Daylight Saving, जिसमें घड़ी का समय बदल लेते हैं लोग; सहूलियत के चलते कर बैठते हैं सेहत का नुकसान
डे लाइट सेविंग एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें लोग मौसम के मुताबिक घड़ी को आगे या पीछे करते हैं। यह सिस्टम अमेरिका ब्रिटेन जैसे देशों में काफी प्रचलित है। हालांकि कई जगह इसका विरोध किया जा रहा है क्योंकि इसे सेहत के लिहाज से काफी हानिकारक माना जाता है। आइए जानते हैं क्या है डे लाइट सेविंग और इसके नुकसान।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आमतौर पर दुनियाभर में समय का एक ही पैटर्न फॉलो होता है। हालांकि, मौसम और लोकेशन के मुताबिक, अलग-अलग जगहों के समय में अंतर देखने को मिलता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां लोग खुद मौसम के मुताबिक, दिन और रात का समय बढ़ाने के लिए लोग घड़ी में बदलाव करते हैं। अगर आपको सुनकर हैरानी हुई है, तो बता दें कि यह बिल्कुल सच है।
हालांकि, भारत में कई लोग इस कॉन्सेप्ट से अनजान हैं, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन जैसे कई देशों में इसे कॉन्सेप्ट को फॉलो किया जाता है। यहां लोग साल में कुछ महीनों के लिए घड़ी को मौसम के मुताबिक आगे या पीछे कर देते हैं। इस प्रोसेस को डेलाइट सेविंग टाइम के नाम से जाना जाता है। आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे क्या होता है डेलाइट सेविंग टाइम और कैसे ये सेहत को करता है प्रभावित (how daylight saving impacts the body)-
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क्या है डे लाइट सेविंग टाइम?
डे लाइट सेविंग टाइम (Daylight saving time effects), जैसा कि नाम से पता चल रहा है कि यह प्रोसेस किसी देश के समय को एक घंटा आगे या पीछे करने की प्रक्रिया होती है, जिससे दिन के उजाले का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकें। आमतौर पर ऐसे हर छह महीने में किया जाता है। यानी गर्मी के दिनों में घड़ी की सुई को एक घंटा आगे कर दिया जाता है और सर्दी आने पर इसे एक घंटा पीछे कर दिया जाता है।
कब शुरू हुआ समय बदलने का यह चलन?
डे लाइट सेविंग टाइम सबसे पहले जर्मनी में साल 1916 में लागू किया गया था। बाद में इसे अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों ने अपना लिया था। हालांकि, कुछ जगहों पर इस सिस्टम को पूरी तरह से नकार दिया गया और कई इसे खत्म करने की मांग भी की गई। ऐसा करने के पीछे कई कारण थे, जिसमें से एक सेहत पर इसका बुरा असर भी था।
सेहत पर डे लाइट सेविंग टाइम के नुकसान
वर्तमान में कई जगहों पर डे लाइट सेविंग टाइम का विरोध किया रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसकी वजह से सेहत पर बुरा असर पड़ता है। कई स्टडीज में यह पाया गया कि इस पैर्टन को फॉलो करने से स्लीप क्वालिटी पर असर पड़ता है। इससे सर्केडियन रिद्म (circadian rhythm disruption) प्रभावित होती है, जिससे नींद खराब होती है, हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है।
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