स्मार्टफोन और AI के बावजूद युवाओं के दिलों पर राज कर रही किताबें, जानिए क्या है इसकी वजह
आजकल स्मार्टफोन और AI के जमाने में भी अगर युवा किताबें देखने-पढ़ने और खरीदने के लिए उमड़ पड़ें तो यह मुद्रित शब्दों के उज्ज्वल भविष्य का संकेत है। नए दौर में किताबें स्टेटस सिंबल हैं किताब पढ़ना कूल है और किताबों का मेला एक खास इवेंट बन गया है। हालांकि यह उत्साह उतना तेज नहीं है। ऐसे में आइए प्रो. रमेश चंद्र गौड़ से जानें इसे बढ़ावा देने के तरीके।

प्रो. रमेश चंद्र गौड़, नई दिल्ली। पुस्तकें हमारे मार्गदर्शक, एक मित्र, एक गुरु के रूप में हमें ज्ञान प्रदान करती हैं एवं हर कार्य में सफलता का मार्ग प्रशस्त करती हैं। सदियों से पुस्तकें ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत रही हैं। एक करोड़ से ज्यादा पांडुलिपियां भारत की ज्ञान-परंपरा को बहुत ही सुदृढ़ रूप में हमें अपने स्वर्णिम काल से जोड़ती हैं। ये पांडुलिपियां सिर्फ हमारे धर्म और संस्कारों के विषय में ही नहीं, अपितु गणित, विज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद, खगोलविज्ञान और वास्तुशास्त्र के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं और हमें उस समय की ज्ञान-परंपराओं, संस्कारों, कला एवं संस्कृति की भी सही जानकारी प्रदान करती हैं।
सोचिए, अगर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण नहीं लिखी होती और उसे पढ़कर तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस की रचना नहीं की होती तो क्या हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जान पाते। क्या रामायण के विभिन्न भाषाओं में करीब 331 संस्करण तैयार हो पाते। आज पुस्तकें मुद्रित एवं ई-पुस्तक दोनों रूपों में उपलब्ध हैं। विभिन्न व्यक्तियों के ब्लाग, यूट्यूब चैनल तथा अन्य इंटरनेट माध्यमों से भी ज्ञान मिलता है, लेकिन मुद्रित पुस्तकों का अपना अलग ही महत्व है।
एक समय था जब पाठकों को पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता थी, मगर अब पुस्तकालयों के साथ-साथ पाठकों के पास ज्ञान के और भी स्रोत हैं, लेकिन पुस्तकों का महत्व भूतकाल में भी था, वर्तमानकाल में भी है और भविष्य में भी रहेगा, क्योंकि पुस्तकों का कोई विकल्प नहीं है। उनका रूप बदल सकता है, वो आडियो या ईबुक के रूप में हो सकती हैं।
सूचना वैज्ञानिक एफ. डब्ल्यू. लैनचेस्टर ने 1980 में एक भविष्यवाणी की थी कि 20वीं शताब्दी के अंत तक पूरी तरह से हम कागज रहित हो जाएंगे, लेकिन तब से लेकर अब तक भी कागज का उपयोग बढ़ा है, घटा नहीं है। ये बात सही है कि हम डिजिटल युग की ओर बहुत तेजी के साथ बढ़ रहे हैं, किंतु मुद्रित पुस्तकों का उपयोग आज भी महत्वपूर्ण है। विषय सामग्री चाहे ईबुक के रूप में ही क्यों न हो, लेकिन आज भी ज्यादातर व्यक्ति उसका प्रिंट निकालकर पढ़ना ही पसंद करते हैं।
भीड़ बता रही भविष्य
एक विचार जो सभी के मस्तिष्क में बैठ गया है कि सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है, उसे हमें बदलना होगा। यह सत्य है कि इंटरनेट पर बहुत सारी ज्ञानवर्धक जानकारी है। साथ ही साथ इंटरनेट पर मिथ्या, अप्रमाणित, पक्षपाती एवं गलत ज्ञान का भी भंडार है। इस तरह के ज्ञान के उपयोग से सबसे बड़ा नुकसान यह है कि हमारी शिक्षा एवं अनुसंधान गलत दिशा में जा सकता है। विश्व पुस्तक मेला जो हर वर्ष प्रगति मैदान (भारत मंडपम्) में आयोजित किया जाता है, यहां अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों तथा पुस्तकप्रेमियों की संख्या में युवाओं की भीड़ उम्मीद दर्शाती है कि मुद्रित पुस्तकों के प्रति रुझान कम नहीं हुआ है।
