क्या आप भी 'रील्स' और 'मीम्स' से जानते हैं देश का हाल? कैसे यह आदत आपको कर सकती है गुमराह
आजकल सोशल मीडिया का बोल-बाला काफी बढ़ गया है। लोगों का ज्यादातर समय इन्हीं प्लैटफॉर्म्स पर स्क्रॉल करते हुए बीतता है। ऐसे में कई युवा देश-दुनिया की खब ...और पढ़ें

क्या इंस्टाग्राम ही है आपका अखबार? (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज का युवा वर्ग समाचारों से जुड़ाव के लिए पारंपरिक टीवी चैनलों या अखबारों की बजाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को तरजीह दे रहा है। रील्स, स्टोरीज, मीम्स और पोस्ट्स के जरिए दुनिया की खबर रखना अब लोगों को ज्यादा सुविधाजनक लगता है। लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं।
जी हां, अगर आप भी अपनी ज्यादातर न्यूज किसी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म से लेते हैं, तो आपको जरा सावधान हो जाना चाहिए। ऐसा करने से आपको कुछ नुकसान भी झेलने पड़ सकते हैं। आइए जानें सोशल मीडिया से न्यूज कंज्यूम करने के क्या नुकसान हैं।
सतही समझ और कॉन्टेक्स्ट का अभाव
सोशल मीडिया की प्रकृति ही विजुअल, शॉर्ट और इंस्टेंट कंटेंट पर आधारित है। बड़ी से बड़ी घटनाओं को 60-सेकंड की रील या एक इमेज में समेटना अक्सर समस्या के विश्लेषण या ऐतिहासिक सन्दर्भ को अनदेखा कर देता है। युवा पाठकों को घटना की सतही जानकारी तो मिल जाती है, लेकिन उसका बैकग्राउंड, कारण और लंबे समय के असर की समझ विकसित नहीं हो पाती। यह अधूरी जानकारी गलत धारणाओं को बढ़ावा दे सकती है।
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(AI Generated Image)
फेक न्यूज और मिसइनफॉर्मेशन का खतरा
सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएटर अक्सर पत्रकारिता के मानकों या फैक्ट चेक से बंधे नहीं होते। आकर्षक ग्राफिक्स और सनसनीखेज हेडलाइंस के पीछे गलत या भ्रामक जानकारी आसानी से वायरल हो जाती है। एल्गोरिदम कंज्यूमर की पसंद के अनुसार कंटेंट दिखाता है, जिससे 'इको चैम्बर' पैदा होता है यानी एक ही तरह का कंटेंट बार-बार दिखने लगता है। युवा केवल एक ही तरह के विचार देखते हैं, जिससे उनकी सोच एक बॉक्स में सीमित हो सकती है और उन्हें गुमराह करना आसान हो जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
अक्सर नकारात्मक या बायस्ड खबरों के संपर्क में रहने से युवाओं में एंग्जायटी, डिप्रेशन और कन्फ्यूजन की भावना पनप सकती है।
इन्फॉर्मेशन डिसबैलेंस
इंस्टाग्राम से मिलने वाली खबरें अक्सर एंटरटेनमेंट, सेलिब्रिटी और खास रुचि वाले मुद्दों पर केंद्रित होती हैं। इससे युवाओं का इन्फॉर्मेशन बैलेंस बिगड़ जाए। यानी एक ही तरह की खबरे देखने को मिलें और कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पीछे छूट जाएं।
सोशल मीडिया से न्यूज लेना गलत नहीं है, लेकिन वह आपका एकमात्र सोर्स नहीं होना चाहिए। जरूरी है कि आप सोशल मीडिया पर जो भी देखते हैं, उसे किसी पुख्ता सोर्स से वेरिफाई करें और तभी उस पर भरोसा करें। अखबार पढ़ना जरूरी है, ताकि आपमें मुद्दों की गहरी समझ विकसित हो, न कि सिर्फ सतही जानकारी मिले।

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