नहीं पाते। इस आर्टिकल में ब्रह्माकुमारी उषा बता रही हैं कि बच्चों को कैसे दें वास्तविक जीवन में जूझने के सबक...

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    बच्चों की हर इच्छा पूरी करना क्यों है खतरनाक? (Image Source: Freepik)

    ब्रह्माकुमारी उषा, नई दिल्ली। गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। अर्थात् कच्ची मिट्टी के समान बच्चों को जब गुरु रूपी शिल्पकार थपकी देता है, तब जाकर वह सुंदर आकार लेते हैं। बच्चों के पहले गुरु उनके माता-पिता ही होते हैं। यदि वे सिर्फ कोमल हाथों से बच्चों को पालते-पोसते रहें, उनकी हर इच्छा को बिना कहे ही पूरा करते रहें, तो ऐसे बच्चे जीवन के संघर्षों का सामना करते ही टूट जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि उन्हें प्यार और दुलार के साथ-साथ अनुशासन और जीवन की शिक्षाएं भी दी जाएं ताकि वे किसी भी परिस्थिति का सामना करने से पीछे ना हटें।

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    आजकल की पैरेंटिंग में बच्चों को तमाम सुविधाएं देने की वजह से अधिकतर बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर बनते जा रहे हैं। आज बच्चे जिद्दी हो गए हैं, जिस चीज पर वे हाथ रख देते हैं उन्हें वो चाहिए ही होती है। बच्चे अपने फैसले खुद नहीं ले पाते, हमेशा असमंजस में रहते हैं। जरूरी है कि माता-पिता समझें कि बच्चों को सुविधाएं देना अच्छा है, लेकिन साथ ही बच्चों को वास्तविक जीवन के संघर्ष जानना भी जरूरी है। किसी इच्छा की पूर्ति करने के लिए उन्हें प्रयास करने दें, ताकि उन्हें छोटी से छोटी चीज का महत्व समझ आए।

    सच से कराएं रूबरू

    हर माता-पिता की चाह रहती है कि उनके बच्चों को जीवन की हर खुशी और सुविधाएं मिलें जिनके वे हकदार हैं, लेकिन साथ ही उन्हें जिम्मेदार भी बनाएं। बच्चों को अच्छी परवरिश देने की होड़ में कई बार पैरेंट्स कुछ गलतियां भी कर बैठते हैं। अपने लाड़-प्यार में वे बच्चों को जीवन के सच से रूबरू कराना भूल जाते हैं। पैरेंट्स को लगता है कि पैरेटिंग का यही सही तरीका है। बच्चों को तकलीफों से बचाने की होड़ में माता-पिता उन्हें एक खोल में रखकर जीवन के संघर्षों व शिक्षाओं से दूर कर देते हैं। फिर जब बच्चे उस सुनहरी मखमली दुनिया से बाहर निकलकर सच्चाई का सामना करते हैं तो उनके पैरों तले जमीन नहीं रहती!

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    जापान में पांच साल के बच्चों को भी जिम्मेदारी

    जापान में पांच साल के बच्चों को स्कूल में पढ़ाई शुरु करवाने से पहले दिनचर्या से जुड़े कुछ जरूरी काम सिखाए जाते हैं, जैसे साफ सफाई करना, अपने कपड़े खुद धोना, अपने सभी काम खुद करना आदि, ताकि जब उनके सामने ऐसी कोई भी परिस्थिति आए तो वे घबराएं नहीं और हर काम के लिए तैयार रहें।

    इन बातों का रखें ध्यान

    अहंकार से दूरी

    जब बच्चों को सब कुछ आसानी से मिलने लगता है तो उन्हें चीजों की कीमत या महत्व नहीं समझ आता, वे इंसानों को भी उसी मापदंड पर तौलने लगते हैं। उनके अंदर अहंकार पनपने लगता है। वे दूसरे बच्चों को हेय दृष्टि से देखने लगते हैं। विशेषकर अपने से कमतर लोगों को। यह माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को समान नजरिया अपनाने की शिक्षा दें और समाज में हर तबके के व्यक्तियों से कैसा बर्ताव करना है, ये भी सिखाएं।

    नैतिक शिक्षा

    स्कूल में ऐसी विशेष कक्षा ली जाए जहां प्रेरणादायी लोगों की कहानियां और उनके किस्से सुनाए जाएं, जिससे बच्चों के मानस पटल पर अच्छी छवि बने। साथ ही वहां ऐसे लोगों को बुलाया जाए जिन्होंने तमाम संघर्ष के बाद जीवन में सफलता प्राप्त की है। ऐसी हस्तियों से मिलकर बच्चों को प्रेरणा मिलती है।

    प्रैक्टिकल एजुकेशन है जरूरी

    किताबी पढ़ाई के अलावा बच्चों को बाहरी जिंदगी से भी परिचय कराना जरूरी है। बाहरी संघर्ष से उनका परिचय कराने से वे मानसिक रूप से सशक्त बनते हैं, ऐशो-आराम के अलावा भी जिंदगी हो सकती है इस सच से उनका सामना होता है। इसलिए उन्हें बीच बीच में ऐसी जगहों पर लेकर जाएं जहां बच्चे जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपने रास्ते खुद तलाश कर रहे हैं।

    वैल्यू एजुकेशन

    रोजाना बच्चों को एक वैल्यू जरूर सिखाएं। भले ही घर हो या स्कूल, एक सप्ताह तक इसकी प्रैक्टिस करने का टास्क दें। उदाहरण के तौर पर, बड़ों का सम्मान करना। वे घर पर किसको कितना सम्मान दे रहे हैं, उसकी एक सूची बनाएं। एक सप्ताह बाद वे इसे अपनी टीचर को सौंपें और बताएं कि उन्होंने क्या सीखा। इस तरीके से उनके अंदर अच्छे संस्कार जन्म लेंगे।

    पैसों की अहमियत समझाएं

    आज के बच्चों को पैसों की बिल्कुल अहमियत नहीं है। वे जिस चीज पर हाथ रखते हैं माता-पिता तुरंत उसे लाकर दे देते हैं। ऐसे में उन्हें छोटी-बड़ी चीजों का महत्व नहीं समझ आता। वे नहीं जान पाते कि कितनी मेहनत करके माता-पिता कमाते हैं और पैसों की क्या कीमत है। उन्हें सिखाना चाहिए कि तमाम असुविधाओं के बावजूद जिया जा सकता है।

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