क्यों बढ़ रहा है Sperm Donation का ट्रेंड... अमीरों की नई सोच है या समाज की बदलती तस्वीर?
11 जुलाई को हर साल World Population Day मनाया जाता है जिसका मकसद वैश्विक जनसंख्या से जुड़े मुद्दों और समाज पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इसी कड़ी में स्पर्म डोनेशन के जरिये बच्चे पैदा करने का चलन भी चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल के समय में यह ट्रेंड खासकर अरबपतियों के बीच काफी फेमस हुआ है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज 11 जुलाई को दुनियाभर में World Population Day मनाया जा रहा है। इस दिन का मकसद दुनिया की बढ़ती आबादी से जुड़े मुद्दों और समाज पर उनके असर के बारे में जागरूकता फैलाना है। इसी मौके पर स्पर्म डोनेशन के जरिए बच्चे पैदा करने के विषय पर भी चर्चा जरूरी हो जाती है।
हाल के समय में यह तरीका काफी फेमस हुआ है, खासकर अरबपतियों के बीच। इसका सबसे बड़ा उदाहरण टेलीग्राम के फाउंडर पावेल दुरोव हैं। दुरोव ने खुद यह बताया है कि वे स्पर्म डोनेशन के जरिए 100 से ज्यादा बच्चों के पिता बने हैं और अपनी सारी संपत्ति उन्हीं बच्चों को देना चाहते हैं।
जब अरबपति बनते हैं डोनर
टेलीग्राम ऐप के मालिक पावेल ड्यूरोव ने हाल ही में बताया है कि वह स्पर्म डोनेशन के जरिए 100 से ज्यादा बच्चों के पिता बन चुके हैं। उनका मानना है कि ऐसा करना उनका 'नागरिक कर्तव्य' है। उन्होंने यह काम अपने एक दोस्त की फर्टिलिटी की समस्या को देखते हुए शुरू किया था और तब से इसे एक सामाजिक योगदान मानते हुए जारी रख रहे हैं।
ड्यूरोव का कहना है कि अच्छे डोनर्स की कमी के कारण उन्होंने अपने जीन को दुनिया में फैलाने का फैसला किया। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि वह अपने DNA को "ओपन-सोर्स" करना चाहते हैं, ताकि उनके बच्चे एक-दूसरे से मिल सकें।
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कौन-कौन ले सकता है स्पर्म डोनेशन का सहारा?
- बांझ दम्पत्ति, खासकर जब पुरुष साथी में स्पर्म की संख्या बहुत कम हो या बिल्कुल न हो, और IUI या IVF जैसी कोशिशें भी नाकाम रही हों।
- अकेली महिलाएं जो असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) से बच्चा चाहती हैं।
क्या है इस ट्रेंड की वजह?
- कुछ लोग इसे अपनी विरासत छोड़ने का तरीका मानते हैं।
- कुछ को दूसरों की मदद करके आत्मसंतुष्टि मिलती है।
- कई बार इसके पीछे फाइनेंशियल सपोर्ट भी होता है, हालांकि भारत में यह कानूनी नहीं है।
क्या हैं नैतिक और कानूनी पहलू?
भारत में Assisted Reproductive Technology (Regulation) Act, 2021 के तहत स्पर्म डोनर की पहचान गोपनीय रखी जाती है। यानी, रिसीवर कपल खुद डोनर को नहीं चुन सकते।
आमतौर पर लोगों को इस बात का डर होता है कि बच्चा माता-पिता से बिल्कुल अलग दिखेगा। जबकि असलियत यह है कि बच्चे को मां से भी 50% गुणसूत्र मिलते हैं, इसलिए चेहरा-मोहरा मिलना संभव होता है। कुछ देशों में 18 साल की उम्र के बाद बच्चे डोनर की पहचान जान सकते हैं, लेकिन भारत में यह पूरी तरह से गोपनीय रखा जाता है।
भारत में, स्पर्म डोनेशन लाइसेंस प्राप्त गैमेट बैंक या स्पर्म बैंक के जरिए किया जाता है, जो सरकार द्वारा सख्ती से विनियमित होते हैं। स्पर्म डोनेट कौन कर सकता है, इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हैं। आमतौर पर, 21 से 45 वर्ष की आयु के हेल्दी पुरुष डोनेट करने के पात्र होते हैं, बशर्ते वे विशिष्ट चिकित्सा और आनुवंशिक मानदंडों को पूरा करते हों।
हालांकि, बच्चे को जन्म देने वाले माता-पिता को दान करने वाले की पहचान नहीं बताई जाती, लेकिन वे कुछ जानकारी जैसे जाति, हाइट, रंग या पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछ सकते हैं। साथ ही, सभी डोनेटर्स की पूरी मेडिकल जांच होती है, जिसमें आनुवंशिक और संक्रामक बीमारियों की जांच भी शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्पर्म सुरक्षित और हेल्दी हैं।
डॉक्टरों के पास स्पर्म डोनेशन से गर्भधारण के मामले अक्सर आते हैं। हमारे IVF केंद्र में, हर महीने लगभग 4 से 5 डोनर IUI के मामले आते हैं। यह दिखाता है कि बच्चे की चाह रखने वाले जोड़ों और व्यक्तियों के लिए यह तरीका कितना फायदेमंद और स्वीकार्य होता जा रहा है।
स्पर्म डोनेशन उन लोगों के लिए एक सुरक्षित, सही और असरदार तरीका है जिन्हें बच्चा पैदा करने में दिक्कत आ रही है। इसे भी बाकी प्रजनन उपचारों की तरह ही गंभीरता और संवेदनशीलता से देखना चाहिए।
क्या सेहत की कोई गारंटी होती है?
बता दें, कोई भी पूरी तरह से सेहत की गारंटी नहीं दे सकता है, भले ही हम कितने भी सावधान क्यों न हों। हमेशा ऐसे डोनर चुने जाते हैं जो हेल्दी हों और जिनमें कोई वंशानुगत बीमारी न हो, फिर भी इसकी पूरी गारंटी नहीं दी जा सकती कि भविष्य में कोई समस्या नहीं होगी।
(डॉ. अश्विन माल्या कंसल्टेंट यूरोलॉजी, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
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