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    फिटनेस जर्नी का अहम हिस्सा है Deload Week, जानें कब और क्यों होती है इसकी जरूरत

    Updated: Tue, 18 Mar 2025 08:33 PM (IST)

    फिट रहने के लिए कई सारी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। इसके लिए सिर्फ वर्कआउट करना ही जरूरी नहीं बल्कि वर्कआउट से ब्रेक लेना भी जरूरी है। इसलिए फिटनेस जर्नी के दौरान डिलोड वीक (What Is a Deload Week ) फॉलो करना भी जरूरी है। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कब और क्यों जरूरी है डिलोड वीक (Deload Week Benefits)?

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    क्या है डिलोड वीक और क्यों है ये जरूरी? (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अगर आप फिट होने के बारे में सोच रहे हैं, तो सबसे पहले यही बात दिमाग आती है कि ज्यादा से ज्यादा वर्कआउट किया जाए। लेकिन काफी सारे फिटनेस इंफ्लूएंसर्स ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि हर छह से आठ हफ्ते में जिम से थोड़ी दूरी बनाना फिटनेस पाने के लिए सबसे जरूरी है। दरअसल, इसे डिलोड वीक के रूप में जाना जाता है।

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    डिलोड वीक क्या है?

    इसमें वर्कआउट पूरी तरह नहीं छोड़ा जाता, बल्कि उस डिलोड वीक में वर्कआउट की तीव्रता कम कर दी जाती है। ऐसा खासकर हैवी ट्रेनिंग के दौरान किया जाता है।

    क्यों जरूरी है डिलोड?

    डिलोड वीक का मकसद होता है शरीर को उस थकान और डैमेज से रिकवर होने का समय देना, जो ज्यादा ट्रेनिंग के दौरान होती है। गहन ट्रेनिंग के दौरान हमारे मसल टिशूज को डैमेज होते हैं, लेकिन फिटनेस पाने के लिए ऐसा करना जरूरी भी हो जाता है। ऐसे में शरीर को रिकवर होने के लिए थोड़े समय की जरूरत होती है।

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    क्या हो अगर न करें डिलोड?

    तीव्रता वाली ट्रेनिंग के दौरान मसल्स में हल्की-हल्की दरारें पड़ जाती हैं और उनके फाइबर्स थोड़े अव्यवस्थित हो जाते हैं। इसकी वजह से मसल्स टिशूज में सूजन आ जाती है, जिसे अनलोड अवस्था में आने के लिए समय चाहिए होता है। वैसे बेहतर फिटनेस के लिए मसल्स में होने वाली सूजन जरूरी है, लेकिन बिना पर्याप्त आराम किए हम उन मसल्स को हमेशा के लिए हल्की डैमेज अवस्था में पहुंचा सकते हैं।

    ज्यादा ट्रेनिंग कहीं नुकसान न पहुंचा दे

    जिम के दीवानों के लिए यह मानना थोड़ा मुश्किल होता है कि वे कैसे वर्कआउट से ऑफ ले लें। उन्हें डर सताता रहता है कि ऐसा करने से उनकी बनी-बनाई फिटनेस मिट्टी में मिल जाएगी। लेकिन रिसर्च बताती है कि मसल्स में मौजूद जीन्स उन सारी एक्टविटीज का लेखा-जोखा रखती हैं।

    ऐसे में जब आप ब्रेक के बाद तेज वर्कआउट करते हैं, तो मसल्स ज्यादा बेहतर प्रतिक्रिया देती है और आराम के बाद उनकी ग्रोथ भी अच्छी होती है। इतना ही नहीं इस डिलोड वीक में आपकी मसक्यूलर फिटनेस पहले जैसी स्थिति में आ जाती है और कई बार उससे भी बेहतर हो जाती है।

    पूरा आराम नहीं करना है

    डिलोड वीक का मतलब ये नहीं है कि आप वर्कआउट से पूरी तरह ब्रेक ले रहे हैं, ये रेस्ट से अलग चीज है। रेस्ट में आप आमतौर पर कोई भी एक्सरसाइज नहीं करते या फिर हफ्ते में एक या दो बार हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करते हैं। जबकि डिलोड वीक में थोड़ी ट्रेनिंग होती है, लेकिन पहले के मुकाबले उसकी तीव्रता कम हो जाती है। आप आमतौर पर जिस तरह की वर्कआउट कर रहे होते हैं, डिलोड वीक में 50% तक वर्कआउट रहता है या उसकी तीव्रता को 20% तक कम कर दिया जाता है।

    कैसे जानें डिलोड वीक को शामिल करना है

    फिटनेस इंफ्लूएंसर्स ट्रेनिंग के दौरान हर चार से आठ हफ्ते में डिलोड वीक को शामिल करने की बात करते हैं। अगर आपको ऐसा लग रहा है कि आपकी परफॉर्मेंस कम हो रही है या फिर पहले से भी खराब हो गई हो तो अब डिलोड वीक का वक्त आ गया है। वैसे आपके कोच भी आपको डिलोड वीक के बारे में बता सकते हैं।

    ये लक्षण नजर आएं तो

    अगर इस तरह के लक्षण आपको नजर आने लगे तो शायद डिलोड को शामिल करने का समय आ गया है:

    • कमजोरी महसूस होना
    • जोड़ों और मसल्स में सूजन
    • लगातार हैवी वेट्स ना उठा पाना
    • वर्कआउट करने का मन ना होना
    • थकान

    अगर आप जिम में नए हैं

    हर किसी के फिटनेस का लेवल अलग होता है। सामान्यतौर पर कम तीव्रता और कम अनुभव वाले लोग बिना डिलोड वीक के भी लंबे समय तक वर्कआउट कर लेते हैं। वहीं ज्यादा तीव्रता वालों को इसकी जरूरत लगातार पड़ती है। अगर आपने अभी-अभी जिम जाना शुरू किया है, तो आप इस तरह डिलोड को शामिल कर सकते हैं:

    • हैवी लिफ्टिंग के 8-10 हफ्तों के बाद 1 डिलोड वीक रखें।
    • अगर आप कैलोरी को कम करने के प्लान पर हैं, तो हर 6-8 हफ्ते में आप ऐसा कर सकते हैं।

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