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    पोलियो-फ्री दुनिया के हीरो डॉ. साल्क, जानें क्यों अपनी सबसे बड़ी खोज का नहीं कराया पेटेंट?

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 06:44 PM (IST)

    यह लेख डॉ. जोनास साल्क के जीवन और पोलियो वैक्सीन के विकास में उनके योगदान पर प्रकाश डालता है। 1950 के दशक में, उन्होंने 'किल्ड वायरस वैक्सीन' बनाकर चिकित्सा जगत में क्रांति ला दी। उन्होंने इस वैक्सीन का पेटेंट नहीं कराया और इसे मानवता को समर्पित कर दिया। पोलियो के खिलाफ उनकी लड़ाई और विज्ञान में उनके योगदान को इस लेख में दर्शाया गया है।

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    डॉ. साल्क: पोलियो वैक्सीन के जनक, जिन्होंने नहीं कराया पेटेंट (Picture Credit- Instagram)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। पोलियो एक खतरनाक बीमारी है, जो आमतौर पर बच्चों को अपना शिकार बनाती है। वर्तमान में कई देश पोलियो-फ्री हो चुके हैं और इसकी वजह इसके लिए दी जाने वाली वैक्सीन है। पोलियो की वैक्सीन बनाने का क्रेडिट डॉ. जोनास साल्क को जाता है। 

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    डॉ.साल्क का जन्म 28 अक्टूबर, 1914 में न्यूयॉर्क में हुआ था। उन्हें पहली पोलियो वैक्सीन विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। उनकी बनाई इस वैक्सीन को साल 1955 में इस्तेमाल के लिए अनुमति दी मिली थी। उनकी यह वैक्सीन मेडिकल साइंस में अहम खोज मानी जाती है।

    भयावह बीमारी बन गई थी पोलियो

    19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरुआती वर्षों में, पोलियो दुनिया की सबसे भयावह बीमारी बन गई। इसकी वजह से भारी संख्या में मौतें होने लगी और इस बीमारी से बचने वाले कई लोगों को जीवन भर इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते थे। 20वीं सदी के मध्य तक, पोलियो वायरस पूरी दुनिया में फैल गया और हर साल पांच लाख से ज्यादा लोगों की जान लेने लगा या उन्हें लकवाग्रस्त कर देता था। इसका कोई इलाज न होने और महामारियों के बढ़ने के कारण, इसकी वैक्सीन की तुरंत जरूरत।

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    Picture Credit- Instagram

    साल्क ने तोड़ी धारणा

    इसी क्रम में 1950 के दशक के आरंभ में, अमेरिकी फिजिशियन जोनास साल्क ने पोलियो के लिए पहली सफल वैक्सीन बनाई। उस दौर में जब ऐसा माना जाता था कि वैक्सीन सिर्फ जिंदा वायरस से ही बनाई जाती है, साल्क ने इस धारणा को तोड़ते हुए 'किल्ड वायरस वैक्सीन' तैयार की। उन्होंने पहली बार यह बताया कि भले ही वायरस को मार दिया जाए, लेकिन इसके बाद भी शरीर को उससे लड़ना सिखाया जा सकता है। 

    साल्क ने अपनी इस वैक्सीन को 1953 में अपने और अपने परिवार पर और फिर एक साल बाद कनाडा, फिनलैंड और अमेरिका में 16 लाख बच्चों पर टेस्ट किया। इसके नतीजे 12 अप्रैल, 1955 को घोषित किए गए और साल्क की इस वैक्सीन को उसी दिन लाइसेंस दे दिया गया। 

    लोगों को समर्पित की वैक्सीन

    खास बात यह है कि अपनी इस खास उपलब्धि को साल्क ने लोगों और मानवता को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी इस क्रांतिकारी खोज का पेटेंट नहीं कराया। जी हां, उन्होंने इस वैक्सीन का पेटेंट नहीं कराया था और इसलिए उन्हें इससे कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ।

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    Picture Credit- Instagram

    साल 1955 में जब एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि इस वैक्सीन का पेटेंट किसके पास है, तो उन्होंने जवाब दिया: "इस सवाल के जवाब में मैं कहूंगा- लोगों के पास। इसका कोई पेटेंट नहीं है। क्या आप सूर्य का पेटेंट करा सकते हैं?" मेडिकल साइंस की दुनिया में अपना अहम योगदान देने के बाद 23 जून 1995 को ला जोला, कैलिफोर्निया में साल्क का निधन को गया। 



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