2 घंटे की फिल्म से कहीं ज्यादा खतरनाक है 30 सेकंड की रील्स, खोखला कर रही बच्चों का दिमाग
आजकल हम अक्सर देखते हैं कि बच्चे घंटों तक फोन पर शॉर्ट वीडियो देखते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक 15 सेकंड का वीडियो आपके बच्चे के लिए 2 घंट ...और पढ़ें

शॉर्ट वीडियो की लत बच्चों के लिए है 'धीमा जहर' (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर मां-बाप सोचते हैं कि बच्चा अगर थोड़ी देर के लिए मोबाइल पर शॉर्ट वीडियोज देख रहा है, तो इसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि 15 सेकंड का एक छोटा वीडियो बच्चों के दिमाग को 2 घंटे की फिल्म से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। आइए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. सुमित ग्रोवर से जानते हैं कि क्यों यह बच्चों के विकास के लिए एक बड़ा चैलेंज बन गया है।

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बच्चों का दिमाग हो रहा है हाईजैक
छोटे वीडियो या शॉर्ट्स को खास तौर पर इस तरह बनाया जाता है कि वे तुरंत आपका ध्यान खींच लें। इनमें तेज बदलते दृश्य, तेज आवाजें और हर पल कुछ नया होता है। बच्चों का दिमाग अभी विकास के चरण में होता है, जहां वे फोकस और सेल्फ-कंट्रोल सीख रहे होते हैं।
ऐसे में, इस तरह की तेज उत्तेजना उनके दिमाग पर हावी हो सकती है। हर छोटी क्लिप उन्हें बिना किसी मेहनत के तुरंत मजा और उत्साह देती है। यह उनके दिमाग को "बिना मेहनत के तुरंत इनाम" पाने की आदत डाल देता है।
स्क्रॉलिंग है असली दुश्मन
- जहां एक तरफ 15 सेकंड का वीडियो केवल ध्यान भटकाता है, वहीं 2 घंटे की फिल्म एक पूरी कहानी कहती है।
- फिल्में बच्चों को धैर्य रखना और लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना सिखाती हैं।
- बच्चे किरदारों को समझते हैं, उनकी एक्टिविटीज को देखते हैं और फीलिंग्स को महसूस करते हैं।
- फिल्म देखने के दौरान बच्चे एक कहानी के साथ जुड़े रहते हैं, जो उनके भावनात्मक विकास में मदद करता है।
इसके विपरीत, छोटे वीडियो में अक्सर कोई कॉन्टैक्स्ट या गहरा मतलब नहीं होता। वे बस एक के बाद एक लगातार स्क्रॉल होते रहते हैं, जिनका कोई एंड नहीं होता।

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पढ़ाई और बातचीत लगने लगती है 'बोरिंग'
शॉर्ट वीडियो की यह लत असली दुनिया के कामों को प्रभावित करने लगती है। जब बच्चों को क्विक एंटरटेनमेंट की आदत हो जाती है, तो उन्हें किताबें पढ़ना, होमवर्क करना या यहां तक कि सामान्य बातचीत करना भी बहुत उबाऊ और निराशाजनक लगने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन गतिविधियों में शॉर्ट वीडियो की तरह तेज रफ्तार और तुरंत मजा नहीं मिलता।
फोकस और क्रिएटिविटी पर खतरा
लंबे समय तक बहुत छोटे वीडियो देखने से बच्चों का अटेंशन स्पैन कम हो सकता है और वे ज्यादा गुस्सैल हो सकते हैं।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि बच्चे बोरियत को सहन करना भूल जाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि बोरियत ही वह समय है जब इंसान का दिमाग लर्निंग और क्रिएटिविटी की ओर बढ़ता है। असली खतरा एक वीडियो की लंबाई नहीं, बल्कि इन लाउड और फास्ट क्लिप्स का लगातार और बार-बार दोहराया जाना है। यह आदत बच्चों के फोकस, सीखने की क्षमता और इमोशनल ग्रोथ में बाधा डाल सकती है।
- डॉ. सुमित ग्रोवर (क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट - न्यूयॉर्क और लंदन) से बातचीत पर आधारित
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