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    ‘प्यार में अंधा’ होना सिर्फ कहावत नहीं, हकीकत है; बड़ा दिलचस्प है इसके पीछे का ‘केमिकल लोचा’

    Updated: Tue, 09 Dec 2025 07:15 AM (IST)

    'प्यार में अंधे हो गए हो क्या?', 'उसे कुछ मत कहो, वह प्यार में अंधा हो गया है'... ऐसी बातें आपने कई बार सुनी होंगी और कई लोगों के मुंह से सुनी होगी। अ ...और पढ़ें

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    आखिर क्यों नहीं दिखतीं पार्टनर की कमियां? (AI Generated Image)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। ‘प्यार में लोग अंधे हो जाते हैं’ (Love is Blind) यह कहावत सदियों से चली आ रही है। साहित्य, फिल्मों और हमारी रोजमर्रा की बातचीत में यह वाक्य बार-बार दोहराया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है? 

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    क्या प्रेम में पड़ते ही व्यक्ति की आंखों की रोशनी कम हो जाती है, या इसके पीछे कोई गहरा वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक राज छिपा है? आइए, इस मजेदार सवाल की तह तक जाते हैं और समझते हैं कि प्यार का ‘अंधापन’ असल में क्या है।

    दिमाग में उठने वाला 'केमिकल तूफान’

    • दरअसल, प्यार का अनुभव दिमाग में शुरू होता है और यह एक जबरदस्त केमिकल रिएक्शन है। जब हम किसी की तरफ आकर्षण या प्रेम महसूस करते हैं, तो हमारे दिमाग में डोपामाइन, ऑक्सीटोसिन और सेरोटोनिन जैसे केमिकल्स का तूफान आ जाता है।
    • डोपामाइन, जिसे 'हैप्पी हार्मोन' भी कहते हैं, हमें प्रेम की भावना से भर देता है। यह हमारी 'रिवॉर्ड सिस्टम' को एक्टिव करता है, जिससे हमें अपने पार्टनर के आस-पास रहने पर बेहद खुशी का अनुभव होता है।
    • लेकिन इस केमिकल की वजह से एक और चीज होती है। यह हमारी लॉजिकल थिंकिंग को अस्थायी रूप से धीमा कर देता है। इसी कारण हम अपने साथी की कमियों या नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान नहीं देते। यह ठीक वैसा ही है जैसे आप किसी खूबसूरत नजारे को देखकर उसके आसपास की गंदगी को अनदेखा कर देते हैं।

    is love blind (1)

    (AI Generated Image)

    मनोविज्ञान- कमियों को 'अनदेखा' करना

    • इस अवस्था को ‘पॉजिटिव इल्यूजन’ भी कहा जाता है। प्यार में पड़ा व्यक्ति अपने साथी के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर देखता है और उनकी छोटी-बड़ी कमियों को या तो पूरी तरह से नजरअंदाज कर देता है, या उन्हें प्रेम की निशानी मानकर स्वीकार कर लेता है।
    • यह एक तरह का कॉग्निटीव बायस है, जहां भावनाएं हमारे लॉजिक पर हावी हो जाती हैं। हम अनजाने में उन सभी संकेतों या बातों को नजरअंदाज कर देते हैं जो हमारे मन में बनी साथी की छवि से मेल नहीं खातीं। इसे ही लोग 'प्यार का अंधापन' कहते हैं। यह आंखों का नहीं, बल्कि विवेक और क्रिटिकल थिंकिंग का अंधापन है।

    इमोशनल और साइकोलॉजिकल इनवेस्टमेंट

    इस अंधापन के पीछे हमारी मनोवैज्ञानिक जरूरतें भी काम करती हैं।

    • इमोशनल इनवेस्टमेंट- एक बार जब हम किसी रिश्ते में अपना समय, भावनाएं और एनर्जी लगा देते हैं, तो हम उसे किसी भी कीमत पर सफल बनाना चाहते हैं। रिश्ते को बनाए रखने की इस जबरदस्त चाहत के कारण भी हम अपने पार्टनर की उन कमियों को अनदेखा कर देते हैं जो रिश्ते को खत्म कर सकती हैं।
    • लंबे रिश्ते की चाह- अगर हम हर रिश्ते में अपने साथी की छोटी-छोटी कमियों पर भी लगातार ध्यान दें, तो शायद ही कोई रिश्ता लंबे समय तक टिक पाए। एक हद तक 'पॉजिटिव इल्यूजन' लंबे और संतुष्ट रिश्ते की नींव तैयार करता है।

    संतुलन की कला

    दिलचस्प बात यह है कि यह 'अंधापन' हमेशा बुरा नहीं होता, जो कपल एक-दूसरे के लिए ऐसे 'पॉजिटिव इल्यूशन' रखते हैं, वे अक्सर ज्यादा खुश और संतुष्ट रहते हैं। यह भावनात्मक बंधन को मजबूत करने का एक प्राकृतिक तरीका बन जाता है।

    हालांकि, यह अंधापन तब चिंताजनक हो जाता है, जब यह हमें किसी हानिकारक या टॉक्सिक रिश्ते में बांधे रखे। अपने साथी की कुछ कमियों को स्वीकार करना जरूरी है, लेकिन इतना भी नहीं कि आप अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत को ही दांव पर लगा दें। तो अब आप समझ गए होंगे कि ‘प्यार में अंधा होना’ क्यों कहा जाता है।