Parents Child Relationship: सुलझाएं जिंदगी की पहेली, बच्चों के साथ कठिन हालातों का कैसे करें सामना
कभी आयु तो कभी दुर्घटना के कारण कोई नजदीकी हमेशा के लिए साथ छोड़ जाता है। हर उम्र के व्यक्ति के लिए यह कठिन समय होता है मगर कई बार बच्चों के सामने पहल ...और पढ़ें

गातिका कपूर, नई दिल्ली। दादाजी की मृत्यु को एक महीना हो चुका है, मगर 11 साल के शिवम को ऐसा लगता है कि वो शायद बड़ी बुआ के पास गए हैं और अब वो जिद करके बैठा है कि उसे दादा जी के साथ वीडियो कॉल पर बात करनी है।
माता-पिता परेशान हैं कि अब क्या करें, क्योंकि शिवम के लिए यह पहला अनुभव था, तो उन्होंने निर्णय लिया था कि शिवम को दादाजी की मृत्यु के बारे में न बताया जाए।
अक्सर होता है कि स्वजन बच्चों को तकलीफ न देने के चलते किसी की मृत्यु की खबर को न बताकर बहाना बना देते हैं, जबकि बच्चों को मृत्यु के बारे में समझाते समय ईमानदार रहना बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्हें आयु के अनुसार समझाएं कि वास्तव में क्या हुआ है। बच्चों से झूठ न बोलें कि वह व्यक्ति कहीं घूमने गया है और कुछ दिन में लौट आएगा या कि वह सो गया है और कभी वापस नहीं आएगा।
जब हम उन्हें इस तरह की बातें कहते हैं तो कभी-कभी बच्चे स्वयं या किसी अन्य के सोने पर डरते हैं क्योंकि वे कल्पना करने लगते हैं कि जो भी व्यक्ति सो जाता है, फिर कभी नहीं उठता।
शामिल करें अनुष्ठानों में
बच्चे की उम्र के आधार पर किसी प्रियजन की मृत्यु पर प्रतिक्रिया बहुत अलग हो सकती है। तीन साल से कम आयु के बच्चे मृत्यु को उतने उचित तरीके से समझ नहीं पाते मगर उनसे अधिक आयु के बच्चों के लिए कई बार ऐसा अनुभव पहली बार होता है।
उन्हें झूठ बोलकर कुछ न समझाएं। बच्चों को शोक सभा व अंतिम संस्कार के अनुष्ठानों में शामिल करें। उन्हें बताएं कि जो दुख या उदासी वे अनुभव करते हैं, वैसा अन्य सदस्य भी महसूस कर रहे हैं, ताकि वे इस कड़वे सत्य को समझ सकें।
जब मृतक से जुड़े सामान, उनकी पुरानी तस्वीरें आदि देखें तो बच्चों को भी साथ रखें, ताकि वे भावनात्मक उथल-पुथल को सामान्य प्रतिक्रिया के तौर पर लें।
उन्हें बताएं कि किसी की मृत्यु के बाद भले ही हमारा जीवन चल रहा है, इसका यह अर्थ नहीं कि हम उन्हें भूल गए या याद नहीं करेंगे। इससे वे बिना अपराधबोध के उबर पाएंगे।
नजरअंदाज न करें इशारे
शोक मनाने का कोई तय तरीका नहीं होता। कभी-कभी यह शुरुआती कुछ दिनों में दिखाई दे सकता है और कभी-कभी यह बाद के हफ्तों या महीनों में अधिक गहराई से दिखता है।
कई बार वे अधिक चिड़चिड़े या दुखी हो सकते हैं और उन गतिविधियों के प्रति उदासीन हो सकते हैं, जिनमें वे पहले रुचि रखते थे।
कभी-कभी वे भ्रम या अपराधबोध में रहने लगते हैं या बीमार भी हो जाते हैं क्योंकि वे उस खालीपन से निपटने का तरीका ढूंढ नहीं पाते।

(Image Courtesy: Freepik)
ऐसे में कुछ कठोर बदलावों का सामना करने के लिए तैयार रहें। हमें समय के साथ पता चल जाएगा कि कब बच्चा उस स्थिति से बाहर निकल रहा है।
हालांकि, यदि वे लंबे समय बाद भी अस्थिर मनोदशा में हैं, जहां उनकी भावनाओं में लगातार बदलाव हो रहा है, वे स्कूल या खेलकूद की गतिविधि में अधिक रुचि नहीं ले रहे हैं।
यदि वे मृतक के साथ रहने की इच्छा व्यक्त करते हैं, या कुछ ऐसा कहते हैं, जिससे ऐसा परिलक्षित हो कि वे मृत्यु की इच्छा या आत्महत्या के नजदीक जा रहे हैं, तो ये सभी संकेत हैं जहां हमें विशेषज्ञ की मदद लेने की आवश्यकता होती है।
समय दें उबरने का
कई बार बच्चे ऐसी स्थिति में अलग-थलग दिखाई देते हैं या जो हुआ, उसके बारे में कोई भावना प्रदर्शित नहीं करते और इसमें कोई बुरी बात नहीं। हर आयुवर्ग के लिए किसी स्थिति से उबरने का तरीका बहुत अलग होता है।
उन्हें स्थिति को संभालने के लिए समय दें। कई बार वे स्वजन के बजाय दोस्तों के साथ दुख साझा करना पसंद करते हैं। यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप किशोर या बच्चे की भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए तैयार रहें।
मुश्किलें तब आती हैं जब वयस्क स्वयं सहज महसूस नहीं करते। बच्चे के आस-पास एक सहायक माहौल बनाएं। हमें उनके सवालों या उनके द्वारा व्यक्त किए जा रहे किसी भी विचार के प्रति बहुत खुले रहने की भी आवश्यकता होती है। अगर बच्चे जीवन-मृत्यु संबंधी प्रश्न करें तो उन्हें आश्वस्त करें, उनसे बात करें।
कभी भी उन्हें चुप रहने या ऐसा कुछ पूछने से रोकें नहीं। इसके अलावा उनके स्कूल में भी यह जानकारी साझा करें ताकि स्कूल स्टाफ भी उन्हें इससे उबरने में मददगार साबित हो सके।
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