International Yoga Day 2025: आनंद के साथ सेहत का भी आधार है डांस, कई परेशानियों से बचने में करता है मदद
शरीर में मजबूती और लचीलेपन के बीच संतुलन से लेकर स्ट्रेस फ्री रूटीन और अच्छी नींद चाहते है तो योग से बेहतर भला क्या हो सकता है। योग का ही एक आसान रूप है नृत्य जो तन-मन की बेहतरी का भी आधार है। आइए International Yoga Day 2025 के मौके पर करते हैं योग और नृत्य के बीच के कनेक्शन की पड़ताल।
सीमा झा, नई दिल्ली। जिस काम में आपको आनंद ही न महसूस हो, यह काम आप ज्यादा समय तक नहीं कर सकते। योग के साथ भी आपका ऐसा अनुभव हो सकता है। हालांकि, योग (Yoga Day 2025) आपको तब नीरस या बोरिंग लग सकता है जब आप अधूरी जानकारियों या बिना तैयारी के साथ इसे शुरू करते हैं। कुछ लोग सूक्ष्म क्रिया किए बिना ही सीधे आसन शुरू कर देते हैं। इससे दर्द महसूस होने पर ऐसे लोग अचानक योग करना छोड़ भी देते हैं।
वहीं, संगीत की धुन पर नृत्य की बात हो तो कदम खुद-ब-खुद थिरकने लगते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी प्रकार के नृत्य में प्रशिक्षित हैं या नहीं बंद कमरे में नृत्य करें या सार्वजनिक रूप से सभी प्रकार के नृत्य आनंद के साथ संतोष का अनुभव करा सकते हैं। हालांकि, भारतीय शास्त्रीय नृत्य का योग से बहुत निकट संबंध है। दरअसल, फिट रहने के लिए (Dance for health benefits) जिम करने, दौड़ने या ब्रिस्क वॉक या कसरत की ही तरह नृत्य भी उपयोगी शारीरिक गतिविधि है। आइए International Yoga Day 2025 पर जानें कैसे डांस भी योग जितना ही सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है।
इंग्लैंड स्थित इस यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार शारीरिक निष्क्रियता दुनियाभर में मृत्यु दर को बढ़ाने में एक बड़ा कारण बन रही है, इसलिए यदि आपको व्यायाम अधिक मेहनत वाला या उबाऊ काम लगता है तो नृत्य का विकल्प चुन सकते हैं।
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शास्त्रीय नृत्य में छिपा है अष्टांग योग
योग के आठ अंग- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि की नृत्य में उपस्थिति होती है। यदि आप शास्त्रीय नृत्य करते हैं तो इसमें विशेष मुद्राओं का प्रयोग होता है। यह शारीरिक लाभ के साथ स्वयं से एकाकार होने का आध्यात्मिक अनुभव भी देता है। योग में आप विभिन्न आसन करते हैं तो नृत्य भी आसन करने के समान लाभ दे सकते हैं। सबसे सुंदर बात यह है कि नृत्य के साथ संगीत जुड़ा है। यहीं कारण है कि लंबे समय तक नृत्य करने के बाद भी थकान नहीं होती और आंतरिक ऊर्जा भी सक्रिय रहती है, इसलिए मानसिक सेहत में नृत्य का विशेष लाभ मिल सकता है।
संपूर्ण शरीर में ऊर्जा का होता है संचार
नृत्य एक तरह से जीवन की गतिशील ऊर्जा का प्रदर्शन है। इससे पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इसका मुख्य भाग अभिनय होता है, जिसमे शरीर की भाषा, हस्त मुद्राओं और चेहरे के हाव-भाव के माध्यम से किसी कहानी के पात्रों को मूर्त रूप दिया जाता है। नृत्य भक्ति योग है, जो द्वैत की संरचना पर आधारित है- प्रेमी और प्रेमिका, पुरुषत्व और स्त्रीत्व- जो एकता की ओर ले जाता है। नाट्य शास्त्र न केवल प्रमुख अंगे सिर, छाती बाजू कूल्हे, हाथ और पैरो की गतिविधियो का वर्णन करता है, बल्कि उपांगो की क्रियाओ का भी विस्तृत विवरण देता है जिसमे- भौहों, नेत्रगोलक, पलकें, ढोड़ी और यहां तक कि नाक की जटिल गतिविधियां भी शामिल हैं।