सही मायने में पुस्तकें समाज का दर्पण होती हैं। यदि हमें किसी देश के समाज, कला, साहित्य, संस्कृति, राजनीति तथा अन्य किसी भी विषय के बारे में जानना हो तो पुस्तकों से महत्वपूर्ण कोई भी स्रोत नहीं हो सकता। एक पुस्तक लिखने के लिए लेखक बहुत सारे संदर्भों का अध्ययन करता है और उन संदर्भों अर्थात पुस्तकों, पत्रिकाओं इत्यादि को पढ़कर उनमें उपलब्ध ज्ञान को संग्रहीत कर नूतन ज्ञान का उदाहरण प्रस्तुत करता है। आने वाले समय में इस ज्ञान का देश के लिए, समाज तथा विश्व के लिए क्या महत्व है, ये सब ज्ञान हमें पुस्तकें ही प्रदान करती हैं।
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बदलना होगा पढ़ाने का तरीका
यूं तो हम ईबुक में गुम नई पीढ़ी पर दोषारोपण करते हैं कि वो किताबों के प्रति उनसे पहले की पीढ़ी से अधिक उदासीन हैं, किंतु इसके लिए कहीं-ना-कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था एवं अध्यापक भी जिम्मेदार हैं। हमारे अध्यापक उतना समय नहीं देते, जितना उनको देना चाहिए। उनको शिक्षा प्रणाली में केस आधारित, स्टोरी टेलिंग तथा प्रोजेक्ट आधारित इत्यादि ज्यादा से ज्यादा पुस्तकों का इस्तेमाल करना चाहिए।
हम सब जानते हैं कि दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियां, जो उन्होंने हमें बचपन में सुनाई थीं वे आज भी हमें याद हैं। हमें अपनी पूरी शिक्षा-प्रणाली को रोचक बनाना होगा चाहे कथा सुनाना हो, पुस्तक प्रतियोगिता या क्विज कांटेस्ट के माध्यम से, किसी-ना-किसी रूप में युवाओं को पुस्तकों से जोड़ना होगा। पुस्तकों के विषय में युवाओं में उत्सुकता पैदा करनी होगी। अध्ययन की आदतों को बढ़ाना होगा।
ऐसे सुधरेगी स्थिति
गत वर्षों में भारत सरकार की संस्थाओं तथा अन्य संस्थाओं द्वारा आयोजित क्षेत्रीय पुस्तक मेले तथा साहित्यिक मेलों में कुछ उत्साहवर्धक वृद्धि देखने को मिली है। यह एक शुभ संकेत है। इस दिशा में नई शिक्षा प्रणाली 2020 में कुछ अच्छे प्रयास किए गए हैं, लेकिन उनकी सार्थकता को सारगर्भित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रयास होगा कि पुस्तकालयों की स्थिति को अच्छा बनाएं। प्रौद्योगिकी और कुछ रणनीतियों का लाभ उठाकर, हम युवाओं में पठन-पाठन की प्रक्रिया एवं पढ़ने की रुचि को और तेज कर सकते हैं। इसके लिए निश्शुल्क पठन सामग्री उपलब्ध करा रहीं नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी आफ इंडिया तथा अन्य डिजिटल रिपाजिटरी, अभिलेखागार प्रोजेक्ट, गुटेनबर्ग जैसे प्लेटफार्म को प्रोत्साहित करना होगा।
स्कूलों और कालेजों में बुक क्लब, कहानी सुनाने के सत्र और वाद विवाद एवं अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा सकता है। पढ़ने की आदत बढ़ाने के लिए गेमिफिकेशन तकनीकों, जैसे कि रिवार्ड आधारित रीडिंग ऐप का उपयोग करें। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर लघु रूप पुस्तक समीक्षा और चर्चा को बढ़ावा दे सकते हैं। स्कूलों, पुस्तकालयों और सार्वजनिक स्थानों पर आरामदायक बैठने की जगह और विविध पुस्तकों को पढ़ने के लिए अच्छे आधुनिक पुस्तकालयों को स्थापित करना होगा। पुस्तकों के अध्ययन में रुचि बढ़ाने के लिए एक प्रयास परिवार की तरफ से भी करना होगा, क्योंकि बच्चें जो देखते हैं, वही सीखते हैं।
(लेखक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में प्रोफेसर एवं कलानिधि विभाग के प्रमुख हैं)
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