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    Blood Transmitted Diseases: क्या होते हैं रक्त संचारित रोग और इनसे कैसे बचा जा सकता है?

    By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee Parvez
    Updated: Tue, 03 Oct 2023 01:32 PM (IST)

    Blood Transmitted Diseases रक्तजनित रोगजनक वायरस या बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव होते हैं जो खून में मौजूद होते हैं और ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए लोगों में बीमारी का कारण बन सकते हैं। रक्तजनित रोगजनक कई तरह के होते हैं जिसमें मलेरिया सिफलिस ब्रुसेलोसिस शामिल हैं साथ ही विशेष रूप से हेपेटाइटिस-बी हेपेटाइटिस-सी और ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस जिसे HIV भी कहा जाता है।

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    Blood Transmitted Diseases: क्या होते हैं रक्त संचारित रोग? जानें इसके कारण और रोकथाम के तरीके

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Blood Transmitted Diseases: दुनियाभर में खून की कमी या फिर खून ज्यादा बह जाने से कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इसके अलावा थैलासीमिया, सिकल सेल एनीमिया और ब्लड कैंसर के मरीजों को जीवित रहने के लिए खून चढ़ाना बेहद जरूरी हो जाता है। इस तरह के मरीजों को कुछ-कुछ दिनों में ही रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, जिसके लिए वे दान किए गए रक्त की मदद लेते हैं।

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    इसलिए रक्तदान को महादान कहा जाता है। हालांकि, रक्त संचारित रोग भारत में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती पैदा करते हैं, जिससे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। ब्लड ट्रांसफ्यूजन से एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सी जैसे गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। जिससे उबरने के लिए मरीज का समय पर इलाज शुरू होना महत्वपूर्ण साबित होता है।

    ब्लड ट्रांसफ्यूजन से जुड़ी बीमारियों के बारे में विस्तान से जानना के लिए जागरण ने गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में संक्रामक रोग सलाहकार, डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा और थैलेसीमिया पेशेंट्स एडवोकेसी ग्रुप की सदस्य सचिव, अनुभा तनेजा से बात की।

    ब्लड ट्रांसफ्यूजन से जुड़े जोखिम

    डॉ. नेहा ने बताया कि ब्लड चढ़ाते समय हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी और एचआईवी जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में अगर मरीज खून से जुड़े डिसऑर्डर जैसे थैलासीमिया से पीड़ित है, तो खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है, जिन्‍हें नियमित रूप से खून चढ़वाना पड़ता है। मरीज़ों के स्‍तर पर इस मामले में कम जानकारी और सार्वजनिक स्‍तर पर भी इस विषय में जागरूकता का अभाव सुरक्षित ब्‍लड ट्रांसफ्यूज़न सुनिश्चित करने की राह में बड़ी बाधा है। भारत में, ब्‍लड ट्रांसफ्यूज़न सेवाएं काफी खंडित हैं, जिनके चलते यहां स्‍क्रीनिंग और टेस्टिंग की क्‍वालिटी में काफी अंतर है। बहुत से ब्‍लड बैंकों में जरूरी स्‍क्रीनिंग टैक्‍नोलॉजी भी उपलब्‍ध नहीं हैं, जो डोनेट किए गए ब्‍लड की सुरक्षा की गारंटी दे सकें।

    यह भी पढ़ें: क्यों जरूरी होता है रक्तदान करना?

    ब्लड ट्रांसफ्यूजन कब बन जाता है खतरनाक?

    • एक ही सुई का कई बार इस्तेमाल होना।
    • खून की जांच किए बिना ही मरीज को चढ़ा देना। इससे रक्त से होने वाले संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है।
    • टैटू बनवाने से भी इस तरह का संक्रमण मुमकिन है।
    • मेडिकल औजारों को सही तरीके से स्टेरलाइज न करना और इसी तरह की दूसरी असुरक्षित चिकित्सा पद्धतियां भी जोखिम में योगदान करती हैं।
    इलाज से बेहतर है बचाव, इसलिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन से होने वाले संक्रमण से बचने के लिए कई तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है।- डॉ. नेहा

    ब्लड ट्रांसफ्यूजन से जुड़े जोखिमों को कैसे कम किया जाए?

    • सबसे पहले सुरक्षित इंजेक्शन्स का उपयोग करना, ब्लड और अंगदान के समय स्क्रीनिंग बेहद जरूरी होती है।
    • अनुभा तनेजा ने बताया कि टीटीआई (Transfusion Transmissible Infections) के खतरों को कम करने के लिए स्‍वैच्छिक रक्‍तदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है।
    • सरकार को देशभर में ब्‍लड ट्रांसफ्यूज़न सेवाओं को बढ़ाने के लिए अलग से संसाधनों को सुनिश्चित करना चाहिए।
    • साथ ही, रक्त को इस्तेमाल के लिए सुरक्षित बनाने के लिए ब्‍लड संबंधी फ्रेमवर्क तैयार करने की भी जरूरत है।
    • अनुभा तनेजा ने यह भी बताया कि ब्‍लड ट्रांसफ्यूज़न को अधिक सुरक्षित बनाने और संक्रमणों का जोखिम कम करने के मकसद से, टीटीआई स्‍क्रीनिंग के लिए एनएटी (न्‍युक्लिक एसिड टेस्टिंग) की सलाह दी जाती है। यह अधिक संवेदी होने के साथ-साथ विंडो टाइम भी कम कर सकता है। एनएटी को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनिवार्य टेस्‍ट घोषित किया जाना चाहिए ताकि ब्‍लड बैंक स्‍क्रीनिंग टैक्‍नोलॉजी के मामले में अपनी मर्जी से कुछ भी न चुन सकें।

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    Picture Courtesy: Freepik