ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ सकता है Sleep Apnea का खतरा, नई स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
क्या आपने कभी सोचा है कि ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ हमारे पर्यावरण को ही नहीं बल्कि हमारी नींद को भी प्रभावित कर सकती है? दरअसल हाल ही में हुई एक नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा (Global Warming Sleep Impact) हुआ है जो आपको हैरान कर देगा। जी हां बताया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण Sleep Apnea का खतरा बढ़ सकता है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या रात को सोते समय अचानक आपकी सांस रुक जाती है या आपके परिवार में कोई ऐसा है जो खर्राटे लेते-लेते अचानक चुप हो जाता है? अगर हां, तो यह सिर्फ सामान्य खर्राटे नहीं, बल्कि सेहत से जुड़ी एक गंभीर समस्या, यानी ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) का संकेत (Global Warming Sleep Impact) हो सकता है। बता दें, यह एक ऐसी स्थिति है जहां नींद के दौरान बार-बार सांस लेने में रुकावट आती है, जिससे नींद टूटती है और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती है।
ऐसे में, अब एक नया शोध सामने आया है जो हमारी चिंता और बढ़ा सकता है। यह अध्ययन बताता है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह समस्या और गंभीर होती जा रही है (Sleep Apnea Climate Link)। इसका मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग न केवल हमारे पर्यावरण को, बल्कि हमारी नींद और सेहत को भी प्रभावित कर रही है। आइए विस्तार से जानते हैं।
क्या है स्लीप एपनिया?
ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) एक नींद से जुड़ा एक डिसऑर्डर है, जिसमें सोते समय व्यक्ति की सांस बार-बार रुक जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गले की मांसपेशियां ढीली होकर वायुमार्ग को संकरा कर देती हैं, जिससे शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इससे नींद की क्वालिटी तो खराब होती ही है, साथ ही दिल, दिमाग और मेंटल हेल्थ पर भी गहरा असर पड़ता है।
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बढ़ते तापमान से कैसे जुड़ी है यह समस्या?
हाल ही में Nature Communications नामक जर्नल में पब्लिश एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने बताया है कि जैसे-जैसे दुनिया गर्म हो रही है, वैसे-वैसे स्लीप एपनिया की गंभीरता और उसका प्रसार दोनों बढ़ते जा रहे हैं। शोध में यह पाया गया कि गर्म दिनों में व्यक्ति के स्लीप एपनिया से प्रभावित होने की संभावना 45 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
यह प्रभाव यूरोपीय देशों में ज्यादा स्पष्ट रूप से देखा गया, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है। विशेषकर वहां जहां स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं और जनसंख्या घनी है।
2100 तक दोगुना हो सकता है भार
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर वैश्विक तापमान में 1.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है (पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में), तो वर्ष 2100 तक स्लीप एपनिया से जुड़ा स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक बोझ 1.2 से 3 गुना तक बढ़ सकता है।
सेहत ही नहीं, अर्थव्यवस्था पर भी असर
2023 के आंकड़ों के अनुसार, बढ़ते तापमान की वजह से स्लीप एपनिया नाम की बीमारी बहुत बढ़ गई। इसका असर 29 देशों पर पड़ा, जहां लोगों को काफी नुकसान हुआ। सबसे पहले, लोगों ने अपनी सेहत खो दी। इसका मतलब है कि 78 लाख से ज्यादा स्वस्थ जीवन वर्ष कम हो गए। आसान शब्दों में कहें तो, लोग जितना समय हेल्दी रहकर जी सकते थे, उतना जी नहीं पाए क्योंकि वे बीमार पड़ गए।
दूसरा बड़ा नुकसान काम पर हुआ, क्योंकि स्लीप एपनिया के कारण लोग ठीक से सो नहीं पाते, जिससे उनकी काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा। कुल 10.5 करोड़ वर्किंग डेज का नुकसान हुआ, यानी लोग इतने दिन काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाए या छुट्टी पर रहे।
इन सब की वजह से कुल मिलाकर 98 अरब अमेरिकी डॉलर का बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। इसमें से 68 अरब डॉलर का नुकसान लोगों की सेहत बिगड़ने और उनकी लाइफ की क्वालिटी खराब होने से हुआ, जबकि बाकी 30 अरब डॉलर का नुकसान काम पर प्रोडक्टिविटी घटने से हुआ।
क्यों है यह चिंता की बात?
स्लीप एपनिया केवल नींद की समस्या नहीं है। इससे हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, डिमेंशिया और यहां तक कि पार्किंसन जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। अगर यह समय रहते पकड़ा न जाए, तो व्यक्ति के लाइफ की क्वालिटी और उम्र दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
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Source:
Nature Communications: https://www.nature.com/articles/s41467-025-60218-1
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