40 का रेजर महिलाओं के लिए 100 का क्यों? पढ़ें कैसे महिलाओं की जेब पर डाका है यह 'पिंक टैक्स'
क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाओं के लिए मिलने वाला रेजर पुरुषों के रेजर से ज्यादा मंहगा क्यों होता है? दरअसल, ऐसी कई चीजें हैं, जो 'फॉर वुमन' का टैग ल ...और पढ़ें

सिर्फ रंग 'गुलाबी' है, इसलिए कीमत दोगुनी है? (AI Generated Image)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आप किसी दुकान पर जाते हैं और पुरुषों वाला रेजर खरीदते हैं, जिसकी कीमत 40 रुपए है। लेकिन अगर आप महिलाओं वाला रेजर चुनते हैं, तो आपको 100 रुपए चुकाने पड़ते हैं। दोनों प्रोडक्ट्स में फर्क क्या है? काम दोनों एक जैसा ही करते हैं, लेकिन महिलाओं वाला रेजर पिंक कलर का आता है और उसकी पैकेजिंग ज्यादा आकर्षक होती है। सिर्फ इस वजह से महिलाओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।
यह सिर्फ एक छोटा-सा उदाहरण है। अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो रोजमर्रा के जीवन में महिलाएं ऐसे कई भेदभाव और हिडन टैक्स चुकाती हैं, जिनके बारे में ज्यादातर पुरुष सोचते भी नहीं हैं। हर बार यह कीमत पैसों के रूप में दिखती, लेकिन हर महीने, हर साल महिलओं के जेब से चुपचाप निकल जाती है। इसे ही कहते हैं पिंक टेक्स। यह सिर्फ सेल्फ केयर प्रोडक्ट्स या कपड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि हेल्थ केयर और तमाम सर्विसेज में भी मौजूद होता है, जिसकी कीमत महिलाएं रोज चुपचाप चुकाती हैं।
क्या है पिंक टैक्स?
पिंक टैक्स कोई सरकारी टैक्स नहीं है। यह उन चीजों पर लगने वाला अतिरिक्त खर्च है जो खासतौर पर महिलाओं के लिए बनाई या बेची जाती हैं। एक ही काम करने वाला प्रोडक्ट जैसे रेजर, शैम्पू या मॉइस्चराइजर अगर महिलाओं के लिए “पिंक” पैकेजिंग में है, तो उसकी कीमत ज्यादा होती है। फर्क बस रंग और मार्केटिंग का होता है, काम वही। यानी महिला होने की कीमत आपको दुकान पर ही चुकानी पड़ती है।
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(AI Generated Image)
फैशन और ब्यूटी की महंगी शर्तें
महिलाओं के कपड़े, फुटवियर और एक्सेसरीज सबकुछ पुरुषों के मुकाबले महंगे होते हैं। फैशन के नाम पर कंपनियां महिलाओं के लिए ऐसे कपड़े डिजाइन करते हैं, जिसके कारण उन्हें साथ में हैंडबैग कैरी करना ही पड़ता है।
उदाहरण के लिए महिलाओं की जीन्स ही ले लीजिए। पुरुषों की जीन्स में आप आसानी से अपना स्मार्टफोन रखकर घूम सकते हैं। लेकिन महिलाओं की पॉकेट इतनी छोटी होती है कि उसमें फोन ठीक से फिट नहीं होता। इसके कारण हैंडबैग की जरूरत पड़ती है और इसकी अलग से कीमत भी चुकानी पड़ती है।
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(AI Generated Image)
फैशन के नाम पर महिलाओं के हिस्से एक और खर्च जोड़ दिया जाता है। ब्यूटी इंडस्ट्री भी महिलाओं को यह एहसास दिलाता है कि स्किन केयर, लेजर हेयर रिमूवल, बोटॉक्स, फेशियल आदि आपकी देखभाल के लिए जरूरी हैं, जिनका खर्च कभी खत्म नहीं होता।
हेल्थ टैक्स- सेहत भी सस्ती नहीं
महिलाओं की सेहत से जुड़े खर्च पुरुषों से कहीं ज्यादा हैं। पीरियड प्रोडक्ट्स, गायनेकोलॉजिस्ट विजिट, हार्मोनल टेस्ट, PCOS या फर्टिलिटी से जुड़े चेकअप ये सब नियमित खर्च हैं। कई हेल्थ ऐप्स पर भी महिलाओं के चेकअप पैकेज पुरुषों से महंगे मिलते हैं। यानी सेहत से जुड़ी बुनियादी जरूरतें भी महंगी हैं, लेकिन जरूरी भी, तो इनसे बचा नहीं जा सकता।
सेफ्टी टैक्स- सुरक्षित रहने की कीमत
महिलाएं अक्सर अपनी सुरक्षा के लिए ज्यादा पैसे खर्च करती हैं। सस्ती बस या ऑटो छोड़कर कैब लेना, रात की शिफ्ट से बचना, सुरक्षित इलाकों में महंगा किराया देना ये सब मजबूरी है, लग्जरी नहीं। पुरुष जहां सुविधा के हिसाब से फैसले लेते हैं, महिलाएं पहले सुरक्षा सोचती हैं और इस सोच की कीमत उन्हें हर महीने ज्यादा पैसे देकर चुकानी पड़ती है।
कम सैलरी, ज्यादा खर्च
दिक्कत यहीं खत्म नहीं होती। महिलाएं अक्सर पुरुषों से कम कमाती हैं, लेकिन खर्च ज्यादा करती हैं। करियर ग्रोथ धीमी, ब्रेक्स ज्यादा और सेफ्टी के चलते मौके छोड़ने की मजबूरी ये सब मिलकर इस बोझ को और बढ़ा देते हैं।
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(Picture Courtesy: Freepik)
मानसिक थकान भी एक टैक्स है
हर वक्त सोचना यह सुरक्षित है या नहीं, देर तक रुकना चाहिए या नहीं, क्या पहनना ठीक रहेगा यह मानसिक मेहनत भी एक कीमत है, जिसका कोई बिल नहीं बनता, लेकिन असर गहरा होता है।
दिखता नहीं, पर चुकाना पड़ता है
पिंक टैक्स, हेल्थ टैक्स और सेफ्टी टैक्स मिलकर यह साबित करते हैं कि महिला होना आज भी महंगा है। यह खर्च सिर्फ पैसों का नहीं, आजादी, मौके और मानसिक शांति का भी है। जब तक समाज इसे “नॉर्मल” मानता रहेगा, तब तक यह गुमनाम बिल हर महिला रोज चुकाती रहेगी, खामोशी से।

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