बच्चों में क्यों तेजी से बढ़ रहा है Myopia, डॉक्टर से जानें कैसे रख सकते हैं आंखों का ख्याल
इस साल 19-25 मई तक मायोपिया अवेयरनेस वीक (Myopia Awareness Week 2025) मनाया जा रहा है। इस पूरे हफ्ते मायोपिया के बारे में लोगों को जागरूक बनाने की कोशिश की जाती है। मायोपिया के मामले बच्चों में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसा क्यों है और इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है इस बारे में जानने के लिए हमने डॉक्टर से बात की।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Myopia Awareness Week 2025: बच्चों का अब ज्यादातर समय या तो किताबों के सामने बीतता है या स्मार्टफोन की स्क्रीन के सामने। कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी तेजी से बढ़ा है, जिसका सबसे ज्यादा असर उनकी आंखों पर पड़ रहा है। इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थाल्मोलॉजी में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, पिछले 15 सालों में बच्चों में मायोपिया के मामले (Myopia in Children) लगभग 25-30% तक बढ़ चुके हैं।
इसलिए जरूरी है कि बच्चों में मायोपिया के बढ़ते खतरे को टालने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाएं। आइए डॉ. मीनाक्षी धार (हेड ऑफ ऑप्थैल्मोलॉडी, अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद) से जानते हैं कि बच्चों में मायोपिया का रिस्क कम करने के लिए क्या करना चाहिए (Myopia Prevention Tips)।
मायोपिया होता क्या है?
मायोपिया एक तरह का रिफ्रेक्टिव एरर है, जिसमें व्यक्ति को पास की चीज तो साफ नजर आती है, लेकिन दूर की चीज धुंधली दिखती है। इसमें रोशनी रेटिना पर फोकस न करके उसके सामने फोकस करती है। इसके कारण दूर की चीजों को देखने में परेशानी होती है। इसके पीछे जेनेटिक्स, ज्यादा स्क्रीन टाइम, बाहर खेलने-कूदने में कमी और इंडोर लाइफस्टाइल का बहुत बड़ा रोल है।
मायोपिया को ठीक करने के लिए चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अगर इसका वक्त पर इलाज न किया जाए, तो यह परेशानी बढ़ती जाती है। कंडिशन ज्यादा बढ़ने की वजह से मैक्युलर डिजेनरेशन, रेटिनल डिटैचमेंट, ग्लूकोमा जैसी कभी न ठीक होने परेशानियां भी हो सकती हैं।
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मायोपिया के लक्षण कैसे होते हैं?
- दूर की चीज, जैसे पीछे बैठने पर ब्लैकबोर्ड साफ न दिखना
- बार-बार आंखों को भींचना
- टीवी या किताब बहुत नजदीक से देखना
- आंखों को बार-बार रगड़ना
- सिर में दर्द
अगर बच्चे में ऐसे लक्षण नजर आ रहे हैं, तो आंखों के डॉक्टर से मिलकर, बच्चे की आंखों की जांच करवाएं।
मायोपिया से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
- बाहर खेलने भेजें- बच्चों को हर रोज कम से कम 1.5-2 घंटे दिन के समय घर से बाहर खेलने भेजें। इससे उनका स्क्रीन टाइम कम होगा और बॉडी हेल्दी रहेगी। बाहर खेलने से मायोपिया का रिस्क कम करने में मदद मिलती है।
- स्क्रीन टाइम कम करें- बच्चों को रोजाना सिर्फ 45 मिनट तक ही फोन, कंप्यूटर या टीवी देखने की इजाजत दें। ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण बहुत कम उम्र में ही मायोपिया हो सकता है। बच्चों को 20-20-20 रूल भी सिखाएं, ताकि वे डिजिटल स्ट्रेन से अपनी आंखों की रक्षा कर सकें। इस रूल के मुताबिक, हर 20 मिनट के बाद, 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर रखी चीज को देखें।
- आंखों का चेकअप- बच्चों का नियमित रूप से आंखों का चेकअप करवाएं। चाहे वे आंखों में किसी परेशानी की शिकायत न भी करें, तब भी समय-समय पर आई चेकअप करवाना जरूरी है। मायोपिया का जल्द से जल्द पता लगाने का यह सबसे आसान तरीका है।
- रीडिंग हाइजीन- इसका मतलब है कि पढ़ते समय या फोन का इस्तेमाल करते समय भी रोशनी का ध्यान रखा जाए। अंधेरे में पढ़ने या फोन चलाने से आंखों पर ज्यादा जोर पड़ता है। इसके अलावा, लेटकर या चलते हुए पढ़ने से बच्चों को मना करें। चलती हुई बस या गाड़ी में भी पढ़ने से आंखों पर जोर पड़ता है। इसलिए बच्चों को सिखाएं कि वे एक जगह बैठकर सही दूरी पर अपनी किताब रखें और सही रोशनी में ही पढ़ाई करें।
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