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    अंधेरे में हम कैसे देख पाते हैं चीजें... बिना रोशनी के किस तरह काम करता है हमारा दिमाग?

    Updated: Sun, 09 Nov 2025 11:22 AM (IST)

    क्या आपने कभी सोचा है कि जब बिजली चली जाती है या रात को कमरे में अंधेरा हो जाता है, तब भी हमारी आंखें और दिमाग किस तरह चीजों को समझने की कोशिश करते हैं? जी हां, पूरी तरह अंधेरे में भी, हमारा दिमाग बिल्कुल खाली नहीं बैठता, बल्कि वह एक बहुत ही दिलचस्प खेल शुरू कर देता है।

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    अंधेरे में आंखें और दिमाग कैसे करते हैं काम? (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि जब बिजली चली जाती है और आपके कमरे में घना अंधेरा छा जाता है, तो क्या सचमुमुच आपकी आंखें पूरी तरह से हार मान लेती हैं या फिर आपका दिमाग, एक जासूस की तरह, अंधेरे के बावजूद काम करना जारी रखता है?

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    हम अक्सर मानते हैं कि देखना पूरी तरह से रोशनी पर निर्भर करता है, लेकिन जब चारो ओर घुप अंधेरा होता है, तब हमारा मस्तिष्क एक अदृश्य, अविश्वसनीय खेल शुरू करता है। वह कैसे बिना किसी दृश्य इनपुट के परछाइयों को पहचानता है, और कभी-कभी डरावनी आकृतियां भी बना देता है? आइए, इस रहस्यमयी विज्ञान को समझते हैं कि रोशनी के बिना भी हमारा दिमाग कैसे तस्वीरें बनाना जारी रखता है।

    How We See in the Dark

    रोशनी के बिना आंखें कैसे काम करती हैं?

    सबसे पहले, यह समझना जरूरी है कि 'देखना' क्या होता है। असल में, हम किसी चीज को इसलिए देख पाते हैं क्योंकि उस पर रोशनी पड़ती है और वह रोशनी हमारी आंखों तक वापस लौटकर आती है। हमारी आंख के पीछे, जहां रेटिना होता है, वहां दो तरह की कोशिकाएं होती हैं: एक जो रंग और तेज रोशनी में देखने में मदद करती है, और दूसरी जिसे 'रॉड्स' कहते हैं। ये 'रॉड्स' ही असली हीरो हैं, जो बहुत ही कम रोशनी में भी काम कर सकती हैं।

    दिमाग खोलता है याददाश्त की तिजोरी

    जब कमरा पूरी तरह अंधेरे में होता है, तब हमारी 'रॉड्स' कोशिकाएं एक्टिव हो जाती हैं, लेकिन सिर्फ आंखें ही काम नहीं करतीं; असली जादू तो दिमाग में होता है। दिमाग एक तरह से जासूस की तरह काम करता है।

    याददाश्त का इस्तेमाल: दिमाग तुरंत अपनी याददाश्त को खंगालना शुरू कर देता है। जिस कमरे में आप हैं, वहां की चीजें पहले कहां थीं? दरवाजा कहां है? मेज किस तरफ है? दिमाग इन पुरानी तस्वीरों का इस्तेमाल करके अंधेरे में एक अंदाजा लगाता है।

    आवाज और छूना: अंधेरे में, हमारी सुनने की शक्ति और स्पर्श की भावना तेज हो जाती है। जब आप चलते हैं, तो आपके पैरों की आवाज या हवा का बहाव- ये सभी चीजें दिमाग को जगह का नक्शा बनाने में मदद करती हैं।

    man in the dark

    कल्पना और पुरानी यादों से बनाता है 'नया नजारा'

    कई बार आपने देखा होगा कि अंधेरे में कोई चीज जो कंबल हो सकती है, वह किसी भूत या अजीब आकृति जैसी दिखती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब रोशनी बहुत कम होती है, तो आंखें सही विवरण नहीं भेज पातीं। दिमाग को जब आधी-अधूरी जानकारी मिलती है, तो वह उसे अपनी कल्पना और पुरानी यादों के साथ मिलाकर एक पूरी तस्वीर बनाने की कोशिश करता है। इसी कोशिश में कई बार वो चीजें दिखती हैं, जो असल में वहां होती ही नहीं हैं।

    संक्षेप में, हम अंधेरे में 'देख' नहीं पाते, बल्कि हमारा दिमाग हमारी पुरानी जानकारी, आवाज और कल्पना की मदद से यह अंदाजा लगाता है कि चीजें कहां हैं। यही कारण है कि हम अंधेरे में ठोकर खाए बिना कुछ दूर तक चल पाते हैं।

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