एक नहीं, तीन-तीन राज्यों की शान है लोक नृत्य छऊ, यूनेस्को भी कर चुका है सराहना
भारत में कई प्रकार के लोक नृत्य किए जाते हैं जिनका अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है। इनमें ही छऊ नृत्य (Chhau Dance) भी शामिल है जो ओडिशा झारखंड और पश्चिम बंगाल का मशहूर लोक नृत्य है। पौरानिक और लोक कथाओं को दर्शाने का यह बेहद शानदार तरीका है जिसका सराहना यूनेस्को भी कर चुका है। आइए जानते हैं इस खास नृत्य शैली से जुड़ी कुछ खास बातें।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। छऊ नृत्य (Chhau Dance), जिसे छौ नाच के नाम से भी जाना जाता है, भारत की एक प्रमुख लोक नृत्य शैली है। यह नृत्य अपनी अनूठी शैली, मार्शल आर्ट के तत्वों और पौराणिक कथाओं के प्रदर्शन के लिए मशहूर है (Chhau dance history)।
छऊ नृत्य तीन अलग-अलग शैलियों में प्रस्तुत किया जाता है- पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ, झारखंड का सरायकेला छऊ और ओडिशा का मयूरभंज छऊ। यह नृत्य (Indian performing arts) न केवल भारत, बल्कि विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। साल 2010 में इसे यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (UNESCO Intangible Cultural Heritage India) की सूची में शामिल किया गया था।
छऊ नृत्य की विशेषताएं
छऊ नृत्य की सबसे बड़ी विशेषता इसकी तीन अलग-अलग शैलियां हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती हैं। पुरुलिया छऊ और सरायकेला छऊ में नर्तक खास प्रकार के मुखौटों का इस्तेमाल करते हैं, जो पौराणिक कथाओं और देवी-देवताओं को दर्शाते हैं।
इन मुखौटों को पश्चिम बंगाल और झारखंड के कलाकार अपने हाथों से बनाते हैं। वहीं, मयूरभंज छऊ में मुखौटों का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि नर्तक अपने चेहरे के एक्सप्रेशन और शारीरिक गतिविधियों के जरिए से कहानी में जान फूंकते हैं।
छऊ नृत्य में मार्शल आर्ट के तत्वों को भी शामिल किया गया है, जो इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग बनाता है। नर्तकों की शारीरिक क्षमता, फ्लेक्सिबिलिटी और ताकत इस नृत्य को देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। नृत्य के दौरान पौराणिक कथाओं, महाकाव्यों और लोक कथाओं को दर्शाया जाता है। खासकर भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ी कहानियां इस नृत्य का अहम हिस्सा हैं।
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त्योहारों और समारोहों में छऊ नृत्य
छऊ नृत्य का आयोजन मुख्य रूप से वसंत ऋतु के दौरान किया जाता है। चैत्र पर्व के अवसर पर 13 दिनों तक छऊ नृत्य का समारोह चलता है। इस दौरान अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह नृत्य सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लाता है और सामुदायिक एकता को मजबूत करता है। त्योहारों के अलावा, यह नृत्य अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रमों और राष्ट्रीय उत्सवों में भी प्रस्तुत किया जाता है।
सांस्कृतिक महत्व
छऊ नृत्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह अपने भीतर कई पौराणिक कथाओं और लोक परंपराओं को संजोए हुए है। इसके माध्यम से समाज में नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा मिलता है। यह नृत्य शैली पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही है और आज भी इसकी लोकप्रियता बरकरार है।
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