धीमा जहर हैं आंखों को लुभाने वाले आर्टिफिशियल फूड कलर्स, सेहत पर पड़ सकता है भारी
रंग-बिरंगे फूड आइटम भले ही आंखों को सुहाते हों लेकिन सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं। कुछ आर्टिफिशिल कलर्स जोकि फूड में इस्तेमाल होने के लिए नहीं बने उन्हें भी चोरी-छुपे फूड आयटम्स को कलरफुल बनाने के लिए डाला जाता है। इनसे बचने का एक ही तरीका है जितना हो सके आर्टिफिशियल कलर वाले फूड से बचें।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आंखों को लुभाने वाली कैंडी, अलग-अलग फ्लेवर की आइसक्रीम में रंगों का एक ऐसा मायाछाला बिछाया जाता है, जो दिखने में तो खूबसूरत लगते हैं, लेकिन हकीकत उससे उलट होती है।
चाहे पैकेटबंद फूड आयटम हों या फिर रेस्टोरेंट्स में बनने वाली डिशेज इन सबमें फूड डाई या कलर्स का इस्तेमाल होता है। भारत ही नहीं दुनियाभर में इन आर्टिफिशियल फूड कलर्स को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है। आइए रंगों के इस कारोबार को समझते हैं और उनसे सेहत को होने वाले नुकसान के बारे में जानते हैं।
ये फूड डाई होते हैं सबसे ज्यादा इस्तेमाल
- रेड डाई 40: चाहे कैंडी हो, बेक्ड फूड, सॉफ्ट ड्रिंक या दवाइयां, इस फूड डाई का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। कई स्टडीज यह बताती है कि रेड डाई 40 के लगातार शरीर में जाने से बच्चों में हाइपएक्टिविटी और एकाग्रता से जुड़ी परेशानियां हो जाती हैं, खासकर ADHD से पीड़ित बच्चों में।
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- येलो डाई 5 (टेट्राजीन) और येलो डाई 6 (सनसेट येलो): ये डाई सबसे ज्यादा प्रोसेस्ड फूड्स में इस्तेमाल होते हैं, जिनमें बेक्ड चीजें, कैन में बंद सब्जियां और सॉफ्ट ड्रिंक्स आते हैं। इस ड्राई की वजह से भी बिहेवियर संबंधी समस्याएं होती हैं, खासकर बच्चों में।
- ब्लू डाई 3: इस कलर का इस्तेमाल कैंडीज, बेक्ड चीजों और सॉफ्ट ड्रिंक में होता है। चूहों पर की गई रिसर्च में यह बात सामने आई कि इस ड्राई की वजह से ब्रेन और ब्लेडर का ट्यूमर हो सकता है।
- सिट्रस रेड 2: इसे ऑरेंज और ग्रेपफ्रूट जूसेस में डाला जाता है। इस डाई को लेकर भी एनिमल स्टडीज में यह बात सामने आई है कि इससे ब्लेडर और अन्य अंगों में ट्यूमर होने का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चे होते हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
आर्टिफिशियल फूड डाई का खतरा सबसे ज्यादा बच्चों की सेहत को होता है। उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर कलर्स में इस्तेमाल होने वाले केमिकल काफी बुरा असर डालते हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को आर्टिफिशियल कलर्स वाले फूड से दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए, खासकर जिन बच्चों को पहले से ही कोई बीमारी है।
नेचुरल फूड कलर्स
काफी सारे फलों, सब्जियों और मसालों में नेचुरल कलर होता है और इनका इस्तेमाल खाने के रंग को निखारने के लिए किया जा सकता है। वैसे काफी सारी ऐसी कंपनियां हैं जोकि प्लांट बेस्ड एक्स्ट्रैक्ट का इस्तेमाल फूड कलरिंग में कर रहे हैं। ये एक्सट्रैक्ट फल, सब्जियों और पेड़ों के दूसरे हिस्सों से तैयार किया जाता है और तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना जाता है।
भारत में इन कलर्स के फूड प्रोडक्ट्स पर है बैन
- मेलेनिल येलो- रेस्पेरेटरी सिस्टम और स्किन के लिए नुकसानदायक है। इसकी वजह से फर्टिलिटी पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
- रोडामाइन बी- यह कलर किडनी, लिवर को डैमेज करने और पेट के कैंसर के लिए खतरा माना जाता है। यह फूड कलर नहीं है और इंसानी शरीर के लिए टॉक्सिक है।
- सूडान डाई- भारत में कुछ राज्यों में यह खतरनाक डाई मिर्च पाउडर, कई प्रकार के करी पावडर में पाए जाने से खलबली मच गई। यह ड्राई लिवर और ब्लेडर कैंसर का कारण बन सकता है।
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