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    कैलोरी, प्रोटीन या फैट से कहीं बढ़कर है हेल्दी डाइट, जानें क्या है पोषण से भरपूर से खाने का सही मतलब

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 08:06 PM (IST)

    जब हम भोजन और इससे मिलने वाले पोषण के बारे में सोचते हैं तो अक्सर उसे कैलोरी प्रोटीन या फैट तक ही सीमित कर देते हैं। राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के अवसर पर फिट इंडिया के ब्रांड एंबेसडर डॉ. मिक्की मेहता के मुताबिक यह समय है रुक कर सोचने का कि हम पोषण को सिर्फ आहार से तौलने की जगह इसे संपूर्ण जीवनशैली का हिस्सा क्यों न बनाएं।

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    संपूर्ण पोषण आयुर्वेद, योग और स्वस्थ खान-पान की आदतें (Picture Credit- Freepik)

    डॉ. मिक्की मेहता, नई दिल्ली। अच्छा भोजन ‘लो-फैट’ या ‘हाइ-प्रोटीन’ के दावे से नहीं बनता है। आयुर्वेद से लेकर आधुनिक चिकित्सा शास्त्र तक सभी इस पर सहमत हैं कि यह ऐसा भोजन है जो ताजा, मौसमी, शुद्ध संपूर्ण और सात्विक हो। कल्पना कीजिए उस ग्रामीण थाली की जिसमें भाप उड़ाती दाल, प्यार से पकाई गई ताजी सब्जियां, हाथ से कुटे हुए धान से प्राप्त चावल, जौ की रोटी और तनिक देसी घी हो।

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    यह वह भोजन है जो शरीर को स्वस्थ रखता है, ऊर्जा देता है और इसकी लय को संतुलित करता है। वहीं बुरा भोजन वह है जो देखने में तो आकर्षक लग सकता है, लेकिन आपको अंदर से कमजोर कर देता है और आपके सिस्टम को सुस्त बनाता है। अत्यधिक प्रोसेस्ड स्नैक्स, चीनीयुक्त मिठाइयां, तले हुए फास्ट फूड या पैकेटबंद/रेडी टु ईट फूड्स अधिकांशतः जीवन-शक्ति से रहित होते हैं।

    इन्हें खाकर आपको कुछ देर खुशी भले ही मिल जाए लेकिन अंततः ऐसा आहार शरीर को निर्जलित कर देता है, शक्कर से भर देता है, और अतिरिक्त नमक, तेल के साथ-साथ गिल्ट फीलिंग भी दे सकता है। इन्हें कभी-कभार खाने में बुराई नहीं, लेकिन इन पर लगातार निर्भरता मोटापा, मधुमेह और अन्य जीवनशैली संबंधी बीमारियों को जन्म देना है।

    मोटापे को दावत देते भारतीय

    शहरी भारत की खान-पान संस्कृति बहुत समृद्ध है। शाम को तले हुए स्नैक्स, सप्ताहांत में पिज्जा-बर्गर, त्योहार में मिठाइयां और जश्नों में अधिक भोजन करना आम है। अब इसके साथ ही हमारी आधुनिक निष्क्रिय जीवनशैली जैसे लंबे समय तक सीढ़ी न चढ़ना, स्क्रीन की लत और शायद ही व्यायाम करने को जोड़ लीजिए। हमारे दादा-दादी- जो खूब चलते थे, हाथ से काम करते थे, प्रकृति के करीब रहते थे, ताजा खाया करते थे और समय पर सोते थे- की तुलना में आज के शहरी भारतीय लगभग निष्क्रिय हैं।

    जीवन का अनुशासन पूरी तरह भुला दिया गया है। हम एप से भोजन मंगाते हैं, कार-बाइक में बैठते हैं, पैकेज्ड नाश्ता करते हैं और बिंज वाचिंग करते हुए आधी रात से पहले न सोने की कसम सी खा रखी है। अधिक खाने और कम गतिविधि का यह अतिशय प्रेम मोटापे, उच्च रक्तचाप और मधुमेह के लिए परिपूर्ण सूत्र है।

    संपूर्ण पोषण क्या है?

    शरीर का ‘संपूर्ण पोषण’ सिर्फ पोषक तत्वों और आहार की बात नहीं है। यह शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुभवों से जुड़कर प्राप्त होता है। सूर्योदय का सुंदर दृश्य देखना, आत्मा को छूने वाला संगीत सुनना, ताजा फूलों की खुशबू लेना या ध्यानपूर्वक स्पर्श का आनंद लेना, यह सभी आपको पोषित करते हैं। सभी छह इंद्रियां (देखना, सुनना, सूंघना, छूना, चखना और विचार) हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

