बच्चों पर महंगी पड़ रही मोबाइल की आदत, स्मार्टफोन की वजह से कम हो रही पढ़ने-लिखने की एबिलिटी
एएसईआर की अपडेटेड रिपोर्ट के अनुसार भले ही बच्चे स्मार्टफोन पर तेज अंगुलियां चला लें मगर पढ़ाई में वे बहुत पिछड़ रहे हैं। कहीं स्मार्टफोन ही तो बच्चों को नहीं बना रहा बौद्धिक स्तर पर कमजोर। एजुकेशन का जरूरी हिस्सा बन चुका स्मार्टफोन बच्चों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। ऐसे में इसके बेहतर उपयोग के बारे में बता रही हैं स्कूल साइकोलाजिस्ट गीतिका कपूर।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। एक समय था जब माता-पिता बच्चों की लेखनी और पढ़ने के कौशल पर गंभीरता से ध्यान देते थे। स्कूल में एक कक्षा लेखन और पठन के लिए भी होती थी। आज तकनीक के दौर में बड़े हो रहे बच्चे स्मार्टफोन पर तो खूब एक्टिव हैं, लेकिन उनमें लिखने और किताब पढ़ने का कौशल बेहद कम या लगभग खत्म होता जा रहा है।
इसका कारण, लैपटाप कीबोर्ड और मोबाइल स्क्रीन पर दौड़ रही अंगुलियां है, जिन्हें अब इतनी देर लिखने का अभ्यास नहीं हो पा रहा है। इस बात की पुष्टि करती है राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शिक्षा की वार्षिक स्थिति की ताजा रिपोर्ट (एएसईआर)। इसके अनुसार देश के 82.2 प्रतिशत छात्र वर्तमान समय में स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, मगर हालात ये हैं कि 14 से 18 साल के बच्चे कक्षा तीन के स्तर की गणित करने और 25 प्रतिशत पठन करने तक में अक्षम हैं।
और भी हैं घातक परिणाम
कोरोनाकाल के बाद बच्चों को पढ़ाई के लिए भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने की अनुमति मिल चुकी है। स्मार्टफोन व अन्य डिवाइस की इस आदत का परिणाम यह भी है कि बच्चों की सहनशक्ति कम हो रही है, जैसे ही उन्हें फोन का इस्तेमाल करने से रोका जाता है वे सामान्य से अधिक चिड़चिड़ापन प्रकट करने लगते हैं। उनके लिए स्क्रीन के छोटे फांट तो पढ़ना आसान है, मगर किताब में लिखे अक्षरों को वे मुश्किल से पढ़ पा रहे हैं। इसके अलावा उनमें एकाग्रता की कमी देखी गई है और उनका अटेंशन टाइम भी पहले से कम हो गया है।
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मुश्किल हुआ कम्युनिकेशन
देर तक लैपटाप, स्मार्टफोन आदि पर समय बिता रहे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की बात करें तो छोटे बच्चों में स्पीच डिले की समस्या आने लगी है। लोगों से बात करने का तरीका सीखने की प्रक्रिया धीमी हो गई है, क्योंकि उनका अधिकांश समय सामान्य लोगों से ज्यादा मोबाइल पर सिर्फ एकतरफा सुनते हुए ही बीतता है। वहीं, स्कूली बच्चे चूंकि हर समय मोबाइल के जरिए स्कूल टीचर, सहपाठी और इंटरनेट मीडिया पर जुड़े हैं, ऐसे में कभी-कभी स्कूल में होने वाली बुलिंग या सहपाठियों के बीच हुई चर्चा स्कूल के बाद भी साथ रहती है।
यह उन्हें सामाजिक तौर पर बदमाश बना रही है और जो इस बुलिंग को झेल रहे हैं, वे बच्चे अवसाद की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। स्मार्टफोन की इतनी पहुंच बच्चों को मीडिया एडिक्ट बना रही है। रील्स, वीडियो, शार्ट्स की लत लग जाना भी ऐसे में आम होने लगा है। सोशल एंग्जाइटी ऐसे बच्चों में बहुत सामान्य हो जाती है जहां उन्हें सामान्य लोगों के बीच बैठना, आमने-सामने बैठकर बात करना मुश्किल लगने लगता है।
उठाएं तकनीक का लाभ
फिलहाल स्कूल में खराब मौसम के चलते या किसी अन्य अकस्मात अवकाश में स्मार्टफोन/कंप्यूटर की मदद से आनलाइन पढ़ाई को विकल्प बनाकर रखा गया है। चूंकि बच्चों को स्कूल ही स्मार्टफोन पर एक्टिव रखने की वजह दे रहे हैं तो बेहतर होगा कि वे बच्चों को किताब के पाठ पढ़ने, गणित के कौशल सीखने, आर्ट में रचनात्मकता लाने में एआइ और अन्य तकनीक की मदद लेने की सलाह दें। एआइ की मदद से अलग-अलग बौद्धिक स्तर के बच्चों की पढ़ाई कराई जा सकती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि इसे फिजिकल एक्टिविटी या स्कूल के विकल्प के तौर पर नहीं बनने देना है। बेहतर होगा कि बच्चों को रोजाना के कार्यों में शामिल करें। उन्हें उनकी आयु के हिसाब से वो जिम्मेदारियां दें, जो उन्हें रोचक लगें और कुछ देर के लिए स्मार्टफोन से अलग कर दें।
आज बच्चे इस वजह से भी स्क्रीन टाइम बढ़ा देते हैं, क्योंकि उनके हर काम किसी सहायक या आपके द्वारा पूरे हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें कुछ करने की जरूरत नहीं होती। माता-पिता को चाहिए कि वे शिक्षकों के संपर्क में रहें और यह जानते-समझते रहें कि वे कितना काम स्मार्टफोन पर दे रहे हैं, कई बार बच्चे झूठ बोल देते हैं कि वे स्मार्टफोन या किसी वेबसाइट आदि का इस्तेमाल टीचर की सलाह पर कर रहे हैं। जब आप उनकी आनलाइन एक्टिविटी पर नजर बनाए रखेंगे तो वे आनलाइन भटकने से भी बचे रहेंगे।
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