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    बच्चों को मिलने वाले होमवर्क का बदल गया तरीका, क्रिएटिव कामों पर बढ़ा स्कूलों का फोकस

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 09:41 PM (IST)

    अब स्कूलों में बच्चों को भारी होमवर्क से राहत मिलने की उम्मीद है। स्कूलों का ध्यान अब ऐसे होमवर्क पर है जो बच्चों को खुशी दे और रचनात्मकता बढ़ाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूलों को गतिविधि आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है। स्कूलों का मानना है कि भारी होमवर्क से बच्चों की रचनात्मकता कम हो रही थी।

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    भारी भरकम होमवर्क से बच्चों की रचनात्मकता खत्म होने लगी थी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। स्कूलों में होमवर्क के नाम पर बच्चों को दिए जानेवाले भारी भरकम कामों के दिन लदने लगे हैं। स्कूलों का जोर इस तरह के होमवर्क पर है, जिसे करने में बच्चों का ज्यादा समय न लगे और उनको खुशी भी मिले। साथ ही साथ कुछ नया सीखकर उस पर अमल करने के लिए बच्चों को रचनात्मक कामों में भी लगाने पर स्कूलों ने फोकस बढ़ा दिया है।

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    विशेषज्ञों के मुताबिक भारी भरकम होमवर्क से बच्चों की रचनात्मकता खत्म होने लगी थी। छात्रों को मिलनेवाले भारी भरकम होमवर्क को लेकर पूरे देश में ¨चता जताई जाती थी। 2018 में वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) में पाया गया था कि 74 प्रतिशत शहरी भारतीय छात्रों को दैनिक होमवर्क मिलता है, जबकि सीखने में कोई खास फायदा नहीं होता। साथ ही छात्रों का तीन से चार घंटे का कीमती समय होमवर्क करने में चला जाता है।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति से प्रेरित है अवधारणा

    विशेषज्ञों का कहना है कि होमवर्क की अवधारणा में यह बदलाव आंशिक रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 से प्रेरित है। इस नीति में छात्रों पर शैक्षणिक बोझ कम करने और गतिविधि आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने की वकालत की गई है। कई राज्य बोर्डों और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने शिक्षकों से ऐसे होमवर्क देने को कहा है, जिन्हें करने में बच्चों को खुशी महसूस हो और उनमें प्रयोग की गुंजाइश हो।

    अब बच्चों की रचनात्मक सोच, विश्लेषण और सूचनाओं की विवेचना को बढ़ावा देने पर जोर है। स्कूलों की कोशिश है कि बच्चों को होमवर्क में ही डुबोए न रखा जाए और घर पर करने के लिए कम से कम काम दिया जाए। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन का कहना है कि आज ज्यादातर स्कूल प्रोजेक्ट आधारित काम देने लगे हैं, बच्चों को प्रस्तुतिकरण तैयार करने और यहां तक कि सामुदायिक जुड़ाव वाली गतिविधियों में शामिल करने लगे हैं।

    अभिभावकों को सता रही चिंता

    पिछले दिनों, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षकों को एक खास तरह का होमवर्क दिया था, जिसमें शिक्षकों को छात्रों के साथ स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियान से जोड़ा गया था ताकि मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल को प्रेरणा मिल सके। अभिभावकों की बात इस मामले में बच्चों के स्वजनों की राय बंटी हुई है। दिल्ली की दिवांशी श्रेय का कहना है कि स्कूलों की ये पहल अच्छी है कि बच्चों को घंटों बैठकर किताब से नोट्स नहीं उतारने होंगे। हालांकि, ध्यान देने वाली बात ये है कि बच्चों को ऐसा होमवर्क न मिल जाए कि उसे अभिभावकों को पूरा करना पड़े।

    सॉफ्टवेयर डेवलपर तुषार मेहता का कहना है कि रचनात्मकता के नाम पर बच्चों को स्क्रैपबुक बनाने की बजाय उन्हें मिट्टी में खेलने, आस-पड़ोस में घूमने और लोगों से बातचीत करने जैसे होमवर्क दिया जाना स्वागतयोग्य कदम है। जिस तरह से बच्चे स्क्रीन से चिपके रहते हैं, उसे देखते हुए बच्चों को ऐसे होमवर्क की जरूरत है, जो दशकों पहले हमारी दिनचर्या का स्वाभाविक हिस्सा हुआ करता था।

    अमेरिका में कैसा है होमवर्क सिस्टम

    अमेरिका में नेशनल पीटीए और नेशनल एजुकेशन एसोसिएशन ने छात्रों को होमवर्क देने के लिए '10 मिनट रूल' ईजाद किया है। इसमें सुझाव दिया गया है कि कक्षा के स्तर के मुताबिक रोजाना 10 मिनट का होमवर्क दिया जाएगा। यानी पहली कक्षा के छात्र को केवल 10 मिनट का होमवर्क दिया जाएगा, जबकि 12वीं के छात्रों को अधिकतम 120 मिनट का होमवर्क स्कूल से मिलेगा।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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