बिना सिगरेट पिए भी हो सकता है लंग कैंसर, डॉक्टर से जानें क्यों खतरनाक है सेकंड हैंड स्मोकिंग
फेफड़े शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं जिनकी देखभाल करना जरूरी है। वर्ल्ड लंग कैंसर डे लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 25 सितंबर को मनाया जाता है। स्मोकिंग के अलावा सेकंडहैंड स्मोकिंग भी फेफड़ों के लिए हानिकारक है। आइए जानते हैं कैसे यह फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है और किन्हें इससे खतरा ज्यादा होता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। लंग्स हमारे अहम अंगों में से एक है, जो शरीर के अंदर कई जरूरी काम करता है। यह शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने में मदद करता है, जो जीवन जीने के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए हेल्दी रहने के लिए फेफड़ों की देखभाल बेहद जरूरी है।
इसलिए लंग हेल्थ के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग कैंसर डे मनाया जाता है। हमारे आसपास ऐसी कई चीजें हैं, जो फेफड़ों को बीमार बना देती हैं। आमतौर पर स्मोकिंग को लंग्स के लिए हानिकारक माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय से सेकंडहैंड स्मोकिंग भी चिंता का एक गंभीर विषय बना हुआ है।
इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉ. इंदर मोहन चुघ से बातचीत की। आइए जानते हैं कैसे फेफड़ों को बीमार बना रही सेकंडहैंड स्मोकिंग-
क्या है सेकंड हैंड स्मोकिंग?
डॉक्टर बताते हैं कि हमारे फेफड़ों की सेहत के रिक्स फैक्टर के तौर पर सेकंड हैंड स्मोकिंग को अक्सर कम आंका जाता है। सेकंड हैंड स्मोकिंग वह धुआं है, जो जलती हुई सिगरेट से निकलता है या स्मोक करने वाले लोगों द्वारा छोड़ा जाता है।
ऐसे में स्मोक न करने वालों के लिए, धूम्रपान करने वालों के आस-पास रहना सीधे धूम्रपान करने जितना ही हानिकारक हो सकता है, क्योंकि हमारे आसपास मौजूद इस धुएं में हजारों केमिकल होते हैं, जो टॉक्सिक और कैंसरस माने जाते हैं।
कैसे नुकसान पहुंचाता है सेकंडहैंड स्मोक?
सेकंड हैंड स्मोकिंग में सांस लेने से एयरवेज भी डैमेज होते हैं और फेफड़ों की फंक्शनिंग कम हो जाती है, जिससे अस्थमा, सीओपीडी और अन्य रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इस धुएं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से उन लोगों को भी लंग्स कैंसर भी हो सकता है, जिन्होंने कभी एक भी सिगरेट नहीं पी हो।
इन लोगों को है ज्यादा खतरा
बच्चे इस धुएं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनके फेफड़े विकसित हो रहे होते हैं और टॉक्सिन्स के प्रति ज्यादा सेंसिटिव होते हैं। इसलिए कम समय के लिए ही इस तरह के स्मोक के संपर्क में आते ही उन्हें खांसी, घरघराहट और लंबे समय तक सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। साथ ही सेकंड हैंड स्मोक के वातावरण में पले-बढ़े बच्चों के लिए, यह खतरा बड़े होने तक बना रहता है, जिससे उनके अंदर आगे चलकर फेफड़ों की पुरानी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
प्रेग्नेंसी में भी खतरा
सेकंड हैंड स्मोकिंग प्रेग्नेट महिलाओं और भ्रूण को भी प्रभावित करती है, जिससे जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म, फेफड़ों की समस्याएं और सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोन (SIDS) हो सकता है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को सेकंड हैंड के साथ-साथ थर्ड हैंड स्मोकिंग से भी बचना चाहिए।
ध्यान रखें यह बात
यह समझना भी जरूरी है कि सेकंड हैंड स्मोकिंग का कोई "सुरक्षित" स्तर नहीं होता। धुएं से भरे कमरे में कुछ मिनट भी रहने से फेफड़ों में जलन हो सकती है या अस्थमा का दौरा पड़ सकता है। सीओपीडी जैसी फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित लोगों पर इसका असर तुरंत और गंभीर हो सकते हैं।
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