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    World Hemophilia Day: कहीं आप भी तो नहीं कर रहे हीमोफीलिया को मामूली समझनें की गलती, इन लक्षणों से पहचानें; बचाव के तरीके

    Updated: Thu, 17 Apr 2025 07:42 PM (IST)

    World Hemophilia Day हर वर्ष 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। इस दिन इस बीमारी से लोगों को जागरूक किया जाता है। हीमोफीलिया को लाइलाज बीमारी भी माना जाता है। इस बीमारी के बारे में विस्तार से बता रहे हैं लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज के हीमोफीलिया बीमारी के नोडल अधिकारी एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ नवरत्न गुप्ता...।

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    World Hemophilia Day: हीमोफीलिया... यह लाइलाज बीमारी, सावधानी ही बचाव (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    जागरण संवाददाता, मेरठ। हीमोफीलिया ज्यादातर पुरुषों में होने वाला आनुवांशिक रोग है... जिसमें शरीर से रक्त का बहना बंद नहीं होता। इसे लाइलाज बीमारी माना जाता है। बिना चोट लगे भी कोहनी, घुटना या कूल्हे आदि में आंतरिक रक्तस्राव से जोड़ सूज जाते हैं, जिससे असहनीय पीड़ा होती है और दिव्यांगता का खतरा बढ़ जाता है। चोट या दुर्घटना की स्थिति में यह बीमारी जानलेवा साबित होती है।

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    सावधानी ही इस बीमारी से बचाव है। हीमोफीलिया का पता लगाने के लिए जीन्स का टेस्ट कराना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस टेस्ट से पता चलता है कि कौन सा जीन्स प्रभावित है और संबंधित व्यक्ति को हीमोफीलिया ए है हीमोफीलिया बी।

    पीढ़ियों तक खतरा

    हीमोफीलिया से ग्रसित बच्चे में इसके लक्षण जन्म के समय नहीं दिखते। जब वह चलना-फिरना शुरू करता है तब लक्षण दिखने शुरू होते हैं। हीमोफीलिया के मरीज की उम्र सामान्य व्यक्ति की तुलना में कम से कम 10 साल कम होती है।

    ऐसे मरीज के मुंह और मसूड़े से रक्तस्राव होता है और दांत गिर जाते हैं। नाक और पेशाब के रास्ते से भी खून निकल सकता है। पाचन संबंधी समस्या भी होती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे संक्रमित होने के बाद खतरा पीढ़ियों तक बना रहता है।

    फैक्टर-आठ और नौ की महत्वपूर्ण भूमिका

    डॉ नवरत्न ने बताया कि फैक्टर 8 और फैक्टर 9 रक्त के थक्का बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रोटीन हैं। फैक्टर 8 की कमी को हीमोफीलिया ए और फैक्टर 9 की कमी को हीमोफीलिया बी कहा जाता है।

    हीमोफीलिया के लक्षण

    • छोटी चोट लगने पर भी बड़े-बड़े निशान पड़ना।
    • सर्जरी, चोट लगने, दांतों को साफ करते समय अधिक खून का बहना।
    • मांसपेशियों, जोड़ों एवं नाक से अचानक से खून का बहना।
    • जोड़ों में दर्द रहना, सूजन आना और शरीर में आलस्य भर जाना।
    • महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान अधिक खून का बहना।
    • त्वचा पर नीले निशान पड़ना, सांस लेने में कठिनाई, सिरदर्द, गर्दन दर्द होना।

    हीमोफीलिया: इस तरह से करें बचाव

    • ऐसा खेल खेलने से बचें, जिसमें चोट लगने का खतरा हो।
    • नियमित रूप से दंत चिकित्सक से परामर्श लें। दांतों की स्वच्छता बनाए रखें।
    • दांतों से निरंतर खून बहने पर डाक्टर को दिखाएं।
    • तैराकी करना, साइकिल चलाना फायदेमंद रहता है।
    • यदि परिवार में किसी को हीमोफीलिया है तो आनुवंशिक परामर्श लें।
    • ऐसी दवाओं से बचें जो रक्त के थक्के को प्रभावित करती हैं।
    • धूम्रपान व शराब का सेवन न करें।

    हीमोफीलिया बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। इसे वंशानुगत बीमारी भी कहा जाता है। जिसमें खून सामान्य तरीके से नहीं जमता है। आमतौर पर पुरुषों पर यह बीमारी अधिक पाई जाती है। इस बीमारी के लोगों को चोट लगने और सर्जरी के दौरान खून रोकने में दिक्कत आती है।

    डॉ नवरत्न गुप्ता, हीमोफीलिया बीमारी के नोडल अधिकारी एवं बाल रोग विशेषज्ञ, मेडिकल कालेज

    फिजियोथेरेपी है कारगर

    हीमोफीलिया के मरीजों के इलाज में फिजियोथेरेपी कारगर पद्धति है। ऐसे मरीजों के जोड़ कमजोर होते हैं। विशेषज्ञ फिजियो हीमोफीलिया ग्रसित मरीजों के जोड़ों में मजबूती के लिए आवश्यक व्यायाम करवाते हैं। साथ ही जोड़ों में जकड़न, सूजन व दर्द में राहत के लिए फिजियोथेरेपी का अहम रोल है।

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