एक दूसरे के पूरक हैं योग व नृत्य
पद्म श्री गीता चंद्रन, भरतनाट्यम नृत्यांगना योग नृत्य के लिए अनिवार्य है। शांत मन और लचीले शरीर की आवश्यकता नर्तक को ही नहीं, सबके लिए जरूरी है। इसके लिए योगाभ्यास नियमित करना चाहिए। ऐसा नहीं कि जब मन हुआ कर लिया। योग हो या नृत्य दोनों के लिए नियम और अनुशासन जरूरी हैं। वास्तव में योग और नृत्य अलग नहीं बल्कि पूरक हैं। नृत्य में भी बेसिक चीजों से शुरुआत करनी चाहिए जैसे योग में नृत्य को चुनते हैं तो इसकी शुरुआत धीमी करें। नृत्य से पहले वार्मअप करें, ताकि शरीर खुल जाए। शरीर व मन में सामंजस्य बनाए रखे तो संपूर्ण सेहत को लाभ मिल सकता है। मानसिक सेहत को बेहतर करने में नृत्य की उपयोगिता बढ़ गई है।
नृत्य और योग में क्या है अंतर
नृत्य योग की तरह है, पर मशहूर कथक नृत्यांगना नलिनी कमलिनी के अनुसार, इसमें एक अंतर भी है। जैसे, नृत्य गतिमान अवस्था है, जबकि योग में आपको विशेष मुद्रा में रहना होता है, यानी यह शरीर के अंग विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से भी किया जा सकता है, जैसे- धनुष आसन को एक जगह पर टिक कर करना होता है। पर, नृत्य में यह अलग अलग तरीके से किया जा सकता है। योग मे मयूर आसन करेंगे तो शरीर को हथेलियों पर संतुलित रखकर मयूर की तरह दिखाएंगे, पर नृत्य में मयूर की चाल चलेंगे, उसकी तरह आंखे भी मटकाएंगे।
अलग-अलग मुद्राएं थेरेपी की तरह
नृत्य में आंखो का खूब प्रयोग होता है। इससे आंखे स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। नृत्य में ग्रीवा भेद यानी गर्दन को घुमाने का अलग अलग तरीका है। यह गर्दन की तकलीफ नहीं होने देता, गर्दन सुडौल बना रहता है। भावनाओं को व्यक्त करने के लिए नृत्य में सिर को विभिन्न प्रकार से घुमाया जाता है। यह स्पांडिलाइटिस से बचाने में कारगर है। जैसे योग में कटि आसन किया जाता है तो अर्धचक्र पूर्णचक्र नृत्य में किया जाता है, जिससे संपूर्ण शरीर का व्यायाम हो जाता है। नृत्य से ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है। रक्तचाप की समस्या नहीं होती, हृदयरोग की आशंका कम हो जाती है। अलग-अलग मुद्राएं इसमे थेरेपी की तरह काम करती है।
नृत्य से मिलते हैं ये लाभ
- रक्त में ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण
- शारीरिक मुद्राओं मे सुधार
- शरीर के संतुलन और लचीलेपन में सुधार
- मांसपेशियों की ताकत में वृद्धि
- कैलोरी घटाने व वजन नियंत्रित करने मे मददगार
- एंडोर्फिन नामक हार्मोन प्रसन्न रखने में सहायक।
हार्मोन का संतुलन
भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा मे जूते चप्पल पहनकर नृत्य नहीं किया जाता लोक नृत्य में भी पैर सीधे जमीन से जुड़े होते हैं। इस दौरान पैरों व इसकी उंगलियों के 'प्वाइंट पर दबाव पड़ने से एक्यूप्रेशर का लाभ मिलता है। खाली पैर नृत्य के लाभ और भी हैं, जैसे इससे बुढ़ावा आने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और हार्मोन का याव बेहतर तरीके से होने में मदद मिलती है। हार्मोन असंतुलन से होने वाली बीमारियों जैसे, महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म, थायरायड, मूड डिसआर्डर मधुमेह आदि से बचाव में मदद मिलती है।
डिमेंशिया दूर करने में कारगर
नृत्य करने से दिमाग एकाग्रता का अभ्यस्त हो जाता है। यह याददाश्त बढ़ाने के साथ बढ़ती उम्र की डिमेंशिया जैसी बीमारियों की आशंका को दूर रखता है।
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