दूसरों की मदद करके आप भी रखते हैं तारीफ की उम्मीद, तो तुरंत बदल लें आदत; नहीं तो हमेशा रहेंगे दुखी
कभी किसी की दिल से मदद की लेकिन सामने वाले ने Thankyou तक नहीं कहा? या फिर किसी मुश्किल में फंसे दोस्त को सहारा दिया लेकिन उसने आपको याद भी नहीं रखा? अगर हां तो आपने भी उस छिपी उम्मीद को महसूस किया होगा- कि मैंने इतना किया कम से कम एक तारीफ तो बनती थी! आइए जानें आपको यह उम्मीद क्यों नहीं रखनी चाहिए (Why You Shouldnt Expect Praise)?

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Why You Shouldn't Expect Praise: हम में से बहुत से लोग मदद करने के बाद तारीफ, या सराहना की उम्मीद पाल लेते हैं और जब वो उम्मीद पूरी नहीं होती, तो दुख, गुस्सा या पछतावा हमें घेर लेता है। पर क्या सच में मदद, मदद रह जाती है जब उसके पीछे एक मकसद छिपा हो?
आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि मदद करते समय अगर आप दूसरों से रिटर्न की उम्मीद रखते हैं, तो वो कैसे आपकी खुशियों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन सकता है और कैसे इस सोच को बदलकर आप जिंदगी में ज्यादा संतुष्टि (The Joy of Giving) पा सकते हैं।
समझिए मदद का असल मतलब
मदद करना इंसान की सबसे खूबसूरत भावनाओं में से एक है। यह न सिर्फ दूसरों के लिए, बल्कि खुद के आत्मसम्मान और आत्मसंतोष के लिए भी बहुत जरूरी होता है।
जब आप बिना किसी शर्त के किसी की मदद करते हैं, तो इसका असर दिल-ओ-दिमाग पर भी साफ नजर आता है। जी हां, इससे आपको अंदरूनी शांति मिलती है, खुद पर गर्व महसूस होता है और मन भी हल्का रहता है, लेकिन ये सुकून तब खो जाता है जब हम मदद को लेन-देन का रूप दे देते हैं- यानी “मैंने तुम्हारे लिए ये किया, अब तुम्हें भी मेरे लिए कुछ करना चाहिए।”
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क्यों तकलीफ पैदा करती है तारीफ की उम्मीद?
जब आप तारीफ, धन्यवाद या बदले की भावना की उम्मीद से मदद करते हैं, तो आप दूसरे के व्यवहार को अपने सुख का केंद्र बना देते हैं।
सोचिए- आपने दिल से मदद की, लेकिन उसने जाहिर नहीं किया। आपने समय, पैसा या मेहनत लगाई, लेकिन सामने वाला भूल गया। इससे आपको कैसा लगता है? तकलीफ होती है, क्योंकि आपने मदद दी थी थैंक्स की उम्मीद में, न कि बिना किसी स्वार्थ के।
क्या कभी नहीं रखनी चाहिए थैंक्स की उम्मीद?
ऐसा बिलकुल नहीं है! जी हां, हर इंसान को सम्मान और सराहना मिलनी चाहिए, लेकिन उसे अपेक्षा बनाना आपको ही नुकसान पहुंचाता है। आपका काम है मदद करना और दूसरों का काम है उसकी कदर करना। अगर वो न करें, तो ये उनकी सोच की कमी है, आपकी फीलिंग की नहीं।
कैसे छोड़ें ये तारीफ सुनने की आदत?
मदद को पूजा समझें, सौदा नहीं:
जैसे मंदिर में दान देते समय आप रसीद नहीं मांगते, वैसे ही मदद को भी दिल से दें।
'करके भूल जाना' सीखें:
मदद करके उसका लेखा-जोखा न रखें। इससे मन हल्का रहेगा।
खुद से पूछें – 'मैं ये क्यों कर रहा हूं?'
अगर जवाब आता है ‘क्योंकि मुझे अच्छा लगता है’, तो आप सही राह पर हैं।
छोटी तारीफ पर खुश होना सीखें:
कभी किसी की मुस्कान, आंखों का आभार या बस उसका शांत चेहरा — यही सबसे बड़ा धन्यवाद है।
अपनी फीलिंग्स को दूसरों के रवैये से न जोड़ें:
लोग कैसे रिएक्ट करते हैं, ये उनकी पर्सनैलिटी का हिस्सा है- आपकी अच्छाई नहीं।
इस बदलाव से लंबे समय में क्या मिलेगा?
जब आप बिना अपेक्षा के मदद करना सीख जाते हैं, तो आपको ये फायदे मिलते हैं:
- मन शांत रहता है
- आप दूसरों के व्यवहार से कम प्रभावित होते हैं
- आपकी संतुष्टि और आत्मबल बढ़ता है
- रिश्तों में तनाव कम होता है
- आप अंदर से ‘संतुष्ट’ महसूस करते हैं
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