    इसी प्रकार थाली में पोषण का मतलब है षड्-रस की संपूर्णता, यानी आयुर्वेद में वर्णित छह स्वाद: मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वाहट और कसैलापन। जब भोजन में इन सभी स्वादों का संतुलन होता है, तो पाचन, मेटाबोलिज्म और मन में सामंजस्य रहता है। एक पारंपरिक भारतीय थाली स्वाभाविक रूप से इन सभी स्वादों को शामिल करती है। यही कारण है कि यह संपूर्ण महसूस होती है। एक बात और, अगर भोजन आपके रचनात्मक विचारों, व्यवहार, आस्था, करुणा और प्रेम जैसी पारस्परिक मानसिकताओं के तालमेल में नहीं है तो वह भोजन आपके लिए उचित नहीं है।

    योग से पोषण संपूर्ण बनाएं

    अच्छा भोजन, अच्छे विचार, शब्द, कर्म और अच्छे कार्य संयुक्त रूप से संपूर्ण स्वास्थ्य बनाते हैं। आप अच्छा खा सकते हैं पर यदि आप चलते-फिरते-दौड़ते नहीं हैं तो आपके शरीर के स्वस्थ रहने में संशय है। व्यायाम और योग रक्त प्रवाह में सुधार करते हैं, आक्सीजन अवशोषण बढ़ाते हैं और मेटाबोलिज्म सक्रिय करते हैं। व्यायाम पाचन अग्नि को प्रज्वलित करता है। योग पाचन को संतुलित करता है, तनाव कम करता है और खाने में माइंडफुलनेस बढ़ाता है। यौगिक ढंग से सांस लेने की क्रियाएं आक्सीजन अवशोषित कर रही कोशिकाओं के स्तर पर शुद्धि और ऊर्जा देती हैं!

    अपने लिए पोषणयुक्त भोजन कैसे चुनें

    स्वास्थ्यवर्धक भोजन चुनना ‘कीटो’ या ‘ग्लूटेन-फ्री’ ट्रेंड्स का पीछा करने जैसा नहीं है। यह अपने शरीर की समझ और प्रकृति के नियमों को सुनने का अभ्यास है। आइए इन्हें दोहरा लें:

    • मौसमी और स्थानीय भोजन: गर्मियों में आम, सर्दियों में आंवला—प्रकृति वही देती है जिसकी आपको जरूरत है।
    • सीधे खेत से टेबल पर: प्रसंस्कृत और पैकेज्ड खाद्य उत्पादों से बचें। वही चुनें जो मिट्टी में उगता है, न कि जो महीनों से सुपरमार्केट की शेल्फों पर पड़ा हो।
    • लेबल पढ़ें: भारतीय बहुत कम ही फूड लेबल चेक करते हैं। आज ही शुरू करें। छुपे हुए शक्कर, हाइड्रोजेनेटेड वसा, प्रिजर्वेटिव्स और एडिटिव्स पर नजर डालें।
    • षड्-रस की संपूर्णता: थाली में सभी छह स्वाद का संतुलन रखें। उदाहरणस्वरूप मूंग दाल, जौ की रोटी, अनपालिश्ड चावल, मौसमी सब्जी, चटनी, सलाद और छाछ ये स्वाभाविक रूप से इन सभी को पूरा करते हैं।
    • परंपराओं पर वापसी: ठंडे पेय की बजाय जीरा पानी या ताजा नारियल पानी पिएं। चिप्स की जगह भुने हुए चने या घी में भुने मखाने खाएं।

    आयुर्वेद का मार्ग अपनाएं

    संपूर्ण पोषण प्राप्त करने के लिए आप क्या खाते हैं के साथ ही इसे कैसे और कब खाते हैं, यह भी महत्वपूर्ण है। इसके लिए आयुर्वेद की दिनचर्या और ऋतुचर्या को जीवनशैली का अंग बनाना ही होगा। सिद्धांत बहुत सरल हैं लेकिन लाभ बहुत गहरेः

    • सूर्य के साथ आहार करें। दिन में मुख्य भोजन कीजिए और सांझ को हल्का भोजन। रात को भारी भोजन पाचन में बाधा डालता है, सूर्यास्त के बाद खाने से बचें तो बेहतर।
    • अच्छी तरह चबाएं, धीरे खाएं और अपने भोजन के प्रति कृतज्ञता महसूस करें। आयुर्वेद इसे आहार को औषधि बना देना कहता है। इससे पाचन और अवशोषण बेहतर होता है।
    • अधिक भोजन या विपरीत खाद्य मिश्रण से बचें (जैसे दूध और खट्टे फल)।
    • गर्म पानी या हर्बल टी पिएं, ठंडा सोडा नहीं। याद रखें ताजे पानी से बेहतर शीतल पेय दुनिया में दूसरा नहीं है।
    • मौसम के साथ तालमेल बिठाएं। गर्मियों में तरबूज, खीरा, छाछ जैसे ठंडक देने वाले खाद्य और सर्दियों में सूप, घी, सूखे मेवे का सेवन करें।

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