"चैते गुड़, बैसाखे तेल...", किस मौसम में क्या खाने से बचें, जान लिया तो कोसों दूर रहेंगी बीमारियां
हमारे आस-पास ऐसी कई कहावतें हैं जिनमें सेहत के राज छिपे होते हैं। इन्हीं में एक कहावत है चैते गुड़ बैसाखे तेल...। इस कहावत में बताया गया है कि किस महीने में कौन सा फूड नहीं खाना चाहिए (Seasonal Eating Tips)। आइए जानें महीनों के अनुसार किन फूड्स से परहेज करना चाहिए।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हर मौसम में खान-पान का खास ध्यान रखना चाहिए (Foods to Avoid for Health), ताकि शरीर को किसी तरह की परेशानी न हो। प्राचीन कहावतों और लोकोक्तियों में भी इस बात पर जोर दिया गया है। इन्हीं में एक कहावत है-
"चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।
अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।"
इस कहावत के अनुसार कुछ चीजें खास ऋतुओं में नहीं खानी चाहिए, वरना डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं। आइए समझते हैं कि किस मौसम में किन चीजों से परहेज करना चाहिए और क्यों?
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चैत्र (मार्च-अप्रैल)
चैत्र माह में गर्मी शुरू होती है, और गुड़ की तासीर गर्म होती है। इस समय गुड़ खाने से पित्त बढ़ सकता है, जिससे एसिडिटी, सिरदर्द और त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
बैसाख (अप्रैल-मई)
गर्मी के इस मौसम में तेल और घी जैसे भारी फूड्स पचने में मुश्किल होते हैं। इससे पेट खराब हो सकता है और लू लगने का खतरा बढ़ सकता है।
जेठ (मई-जून)
इस समय भीषण गर्मी होती है, जिससे डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है। इसलिए, बिना जरूरत के यात्राएं न करें और हल्का खाना खाएं।
आषाढ़ (जून-जुलाई)
बेलफल की तासीर ठंडी होती है, लेकिन आषाढ़ में बारिश शुरू होने के कारण पाचन तंत्र कमजोर होता है। इसलिए, बेलफल खाने से अपच हो सकता है।
सावन (जुलाई-अगस्त)
सावन में बारिश के कारण पत्तेदार सब्जियों में कीड़े और बैक्टीरिया पनपते हैं, जिससे पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा, साग पचाने में भी भारी होता है।
भादों (अगस्त-सितंबर)
इस मौसम में वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे दही खाने से कफ बढ़ सकता है और सर्दी-खांसी की समस्या हो सकती है।
क्वार/आश्विन (सितंबर-अक्टूबर)
इस समय शरीर को गर्मी की जरूरत होती है, लेकिन करेला ठंडा होता है और इससे जोड़ों में दर्द या पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर)
कार्तिक में ठंड शुरू हो जाती है, और मट्ठा ठंडा होने के कारण सर्दी-जुकाम बढ़ा सकता है।
अगहन (नवंबर-दिसंबर)
जीरा गर्म होता है, लेकिन सर्दियों में इसे ज्यादा मात्रा में खाने से पित्त को बढ़ सकता है, जिससे स्किन डिजीज या एसिडिटी हो सकती है।
पूस (दिसंबर-जनवरी)
धनिया की तासीर ठंडी होती है, जो सर्दियों में नुकसानदायक हो सकती है। इससे सर्दी-खांसी बढ़ सकती है।
माघ (जनवरी-फरवरी)
माघ में कड़ाके की ठंड होती है, और मिश्री ठंडी होने के कारण शरीर के तापमान को प्रभावित कर सकती है।
फाल्गुन (फरवरी-मार्च)
चना गैस बनाने वाला होता है, और इस समय शरीर में वात बढ़ सकता है, जिससे पेट फूलना या अपच हो सकता है।
इन नियमों का पालन करके हम स्वस्थ रह सकते हैं और मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं।
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Disclaimer: लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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