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    घर की जहरीली हवा खराब कर रही आपके फेफड़े, डॉक्टर ने बताया कैसे बन सकती है COPD की वजह

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 02:48 PM (IST)

    सीओपीडी एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी है, जिसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल वर्ल्ड सीओपीडी डे मनाया जाता है। डॉ. इंदर मोहन चुघ के अनुसार, घर के अंदर का वायु प्रदूषण, जैसे खाना पकाने का धुआं और खराब वेंटिलेशन, सीओपीडी का खतरा बढ़ाते हैं। बचाव के लिए बेहतर वेंटिलेशन, हेल्दी फ्यूल का इस्तेमाल और नियमित सफाई जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

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    घर की हवा: फेफड़ों के लिए खतरा, सीओपीडी से बचाव (Picture Credit- AI Generated)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सीओपीडी लंग्स से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसे लेकर आज भी कई लोगों में जागरूकता की कमी है। इसलिए लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के मकसद से हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को वर्ल्ड सीओपीडी डे मनाया जाता है। 

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    आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि गाड़ियों, फैक्ट्री और पराली जैसे कारकों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण सीओपीडी का खतरा बढ़ता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आपके घर की हवा भी आपको काफी हद तक बीमार बना सकती है। इस बारे में जब हमने मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉ. इंदर मोहन चुघ से बात की, तो उन्होंने बताया कि लाखों लोगों के लिए, खासकर भारत में, सबसे खतरनाक हवा वह है, जिसमें वे अपने घरों के अंदर सांस लेते हैं। 

    सीओपीडी का प्रमुख कारण है घर की हवा

    उन्होंने आगे बताया कि घर के अंदर का वायु प्रदूषण जैसे खाना पकाने का धुआं, अगरबत्तियों का इस्तेमाल, मच्छर भगाने वाली कॉइल, रूम फ्रेशनर और खराब वेंटिलेशन से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का खतरा बढ़ता है। हालांकि, आज भी इस बीमारी के इन कारणों को अक्सर नजरअंदाज ही किया जाता है। ऐसा करना खासतौर पर महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए चिंताजनक है, जो ज्यादातर समय घर के अंदर और रसोई के पास बिताते हैं।

    कैसे खतरनाक है घर की हवा?

    कई घरों में, खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों में, लकड़ी, कोयला, पराली या गोबर से बने पारंपरिक चूल्हों का इस्तेमाल लगभग रोजाना खाना पकाने के लिए किया जाता है। ये फ्यूल बेहद छोटे कण और जहरीली गैसें छोड़ते हैं, जो सीधे तौर पर एयरवेज में जलन और डैमेज का कारण बनते हैं। 

    लंबे समय तक बार-बार इसके संपर्क में आने से पुरानी खांसी, कफ, सांस लेने में तकलीफ और अंततः सीओपीडी हो सकता है। यह समस्या उन लोगों में भी हो सकती है, जिन्होंने कभी धूम्रपान तक नहीं किया है। खराब वेंटिलेशन वाली रसोई में खाना पकाने वाली महिलाएं और आस-पास खेलने वाले छोटे बच्चे अक्सर घर के अंदर मौजूद हानिकारक धुएं के अनजाने में ही शिकार बन जाते हैं।

    कैसे बढ़ रहा इनडोर पॉल्युशन

    डॉक्टर ने बताया कि यह सिर्फ चूल्हे का धुआं नहीं है। अगरबत्ती, धूप, मच्छर भगाने वाली कॉइल, सेंटेड मोमबत्तियां और केमिकल बेस्ड रूम फ्रेशनर भी घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं। पुराने गद्दों, कालीनों और गीली दीवारों से निकलने वाले कण, साथ ही फफूंद और पालतू जानवरों के बाल भी सेंसिटिव फेफड़ों को और ज्यादा खराब कर सकते हैं। अस्थमा या शुरुआती सीओपीडी से जूझ रहे व्यक्ति के लिए, ऐसी चीजों के इस्तेमाल से दौरे और भी ज्यादा पड़ सकते हैं, सांस लेने में तकलीफ बढ़ सकती है और अस्पताल के चक्कर भी बढ़ सकते हैं। 

    कैसे करें बचाव?

    इससे बचाव को लेकर डॉक्टर ने बताया कि छोटे-छोटे बदलाव भी काफी मदद कर सकते हैं। रसोई में बेहतर वेंटिलेशन, एग्जॉस्ट फैन या चिमनी का इस्तेमाल, हेल्दी फ्यूल (लिक्विड प्रोपेन गैस या इंडक्शन) का इस्तेमाल और कॉइल और तेज एरोसोल का इस्तेमाल न करना, घर के अंदर के प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।

    इन बातों का भी रखें ध्यान 

    धूल कम करने के लिए नियमित सफाई, जहां तक हो सके खिड़कियां खुली रखना और धुएं वाले हिस्से में खाना बनाते समय मास्क पहनना, ये सभी सरल लेकिन प्रभावी कदम हैं। सीओपीडी को अक्सर "स्मोकिंग करने वालों की बीमारी" कहा जाता है, लेकिन कई भारतीय महिलाओं और स्मोक न करने वालों के लिए यह समस्या घर से ही शुरू होती है- घर की खराब हवा से। घर के अंदर के वायु प्रदूषण को एक गंभीर रिस्क फैक्टर के रूप में पहचानना, उन लोगों के फेफड़ों की सुरक्षा की दिशा में पहला कदम है, जो हर दिन चुपचाप इसके संपर्क में आते हैं।

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