World COPD Day 2025: जहरीली हवा से बढ़ रहा फेफड़ों की इस गंभीर बीमारी का खतरा, ऐसे करें अपना बचाव
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, जिसे सीओपीडी (COPD) कहते हैं, फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है जिसमें सांस लेना मुश्किल हो जाता है। लंबे समय तक वायु मार्ग में रुकावट रहती है, जिससे व्यक्ति की सांस लेने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। आइए, डॉक्टर की मदद से जानते हैं कि क्या वायु प्रदूषण भी आपको इस बीमारी की ओर धकेल सकता है (COPD And Air Pollution Link)।

World COPD Day 2025: क्या सीओपीडी की तरफ धकेल सकता है शहर का बढ़ता वायु प्रदूषण? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के बारे में हम अक्सर धूम्रपान को ही सबसे बड़ा कारण मान लेते हैं, लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा जटिल है। COPD (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में एक बढ़ता हुआ स्वास्थ्य संकट बन चुका है और इसकी सबसे बड़ी वजह सिर्फ सिगरेट का धुआं नहीं, बल्कि हमारे आसपास की जहरीली हवा भी है।
World COPD Day 2025 के मौके पर यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर हवा की गुणवत्ता हमारे फेफड़ों को किस तरह नुकसान पहुंचा रही है। आइए, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के रेस्पिरेटरी और क्रिटिकल केयर विभाग में वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. निखिल मोदी से जानते हैं इसके बारे में।

वायु प्रदूषण से होता है यह अनदेखा नुकसान
डॉक्टर के अनुसार, लंबे समय तक खराब हवा में सांस लेना हमारे फेफड़ों में लगातार सूजन पैदा कर देता है। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण, वाहनों का धुआं, फैक्ट्री से निकलने वाले केमिकल और घरों में जलने वाला बायोमास (जैसे लकड़ी, कोयला, गोबर)- ये सभी धीरे-धीरे फेफड़ों को कमजोर कर देते हैं।
समस्या यह है कि यह नुकसान तुरंत दिखाई नहीं देता, लेकिन समय के साथ फेफड़ों की क्षमता घटती जाती है, सांस फूलना बढ़ जाता है और व्यक्ति आसानी से थकान महसूस करने लगता है।
सर्दियों में हवा की गुणवत्ता और बिगड़ने से अचानक COPD की तीव्रता बढ़ जाती है। ऐसे समय में, मरीजों को सांस लेने में इतनी परेशानी होती है कि अक्सर उन्हें इमरजेंसी में भर्ती करना पड़ता है।
COPD सिर्फ स्मोकर्स की बीमारी नहीं
आम धारणा है कि COPD सिर्फ धूम्रपान करने वालों को प्रभावित करता है, जबकि वास्तविकता अलग है। भारत में लगभग एक-तिहाई COPD मामलों के पीछे खराब हवा और इंडोर स्मोक का हाथ है। यानी घर में चूल्हे का धुआं, खराब वेंटिलेशन या आस-पास का प्रदूषण- ये सब उतना ही नुकसान कर सकते हैं जितना सिगरेट का धुआं। इसका मतलब है कि COPD से बचाव केवल धूम्रपान छोड़ने तक सीमित नहीं है, साफ और सुरक्षित हवा भी उतनी ही जरूरी है।
किन्हें है सबसे ज्यादा खतरा?
कुछ ग्रुप ऐसे हैं जिन पर प्रदूषण का असर और भी तेज पड़ता है-
- बुजुर्ग
- अस्थमा या पुरानी खांसी वाले लोग
- बाहर ज्यादा समय तक काम करने वाले कर्मचारी
- बच्चे और कमजोर इम्युनिटी वाले लोग
इन लोगों के लिए खराब हवा में सांस लेना फेफड़ों पर एक्स्ट्रा दबाव डालता है, जिससे बीमारी तेजी से बढ़ सकती है।
साफ हवा क्यों है जरूरी?
World COPD Day का संदेश बेहद साफ है- जिस हवा में हम सांस लेते हैं, वही हमारी सेहत की सबसे बड़ी कुंजी है। अगर हवा साफ नहीं होगी, तो फेफड़ों की बीमारी को रोकना मुश्किल होता जाएगा। इसलिए यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि एक बड़ी पब्लिक हेल्थ चैलेंज भी है।
क्या कर सकते हैं हम?
COPD के बढ़ते खतरे को कम करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं-
- घरों में क्लीन कुकिंग फ्यूल (जैसे LPG, बिजली आधारित उपकरण) का इस्तेमाल
- प्रदूषण वाले दिनों में मास्क पहनना
- ज्यादा समय बाहर बिताने वालों के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप
- आसपास हरियाली बढ़ाना और धुएं के स्रोतों को कम करना
- सरकार और समुदाय स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के सख्त कदम
- जब हम हवा को साफ करेंगे, तभी फेफड़ों को बचा सकेंगे।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि फेफड़ों की सेहत सिर्फ हमारे व्यक्तिगत व्यवहार पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हमारे आस-पास की हवा पर भी करती है। प्रदूषण को कम करना सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करना नहीं है, बल्कि यह करोड़ों लोगों के फेफड़ों को एक बेहतर भविष्य देने जैसा है।

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